Sunday, January 30, 2011

तुम चाहे कितनी भी मेहनत करो किन्तु जितना तुम्हारी नसों में ओज है, ब्रह्मचर्य की शक्ति है उतने ही तुम सफल होते हो। जो चाय-कॉफी आदि पीते हैं उनका ओज पतला होकर पेशाब द्वारा नष्ट होता जाता है। अतः ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए चाय-कॉफी जैसे व्यसनों से दूर रहना रहें।
देह है घड़ा। तुम हो आकाशस्वरूप। तुम हो सागर। देह है उसमें बुलबुला। तुम हो सोना। देह है आकृति। तुम हो मिट्टी तो देह है खिलौना। तुम हो धागा और देह है उसमें पिरोया हुआ मणि। इसीलिए गीता में कहा हैः
सूत्रे मणिगणा इव।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं जगत में व्याप्त हूँ। कैसे ? जैसे पिरोये हुए मणियों में धागा व्याप्त है ऐसे।

Saturday, January 29, 2011

भारत के उज्जवल भविष्य की और एक महत्वपूर्ण कदम....जब स्वप्न में से उठे तो फिर स्वप्न की चीजों का आकर्षण खत्म हो गया । चाहे वे चीज़ें अच्छी थीं या बुरी थीं । चाहे दुःख मिला, चाहे सुख मिला, स्वप्न की चीज़ें साथ में लेकर कोई भी आदमी जग नहीं सकता । उन्हें स्वप्न में ही छोड़ देता है । ऐसे ही जगत की सत्यता साथ में लेकर साक्षात्कार नहीं होता ।

Friday, January 28, 2011

जो काम जिस समय करना चाहिए कर ही लेना चाहिए संयम और तत्परता सफलता की कुंजी है।लापरवाही और संयम का अनादर विनाश का कारण है।जिस काम को करें,उसे ईश्वर का कार्य मान कर साधना का अंग बना लें।उस काम में से ही ईश्वर की मस्ती का आनंद आने लग जायेगा

Thursday, January 27, 2011

सब चला जाए तो भी ठीक है, सब आ जाए तो भी ठीक है।आखिर यह संसार सपना है ।गुजरने दो सपने को।हो होकर क्या होगा?क्या नौकरी नहीं मिलेगी ? खाना नहीं मिलेगा ? कोई बात नहीं आखिर तो मरना है इस शरीर को । तुम जब निश्चिंत हो जाओगे तो तुम्हारे लिए ईश्वर चिन्तित होगा

Tuesday, January 25, 2011

स्वतंत्रता का अर्थ उच्छ्रंखलता नहीं है। शहीदों ने खून की होली खेलकर आप लोगों को इसलिए आजादी दिलायी है कि आप बिना किसी कष्ट के अपना, समाज का तथा देश का कल्याण कर सकें। स्वतंत्रता का सदुपयोग करो तभी तुम तथा तुम्हारा देश स्वतंत्र रह पायेगा, अन्यथा मनमुखता के कारण अपने ओज-तेज को नष्ट करने वालों को कोई भी अपना गुलाम बना सकता है।