Sunday, May 30, 2010


  • सर्वस्व जाय तो भी कभी किसी निमितसे कहीं किंचिन्मात्र भी पाप न करे,न करवावे और न उसमें सहमत ही हो


  • ममता की छांव में, हम आपने गाँव में बगिया में तोड़े वो आम बड़े कच्चे थे तब जब हम बच्चे थे...... चांदनी की रातों में, दादी के पहलू में सुनते थे किस्से जो, लगते वो सच्चे थे तब जब हम बच्चे थे........... गैया का दूध दुहे, नन्हे से हांथो से प्यारे बछडे उसके, तब लगते अच्छे थे तब जब हम बच्चे थे...........


  • आकार वो बैठ गयी, घर में बिन बात के बकबक काकी को तब, देते हम गच्चे थे तब जब हम बच्चे थे........... प्रातः उठकर बाबा, खेतों की ओर चलें चाहे कोई ऋतु हो, धुन के वो पक्के थे तब जब हम बच्चे थे.......... शहरों की चकाचौंध, मुझसे ना सही जाये बेहतर था गाँव, वहां हम इससे अच्छे थे तब जब हम बच्चे थे.........

  • Tuesday, May 18, 2010

    अन्दर की चेतना को जगाओ ..अन्दर की चेतना जगी , भक्ती है तो खुदा को पा लेगा…इतनी शक्ति है इन्सान तुझ मे !


    संसार मे सुख खोजना कुसंग है और सच्चे सुख का तरीका जानना सत्संग है..!!
    इन्सान की बद भक्ती अंदाज से बाहर है l


    कम्बख्त , खुदा होकर बन्दा नझर आता है…!!
    जैसे प्रकाश के बिना पदार्थ का ज्ञान नहीं होता उसी प्रकार पुरुषार्थ के बिना कोई सिद्धि नही होती। जिस पुरुष ने अपना पुरुषार्थ त्याग दिया है और दैव (भाग्य) के आश्रय होकर समझता है कि "दैव हमारा कल्याण करेगा" तो वह कभी सिद्ध नहीं होगा। पत्थर से कभी तेल नहीं निकलता, वैसे ही दैव से कभी कल्याण नहीं होता। तुम दैव का आश्रय त्याग कर अपने पुरुषार्थ का  आश्रय करो। जिसने अपना पुरुषार्थ त्यागा है उसको सुन्दरता, कान्ति और लक्ष्मी त्याग जाती है।
    रैन की बिछड़ी चाकवी, आन मिले प्रभात।सत्य का बिछड़ा मानखा, दिवस मिले न ही रात।।हे चिड़िया ! सन्ध्या हुई। तू मुझसे बिछड़ जायेगी, दूसरे घोंसले में चली जाएगी किन्तु प्रभात को तू फिर मुझे मिल जायेगी लेकिन मनुष्य जन्म पाकर भी उस सत्य स्वरूप परमात्मा के सत्य से बिछड़नेवाला मनुष्य पुनः सत्य से न सुबह मिलेगा, न शाम को, न रात में मिलेगा न दिन में।
    नम्रतापूर्वक पूज्यश्री सदगुरू के पदारविन्द के पास जाओ। सदगुरू के जीवनदायी चरणों में साष्टांग प्रणाम करो। सदगुरू के चरणकमल की शरण में जाओ। सदगुरू के पावन चरणों की पूजा करो। सदगुरू के पावन चरणों का ध्यान करो। सदगुरू के पावन चरणों में मूल्यवान अर्घ्य अर्पण करो। सदगुरू के यशःकारी चरणों की सेवा में जीवन अर्पण करो। सदगुरू के दैवी चरणों की धूलि बन जाओ।
    जैसे स्वप्न में मिली हुई सजा जागृत अवस्था में नहीं रहती, दूध में से घी निकलने के बाद वह दूध में नहीं मिलता अपितु पृथक ही रहता है, लकड़ी जल जाने के बाद वह अग्निरूप हो जाती है और लकड़ी का कहीं नामोनिशान नहीं रहता है, उसी प्रकार संसारस्वप्न में से जो जीव जाग जाता है उसे फिर संसार स्वप्न की कैद में, माता के गर्भ में आने का दुर्भाग्य नहीं होता
    हमारे पास खाने को पर्याप्त अन्न, पहनने को वस्त्र, रहने को घर होते हुए भी हम भीतर से दुःखी क्यों हैं? दीन क्यों है ? अशान्त क्यों हैं ? क्योंकि हम लोग अपने भीतर की चेतना जगाने की तरकीब भूल गये हैं, अन्तर में निहित आनन्दसागर से संपर्क खो बैठे हैं, परमात्मा का अनुसंधान करने के संपर्क-सूत्र छोड़ बैठे हैं, मंत्रजप एवं उसके विधि-विधान त्याग चुके हैं।

    Sunday, May 16, 2010

    लक्ष्य जितना ऊँचा होता है उतने ही संकल्प


    शुद्ध होते हैं। ऊँचा लक्ष्य है मोक्ष,परमात्मा-प्राप्ति, , अनन्त

    ब्रह्माण्डनायक ईश्वर से मिलना। ऊँचा लक्ष्य तुच्छ संकल्पों को दूर कर देता

    है। ऊँचा संकल्प जितना दृढ़ होगा उतना ही तुच्छ संकल्पों को हटाने में

    सफलता मिलेगी। तुच्छ संकल्पों को काट दिया जाएगा, ऊँचा जीवन, ऊँची

    समझ, और ऊँचे में ऊँचे परमात्मा की

    प्राप्ति सुलभ होगी।
    सेवा वह उत्तम होती है,जिसमें सेवक का नामतक सेव्यको ज्ञात न हो सके।


     सुख की लोलुपता कैसे छुटे?जानते हुए,कहते हुए,समझते हुए,पढ़ते हुए भी उसमें फँस जाते हैं!अत: उससे छुटनेके लिये बड़ा सीध सरल उपाय है कि दूसरे को सुख कैसे पहुँचे?यह भाव बना लें।घर में माँ-बाप को सुख कैसे हो?स्त्री को सुख कैसे हो?मेरे द्वारा क्या किया जाय,जिससे इनको सुख हो जाय?यह वृति अगर आपकी जोरदार हो जायेगी तो सुखभोग की रुचि मिट जायेगी।
    सच्चा भक्त अपने किसी अनिष्टकी आशङ्कासे सन्मार्गका -ईश्वर-सेवाका कदापि त्याग नहीं करता।तन,मन,धन सभी कुछ प्रभुकी ही तो सम्पति है,फिर उन्हें प्रभुके काममें लगा देनेमें अनिष्ट कैसा?इसीसे यदि असहाय रोगीकी सेवा करते-करते भक्तके प्राण चले जाते हैं या भूखे-गरीबोंका पेट भरनेमें भक्तकी सारी समपति स्वाहा हो जाते है तो वह अपने को बड़ा भाग्यवान्‌ समझता है।

    Wednesday, May 12, 2010

     जो प्रेम परमात्मा को करना चाहिए वह प्रेम अगर मोहवश होकर कुटुम्ब में केन्द्रित किया तो कुटुम्ब तुम्हें धोखा देगा। जो कर्म परमात्मा के नाते करना चाहिए वे ही कर्म अगर अहंकार पोसने के लिए किये तो जिनके वास्ते किये वे लोग ही तुम्हारे शत्रु बन जाएँगे। जो जीवन जीवनदाता को पाने के लिए मिला है, वह अगर हाड़-मांस के लिए खर्च किया तो वही जीवन बोझीला हो जाता है।
     जो प्रेम परमात्मा को करना चाहिए वह प्रेम अगर मोहवश होकर कुटुम्ब में केन्द्रित किया तो कुटुम्ब तुम्हें धोखा देगा। जो कर्म परमात्मा के नाते करना चाहिए वे ही कर्म अगर अहंकार पोसने के लिए किये तो जिनके वास्ते किये वे लोग ही तुम्हारे शत्रु बन जाएँगे। जो जीवन जीवनदाता को पाने के लिए मिला है, वह अगर हाड़-मांस के लिए खर्च किया तो वही जीवन बोझीला हो जाता है।

    Tuesday, May 11, 2010

    हे नाथ ! हे मेरे नाथ! । छोटा बालक रोता है तो माँ आ ही जाती है । बालक घरका कुछ काम नहीं करता, पर जब वह रोने लगता है, तब माँको सब काम छोडकर बालकको उठाना पडता है । बालकका एकमात्र बल रोना ही है—‘बालानां रोदनं बलम्’ । रोनेमें बड़ी ताकत है । सच्चे ह्रदयसे व्याकुल होकर यह बालक आपको पुकार रहा है, आपके लिए रो रहा है ! आपको आकर उठाना ही पड़ेगा

    Monday, May 10, 2010

    रैन की बिछड़ी चाकवी, आन मिले प्रभात।




    सत्य का बिछड़ा मानखा, दिवस मिले न ही रात।।



    हे चिड़िया ! सन्ध्या हुई। तू मुझसे बिछड़ जायेगी, दूसरे घोंसले में चली जाएगी किन्तु प्रभात को तू फिर मुझे मिल जायेगी लेकिन मनुष्य जन्म पाकर भी उस सत्य स्वरूप परमात्मा के सत्य से बिछड़नेवाला मनुष्य पुनः सत्य से न सुबह मिलेगा, न शाम को, न रात में मिलेगा न दिन में।
     लक्ष्य न ओझल होने पाये, कदम मिलाकर चल।
    सफलता तेरे चरण चूमेगी, आज नहीं तो कल।।

    आदर तथा आनादर , वचन बुरे या भले , निंदा स्तुति जगत की धर जुते की तल्ले ... हरी हरी ॐ
     हे देवाधिदेव महादेव ! हे सच्ग्क्गीदानंद! काल आपके अधीन है ,आप काल से मुक्त हैं ! जिसे मृत्यु जीतनी है ,उसे तो आपमें स्थित होना चाहिय ! आपका मन्त्र मृत्युँजय है !
     है शंकर ! है शिवा ! आप त्र्यम्बक अर्थात तीन नेत्रों वाले हैं ! सत्यम ,शिवम और सुन्दरम आपके तीन नेत्र हैं ! आप ज्ञान ,कर्म और भक्ती को धारण करते हैं !भू:, भुव: और स्व: -भूमि ,अंतरिक्ष ,और धुलोक सब आपमें ही व्याप्त है ! जीवन ,मृत्यु और मुक्ति तीनों ही आपके नेत्र हैं ! आप बालचन्द्र ,गंगा और शक्ति -तीनों को धारण करते है ! आप जग का कल्याण करते हैं ! प्रभु ! हम कल्याण मार्ग के पथि
    जो भी लोग सत्संग ध्यान से सुनते हैं वो बुद्धिमान बनते हैं बड़ी-बड़ीतपस्या से भी अदमी इतना बुद्धिमान नहीं होता जितना सत्संग से हो जाता हैसत्संग से जो भी बुद्धि का विकास होता है, भाग्य का उदय होता है, वह राज्यसत्ता मिलने से भी नहीं होता
     हे वत्स !उठ.... ऊपर उठ।प्रगति के सोपान एक के बाद एकतय करता जा।दृढ़ निश्चय कर कि'अब अपना जीवनदिव्यता की तरफ लाऊँगा।
    सत्य को सुनो, इसके भीतर जाओ, इसे गुनो, इसे भूल जाओ, और जितना तुम इसे पढ़ पाओगे, उतनी ही इससे मुक्त होने की तुममें क्षमता आयेगी। इसे समझने की क्षमता और इससे मुक्त होने की क्षमता एक ही घटना के दो नाम है।
    बीते हुएकी चिन्ता न करो, जो अब करना है, उसे विचारो और विचारो यही की बाकिका सारा जीवन केवल उस परमात्माके ही काममें आवे |

    Sunday, May 9, 2010

    भगवान् को साथ रखकर काम करनेसे ही पापोंसे रक्षा और कार्य में सफलता होती है

    (आनंद की लहरें - पेज ६
    सच्ची जिज्ञासा रहनेसे उसमें एक व्याकुलता पैदा होती है कि ‘मैंने इतना जान लिया, पर मेरेमें कोई फर्क नहीं पड़ा, कोई विलक्षणता नहीं आयी ! राग-द्वेष, हर्ष-शोक वही होते हैं !’ ऐसी व्याकुलता होनेपर वह अहम् से सर्वथा विमुख हो जाता है । अहम् से सर्वथा विमुख होनेपर जिज्ञासु नहीं रहता, प्रत्युत शुद्ध जिज्ञासा रह जाती है और वह जिज्ञासा ज्ञान (बोध) में परिणत हो जाती है ।
    भगवानके सभी नाम एक-से हैं, सब में सामान शक्ति है, सभी पूर्ण हैं; तथापि जिस नाममें अपनी रूचि हो, जिसमें मन लगता हो और सदगुरु अथवा सन्त ने जिस नामका उपदेश किया हो, उसीका जप करना उत्तम है!

    Sunday, May 2, 2010

    चित्त की मधुरता से, बुद्धि की स्थिरता से सारे दुःख दूर हो जाते हैं। चित्त की प्रसन्नता से दुःख तो दूर होते ही हैं लेकिन भगवद-भक्ति और भगवान में भी मन लगता है। इसीलिए कपड़ा बिगड़ जाये तो ज्यादा चिन्ता नहीं, दाल बिगड़ जाये तो बहुत फिकर नहीं, रूपया बिगड़ जाये तो ज्यादा फिकर नहीं लेकिन अपना दिल मत बिगड़ने देना।

    Saturday, May 1, 2010

    ‘हे प्रभु ! हे दया के सागर ! तेरे द्वार पर आये हैं । तेरे पास कोई कमी नहीं । तू हमें बल दे, तू हमें हिम्मत दे कि तेरे मार्ग पर कदम रखे हैं तो पँहुचकर ही रहें । हे मेरे प्रभु ! देह की ममता को तोड़कर तेरे साथ अपने दिल को जोड़ लें