Wednesday, August 3, 2011

जीवन के सर्वांगीण विकास हेतु सूर्य-उपासना

जीवन के सर्वांगीण विकास हेतु सूर्य-उपासना




जीवन के सर्वांगीण विकास हेतु



सूर्य-उपासना



(पूज्य बापू जी के सत्संग प्रवचन से)



'भगवान सूर्यनारायण तेज रश्मियों से अंधकार मिटाते हैं। हे सूर्यदेव ! मेरे जीवन में तेजस्विता आये, तत्परता आये।' – ऐसा सात बार चिंतन करके रोज सूर्य को अर्घ्य देने से आपका जीवन तेजस्वी होगा, तत्पर होगा। आपमें तप की वृद्धि होगी।



हमारे तन-मन में जो कुछ भी बल, ओज है, वह सीधे-अनसीधे सूर्यनारायण की ही कृपा से है। तो सूर्य के तेज को हम अपने में और अवशोषित करेंगेः



उद्वयं तमसस्परि ज्योतिष्पश्यन्त उत्तरम्।



देवं देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरूत्तमम्।।



'तमिस्रा (अंधकार) से दूर श्रेष्ठतम ज्योति को देखते हुए हम ज्योतिस्वरूप और देवों में उत्कृष्टतम ज्योति (सूर्य∕परमात्मा) को प्राप्त हों।' (ऋग्वेदः 1.50.10)



उदु त्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः।



दृशे विश्वाय सूर्यम्।।



'ये ज्योतिर्मयी रश्मियाँ सम्पूर्ण प्राणियों के ज्ञाता सूर्यदेव को एवं समस्त विश्व को दृष्टि प्रदान करने के लिए विशेषरूप से प्रकाशित होती हैं।' (ऋग्वेदः 1.50.1)



इन दोनों मंत्रों के द्वारा सूर्यनारायण को सात अंजलि जल देने का नियम अगर आप ठान लेंगे तो आपके जीवन में आने वाला छिछोरापन, अहं, भड़कीला स्वभाव अथवा साधना की ऊँचाई से गिराने वाली गंदी आदतें – ये सब छोड़ने की आपमें क्षमता आ जायेगी। लोटे में जल ले लो, उसमें से अंजलि भर-भर के सात बार सूर्यदेव को जल अर्पण कर दिया बस ! ऐसा करने वाला व्यक्ति अदभुत ज्ञान-प्रकाश का धनी बनता है। इनसे मानसिक दुःखों का तो नाश होता ही है, शारीरिक दुःखों का अंत करने में भी ये मंत्र सक्षम हैं।



वैदिक मंत्रों का उच्चारण करने में कठिनाई होती हो तो लौकिक भाषा में केवल इनके अर्थ का चिंतन या उच्चारण कर सकते हैं।



बुद्धि के अधिष्ठाता देव सूर्यनारायण हैं। अतः यह प्रयोग बुद्धिवर्धक भी होगा और सामर्थ्य को पचाने वाला, आवेशों के सिर पर पैर रखने वाला सददृष्टिकोण भी इससे मिलेगा। ऋग्वेद के ये मंत्र बच्चों के लिए तो वरदान होंगे।



स्रोतः लोक कल्याण सेतु, दिसम्बर 2010, पृष्ठ संख्या 5, अंक 162

Wednesday, February 9, 2011

मातृदेवो भव। पितृदेवो भव। बालिकादेवो भव।
कन्यादेवो भव। पुत्रदेवो भव।
माता पिता का पूजन करने से काम राम में बदलेगा, अहंकार प्रेम में बदलेगा, माता-पिता के आशीर्वाद से बच्चों का मंगल होगा।

Friday, February 4, 2011

न भूतकाल की बातें सोचते रहें न वर्तमान में कुछ न भविष्य की कल्पना | इससे पार हो जाएँ ताकि वर्तमान भी बढ़िया रहे, भविष्य भी बढ़िया रहे | इसमें उलझे न रहे कि मेरा वर्तमान अच्छा हो ताकि मेरा भविष्य भी अच्छा हो जाये | खाली इसी में ही उलझे नहीं रहना है, इससे पार हो जाओ

Tuesday, February 1, 2011

जैसे कर्म होते हैं, जैसा चिंतन होता है, चिंतन के संस्कार होते हैं वैसी गति होती है, इसलिए उन्नत कर्म करो, उन्नत संग करो, उन्नत चिंतन करो। उन्नत चिंतन, उत्तरायण हो चाहे दक्षिणायण हो, आपको उन्नत करेगा।

Sunday, January 30, 2011

तुम चाहे कितनी भी मेहनत करो किन्तु जितना तुम्हारी नसों में ओज है, ब्रह्मचर्य की शक्ति है उतने ही तुम सफल होते हो। जो चाय-कॉफी आदि पीते हैं उनका ओज पतला होकर पेशाब द्वारा नष्ट होता जाता है। अतः ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए चाय-कॉफी जैसे व्यसनों से दूर रहना रहें।
देह है घड़ा। तुम हो आकाशस्वरूप। तुम हो सागर। देह है उसमें बुलबुला। तुम हो सोना। देह है आकृति। तुम हो मिट्टी तो देह है खिलौना। तुम हो धागा और देह है उसमें पिरोया हुआ मणि। इसीलिए गीता में कहा हैः
सूत्रे मणिगणा इव।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं जगत में व्याप्त हूँ। कैसे ? जैसे पिरोये हुए मणियों में धागा व्याप्त है ऐसे।

Saturday, January 29, 2011

भारत के उज्जवल भविष्य की और एक महत्वपूर्ण कदम....जब स्वप्न में से उठे तो फिर स्वप्न की चीजों का आकर्षण खत्म हो गया । चाहे वे चीज़ें अच्छी थीं या बुरी थीं । चाहे दुःख मिला, चाहे सुख मिला, स्वप्न की चीज़ें साथ में लेकर कोई भी आदमी जग नहीं सकता । उन्हें स्वप्न में ही छोड़ देता है । ऐसे ही जगत की सत्यता साथ में लेकर साक्षात्कार नहीं होता ।