Tuesday, October 5, 2010

 सुमिरन इस तरह करो जैसे कामी एक क्षण के लिए भी स्त्री को नहीं भूलता, जैसे गौ घास चरती हुई भी बछड़े को याद रखती है, जैसे कंगाल अपने पैसे सम्हाल करता है,जैसे बिना संकोच के पतंग दीपशिखा में जल मरता है, परंतु उसके रूप को भूलता नहीं, जैसे मछली जल से बिछुड़ने पर प्राणत्याग कर देती है, परंतु उसे भूलती नहीं।'
प्यास लगी हों और कोई आदमी पानी की तरफ ना जाकर, अग्नि की तरफ जाए तो प्यास मिटेगी नहीं, तपन और बढ जाएगी। जो कुछ भी मिलेगा ना हमकों, वो कुछ पाए हुए महापुरुषों से मिलेगा, जिसनें कुछ पाया नहीं वो हमकों कुछ दे सकता नहीं हैं। जो व्यक्ति भगवान कों छोड़ कर और सबक़ों पानें में लग जाता हैं, वह कुछ पाता नहीं हैं।
 शरीर नाशवान है। संसार के पदार्थ भी मिथ्या ही हैं, केवल आत्मा ही सत्य एवं शाश्वत है। मनुष्य शरीर, जाति, धर्म आदि से अपनी एकता करके उनका अभिमान करने लगता है और उनके अनुसार स्वयं को कई बंधनों में बाँध लेता है। इससे उसका मन अशुद्ध रहता है। विचार, वाणी और व्यवहार में सच्चाई एवं पवित्रता रखने से मन पवित्र होता है।
 उस परमात्मा को वोही जान सकता जिस को परमात्मा जगाना चाहते है उसी पर वो कृपा करता है…वो सभी प्राणी मात्र का सुहुर्द है जो बच्चा सच्चे ह्रदय से पुकारेगा, माँ वही जायेगी…. ऐसे अन्तात्मा भगवान को पुकार रहे है ये पुकार है…. तपस्या से सिमित फल मिलता है…