ईश्वरीय विधान में हम जितना अडिग रहते हैं उतनी ही प्रकृति अनुकूल हो जाती है। ईश्वरीय विधान में कम अडिग रहते है तो प्रकृति कम अनुकूल रहती है
ईश्वरीय विधान हमारी तरक्की.... तरक्की.... और तरक्की ही चाहता है। जब थप्पड़ पड़ती है तब भी हेतु तरक्की का है। जब अनुकूलता मिलती है तब ईश्वरीय विधान का हेतु हमारी तरक्की का है
Sunday, July 4, 2010
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