भगवान के द्वारा मेरे लिये जो कुछ भी विधान होगा वह मंगलमय हो होगा। पूरी
परिस्थिति मेरी समझ में आये या न आये यह बात दूसरी है, पर भगवान का विधान तो
मेरे लिए कल्याणकारी ही है, इसमें कोई सन्देह नहीं। इसलिए जो कुछ होता है वह
मेरे कर्मों का फल नहीं है, प्रत्युत भगवान के द्वारा कृपा करके केवल मेरे हित
के लिए भेजा हुआ विधान है।
Thursday, November 4, 2010
Tuesday, October 5, 2010
सुमिरन इस तरह करो जैसे कामी एक क्षण के लिए भी स्त्री को नहीं भूलता, जैसे गौ घास चरती हुई भी बछड़े को याद रखती है, जैसे कंगाल अपने पैसे सम्हाल करता है,जैसे बिना संकोच के पतंग दीपशिखा में जल मरता है, परंतु उसके रूप को भूलता नहीं, जैसे मछली जल से बिछुड़ने पर प्राणत्याग कर देती है, परंतु उसे भूलती नहीं।'
प्यास लगी हों और कोई आदमी पानी की तरफ ना जाकर, अग्नि की तरफ जाए तो प्यास मिटेगी नहीं, तपन और बढ जाएगी। जो कुछ भी मिलेगा ना हमकों, वो कुछ पाए हुए महापुरुषों से मिलेगा, जिसनें कुछ पाया नहीं वो हमकों कुछ दे सकता नहीं हैं। जो व्यक्ति भगवान कों छोड़ कर और सबक़ों पानें में लग जाता हैं, वह कुछ पाता नहीं हैं।
शरीर नाशवान है। संसार के पदार्थ भी मिथ्या ही हैं, केवल आत्मा ही सत्य एवं शाश्वत है। मनुष्य शरीर, जाति, धर्म आदि से अपनी एकता करके उनका अभिमान करने लगता है और उनके अनुसार स्वयं को कई बंधनों में बाँध लेता है। इससे उसका मन अशुद्ध रहता है। विचार, वाणी और व्यवहार में सच्चाई एवं पवित्रता रखने से मन पवित्र होता है।
Sunday, July 4, 2010
ईश्वरीय विधान में हम जितना अडिग रहते हैं उतनी ही प्रकृति अनुकूल हो जाती है। ईश्वरीय विधान में कम अडिग रहते है तो प्रकृति कम अनुकूल रहती है
ईश्वरीय विधान हमारी तरक्की.... तरक्की.... और तरक्की ही चाहता है। जब थप्पड़ पड़ती है तब भी हेतु तरक्की का है। जब अनुकूलता मिलती है तब ईश्वरीय विधान का हेतु हमारी तरक्की का है
ईश्वरीय विधान हमारी तरक्की.... तरक्की.... और तरक्की ही चाहता है। जब थप्पड़ पड़ती है तब भी हेतु तरक्की का है। जब अनुकूलता मिलती है तब ईश्वरीय विधान का हेतु हमारी तरक्की का है
Ishwar ki pratyek leela me sukh, shanti, anand ka samavesh hai. Tum apni nazar ishwer ki nazar se milakar to dekho. Tumhe ye anubhav hoga ke tum bhi sukhswaroop ho
Bahar koi sahara nahi hai, saccha sahara to tumhara antaryami PARMATMA hai, jitne tum unke karib hote ho utna jagat tumhari anukulta karta hai aur jitna tum usse dur hote ho utna hi jagat bhi tumhe thukrata hai
Bahar koi sahara nahi hai, saccha sahara to tumhara antaryami PARMATMA hai, jitne tum unke karib hote ho utna jagat tumhari anukulta karta hai aur jitna tum usse dur hote ho utna hi jagat bhi tumhe thukrata hai
हे दयालु दाता। हमें ऐसा आशीर्वाद दीजिए कि हम प्रत्येक दिन को शुभ अवसर बना सकें। प्रत्येक दिन की चुनौती का सामना करने के लिए हमें ऐसी शक्ति प्रदान कीजिए कि जिससे हम संघर्ष में विजयी हों। हमारे द्वारा संसार में कुछ भी बुरा न हो, प्रेमपूर्ण वातावरण में श्वास ले सकें तथा प्रेम को संपूर्ण संसार में बाँट सकें।
Friday, July 2, 2010
Wednesday, June 30, 2010
भगवदसुमरिन का,
परिस्थितियों में सम रहने की सजगता का, परमात्म-विश्रान्ति का, आकाश में
एकटक निहारने का, श्वासोच्छवास में सोऽहं जप द्वारा समाधि-सुख में जाने का
आदरसहित अभ्यास करना। कभी-कभी एकांत में समय गुजारना, विचार करना कि इतना
मिल गया आखिर क्या ? अपने को स्वार्थ
... से बचाना। स्वार्थरहित कार्य ईश्वर को कर्जदार बना देता है
परिस्थितियों में सम रहने की सजगता का, परमात्म-विश्रान्ति का, आकाश में
एकटक निहारने का, श्वासोच्छवास में सोऽहं जप द्वारा समाधि-सुख में जाने का
आदरसहित अभ्यास करना। कभी-कभी एकांत में समय गुजारना, विचार करना कि इतना
मिल गया आखिर क्या ? अपने को स्वार्थ
... से बचाना। स्वार्थरहित कार्य ईश्वर को कर्जदार बना देता है
आत्मवेत्ता महापुरुष जब हमारे अन्तःकरण का संचालन करते हैं, तभी अन्तःकरण परमात्म-तत्त्व में स्थित हो सकता है, नहीं तो किसी अवस्था में, मान्यता में, वृत्ति में, आदत में साधक रुक जाता है। । उससे आगे जाना है तो महापुरुषों के आगे बिल्कुल 'मर जाना' पड़ेगा। ब्रह्मवेत्ता सदगुरु के हाथों में जब हमारे 'मैं' की लगाम आती है, तब आगे की यात्रा आती है।
Monday, June 28, 2010
प्रार्थना
प्रार्थना
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुर्साक्षात्परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
ध्यानमूलं गुरोर्मूतिः पूजामूलम गुरो पदम्।
मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा।।
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव।।
ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं।
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं
भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि।।
ॐ गुरु ॐ गुरु
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुर्साक्षात्परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
ध्यानमूलं गुरोर्मूतिः पूजामूलम गुरो पदम्।
मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा।।
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव।।
ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं।
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं
भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि।।
ॐ गुरु ॐ गुरु
संसार में माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी के सम्बन्ध की तरह गुरु-शिष्य का सम्बन्ध भी एक सम्बन्ध ही है लेकिन अन्य सब सम्बन्ध बन्धन बढ़ाने वाले हैं जबकि गुरु-शिष्य का सम्बन्ध सम बन्धनों से मुक्ति दिलाता है। यह सम्बन्ध एक ऐसा सम्बन्ध है जो सब बन्धनों से छुड़ाकर अन्त में आप भी हट जाता है और जीव को अपने शिवस्वरूप का अनुभव करा देता है।
Sunday, May 30, 2010
सर्वस्व जाय तो भी कभी किसी निमितसे कहीं किंचिन्मात्र भी पाप न करे,न करवावे और न उसमें सहमत ही हो
ममता की छांव में, हम आपने गाँव में बगिया में तोड़े वो आम बड़े कच्चे थे तब जब हम बच्चे थे...... चांदनी की रातों में, दादी के पहलू में सुनते थे किस्से जो, लगते वो सच्चे थे तब जब हम बच्चे थे........... गैया का दूध दुहे, नन्हे से हांथो से प्यारे बछडे उसके, तब लगते अच्छे थे तब जब हम बच्चे थे...........
आकार वो बैठ गयी, घर में बिन बात के बकबक काकी को तब, देते हम गच्चे थे तब जब हम बच्चे थे........... प्रातः उठकर बाबा, खेतों की ओर चलें चाहे कोई ऋतु हो, धुन के वो पक्के थे तब जब हम बच्चे थे.......... शहरों की चकाचौंध, मुझसे ना सही जाये बेहतर था गाँव, वहां हम इससे अच्छे थे तब जब हम बच्चे थे.........
Tuesday, May 18, 2010
जैसे प्रकाश के बिना पदार्थ का ज्ञान नहीं होता उसी प्रकार पुरुषार्थ के बिना कोई सिद्धि नही होती। जिस पुरुष ने अपना पुरुषार्थ त्याग दिया है और दैव (भाग्य) के आश्रय होकर समझता है कि "दैव हमारा कल्याण करेगा" तो वह कभी सिद्ध नहीं होगा। पत्थर से कभी तेल नहीं निकलता, वैसे ही दैव से कभी कल्याण नहीं होता। तुम दैव का आश्रय त्याग कर अपने पुरुषार्थ का आश्रय करो। जिसने अपना पुरुषार्थ त्यागा है उसको सुन्दरता, कान्ति और लक्ष्मी त्याग जाती है।
रैन की बिछड़ी चाकवी, आन मिले प्रभात।सत्य का बिछड़ा मानखा, दिवस मिले न ही रात।।हे चिड़िया ! सन्ध्या हुई। तू मुझसे बिछड़ जायेगी, दूसरे घोंसले में चली जाएगी किन्तु प्रभात को तू फिर मुझे मिल जायेगी लेकिन मनुष्य जन्म पाकर भी उस सत्य स्वरूप परमात्मा के सत्य से बिछड़नेवाला मनुष्य पुनः सत्य से न सुबह मिलेगा, न शाम को, न रात में मिलेगा न दिन में।
नम्रतापूर्वक पूज्यश्री सदगुरू के पदारविन्द के पास जाओ। सदगुरू के जीवनदायी चरणों में साष्टांग प्रणाम करो। सदगुरू के चरणकमल की शरण में जाओ। सदगुरू के पावन चरणों की पूजा करो। सदगुरू के पावन चरणों का ध्यान करो। सदगुरू के पावन चरणों में मूल्यवान अर्घ्य अर्पण करो। सदगुरू के यशःकारी चरणों की सेवा में जीवन अर्पण करो। सदगुरू के दैवी चरणों की धूलि बन जाओ।
जैसे स्वप्न में मिली हुई सजा जागृत अवस्था में नहीं रहती, दूध में से घी निकलने के बाद वह दूध में नहीं मिलता अपितु पृथक ही रहता है, लकड़ी जल जाने के बाद वह अग्निरूप हो जाती है और लकड़ी का कहीं नामोनिशान नहीं रहता है, उसी प्रकार संसारस्वप्न में से जो जीव जाग जाता है उसे फिर संसार स्वप्न की कैद में, माता के गर्भ में आने का दुर्भाग्य नहीं होता
हमारे पास खाने को पर्याप्त अन्न, पहनने को वस्त्र, रहने को घर होते हुए भी हम भीतर से दुःखी क्यों हैं? दीन क्यों है ? अशान्त क्यों हैं ? क्योंकि हम लोग अपने भीतर की चेतना जगाने की तरकीब भूल गये हैं, अन्तर में निहित आनन्दसागर से संपर्क खो बैठे हैं, परमात्मा का अनुसंधान करने के संपर्क-सूत्र छोड़ बैठे हैं, मंत्रजप एवं उसके विधि-विधान त्याग चुके हैं।
Sunday, May 16, 2010
लक्ष्य जितना ऊँचा होता है उतने ही संकल्प
शुद्ध होते हैं। ऊँचा लक्ष्य है मोक्ष,परमात्मा-प्राप्ति, , अनन्त
ब्रह्माण्डनायक ईश्वर से मिलना। ऊँचा लक्ष्य तुच्छ संकल्पों को दूर कर देता
है। ऊँचा संकल्प जितना दृढ़ होगा उतना ही तुच्छ संकल्पों को हटाने में
सफलता मिलेगी। तुच्छ संकल्पों को काट दिया जाएगा, ऊँचा जीवन, ऊँची
समझ, और ऊँचे में ऊँचे परमात्मा की
प्राप्ति सुलभ होगी।
शुद्ध होते हैं। ऊँचा लक्ष्य है मोक्ष,परमात्मा-प्राप्ति, , अनन्त
ब्रह्माण्डनायक ईश्वर से मिलना। ऊँचा लक्ष्य तुच्छ संकल्पों को दूर कर देता
है। ऊँचा संकल्प जितना दृढ़ होगा उतना ही तुच्छ संकल्पों को हटाने में
सफलता मिलेगी। तुच्छ संकल्पों को काट दिया जाएगा, ऊँचा जीवन, ऊँची
समझ, और ऊँचे में ऊँचे परमात्मा की
प्राप्ति सुलभ होगी।
सेवा वह उत्तम होती है,जिसमें सेवक का नामतक सेव्यको ज्ञात न हो सके।
सुख की लोलुपता कैसे छुटे?जानते हुए,कहते हुए,समझते हुए,पढ़ते हुए भी उसमें फँस जाते हैं!अत: उससे छुटनेके लिये बड़ा सीध सरल उपाय है कि दूसरे को सुख कैसे पहुँचे?यह भाव बना लें।घर में माँ-बाप को सुख कैसे हो?स्त्री को सुख कैसे हो?मेरे द्वारा क्या किया जाय,जिससे इनको सुख हो जाय?यह वृति अगर आपकी जोरदार हो जायेगी तो सुखभोग की रुचि मिट जायेगी।
सुख की लोलुपता कैसे छुटे?जानते हुए,कहते हुए,समझते हुए,पढ़ते हुए भी उसमें फँस जाते हैं!अत: उससे छुटनेके लिये बड़ा सीध सरल उपाय है कि दूसरे को सुख कैसे पहुँचे?यह भाव बना लें।घर में माँ-बाप को सुख कैसे हो?स्त्री को सुख कैसे हो?मेरे द्वारा क्या किया जाय,जिससे इनको सुख हो जाय?यह वृति अगर आपकी जोरदार हो जायेगी तो सुखभोग की रुचि मिट जायेगी।
सच्चा भक्त अपने किसी अनिष्टकी आशङ्कासे सन्मार्गका -ईश्वर-सेवाका कदापि त्याग नहीं करता।तन,मन,धन सभी कुछ प्रभुकी ही तो सम्पति है,फिर उन्हें प्रभुके काममें लगा देनेमें अनिष्ट कैसा?इसीसे यदि असहाय रोगीकी सेवा करते-करते भक्तके प्राण चले जाते हैं या भूखे-गरीबोंका पेट भरनेमें भक्तकी सारी समपति स्वाहा हो जाते है तो वह अपने को बड़ा भाग्यवान् समझता है।
Wednesday, May 12, 2010
जो प्रेम परमात्मा को करना चाहिए वह प्रेम अगर मोहवश होकर कुटुम्ब में केन्द्रित किया तो कुटुम्ब तुम्हें धोखा देगा। जो कर्म परमात्मा के नाते करना चाहिए वे ही कर्म अगर अहंकार पोसने के लिए किये तो जिनके वास्ते किये वे लोग ही तुम्हारे शत्रु बन जाएँगे। जो जीवन जीवनदाता को पाने के लिए मिला है, वह अगर हाड़-मांस के लिए खर्च किया तो वही जीवन बोझीला हो जाता है।
जो प्रेम परमात्मा को करना चाहिए वह प्रेम अगर मोहवश होकर कुटुम्ब में केन्द्रित किया तो कुटुम्ब तुम्हें धोखा देगा। जो कर्म परमात्मा के नाते करना चाहिए वे ही कर्म अगर अहंकार पोसने के लिए किये तो जिनके वास्ते किये वे लोग ही तुम्हारे शत्रु बन जाएँगे। जो जीवन जीवनदाता को पाने के लिए मिला है, वह अगर हाड़-मांस के लिए खर्च किया तो वही जीवन बोझीला हो जाता है।
Tuesday, May 11, 2010
हे नाथ ! हे मेरे नाथ! । छोटा बालक रोता है तो माँ आ ही जाती है । बालक घरका कुछ काम नहीं करता, पर जब वह रोने लगता है, तब माँको सब काम छोडकर बालकको उठाना पडता है । बालकका एकमात्र बल रोना ही है—‘बालानां रोदनं बलम्’ । रोनेमें बड़ी ताकत है । सच्चे ह्रदयसे व्याकुल होकर यह बालक आपको पुकार रहा है, आपके लिए रो रहा है ! आपको आकर उठाना ही पड़ेगा
Monday, May 10, 2010
रैन की बिछड़ी चाकवी, आन मिले प्रभात।
सत्य का बिछड़ा मानखा, दिवस मिले न ही रात।।
हे चिड़िया ! सन्ध्या हुई। तू मुझसे बिछड़ जायेगी, दूसरे घोंसले में चली जाएगी किन्तु प्रभात को तू फिर मुझे मिल जायेगी लेकिन मनुष्य जन्म पाकर भी उस सत्य स्वरूप परमात्मा के सत्य से बिछड़नेवाला मनुष्य पुनः सत्य से न सुबह मिलेगा, न शाम को, न रात में मिलेगा न दिन में।
सत्य का बिछड़ा मानखा, दिवस मिले न ही रात।।
हे चिड़िया ! सन्ध्या हुई। तू मुझसे बिछड़ जायेगी, दूसरे घोंसले में चली जाएगी किन्तु प्रभात को तू फिर मुझे मिल जायेगी लेकिन मनुष्य जन्म पाकर भी उस सत्य स्वरूप परमात्मा के सत्य से बिछड़नेवाला मनुष्य पुनः सत्य से न सुबह मिलेगा, न शाम को, न रात में मिलेगा न दिन में।
हे देवाधिदेव महादेव ! हे सच्ग्क्गीदानंद! काल आपके अधीन है ,आप काल से मुक्त हैं ! जिसे मृत्यु जीतनी है ,उसे तो आपमें स्थित होना चाहिय ! आपका मन्त्र मृत्युँजय है !
है शंकर ! है शिवा ! आप त्र्यम्बक अर्थात तीन नेत्रों वाले हैं ! सत्यम ,शिवम और सुन्दरम आपके तीन नेत्र हैं ! आप ज्ञान ,कर्म और भक्ती को धारण करते हैं !भू:, भुव: और स्व: -भूमि ,अंतरिक्ष ,और धुलोक सब आपमें ही व्याप्त है ! जीवन ,मृत्यु और मुक्ति तीनों ही आपके नेत्र हैं ! आप बालचन्द्र ,गंगा और शक्ति -तीनों को धारण करते है ! आप जग का कल्याण करते हैं ! प्रभु ! हम कल्याण मार्ग के पथि
है शंकर ! है शिवा ! आप त्र्यम्बक अर्थात तीन नेत्रों वाले हैं ! सत्यम ,शिवम और सुन्दरम आपके तीन नेत्र हैं ! आप ज्ञान ,कर्म और भक्ती को धारण करते हैं !भू:, भुव: और स्व: -भूमि ,अंतरिक्ष ,और धुलोक सब आपमें ही व्याप्त है ! जीवन ,मृत्यु और मुक्ति तीनों ही आपके नेत्र हैं ! आप बालचन्द्र ,गंगा और शक्ति -तीनों को धारण करते है ! आप जग का कल्याण करते हैं ! प्रभु ! हम कल्याण मार्ग के पथि
Sunday, May 9, 2010
सच्ची जिज्ञासा रहनेसे उसमें एक व्याकुलता पैदा होती है कि ‘मैंने इतना जान लिया, पर मेरेमें कोई फर्क नहीं पड़ा, कोई विलक्षणता नहीं आयी ! राग-द्वेष, हर्ष-शोक वही होते हैं !’ ऐसी व्याकुलता होनेपर वह अहम् से सर्वथा विमुख हो जाता है । अहम् से सर्वथा विमुख होनेपर जिज्ञासु नहीं रहता, प्रत्युत शुद्ध जिज्ञासा रह जाती है और वह जिज्ञासा ज्ञान (बोध) में परिणत हो जाती है ।
Sunday, May 2, 2010
चित्त की मधुरता से, बुद्धि की स्थिरता से सारे दुःख दूर हो जाते हैं। चित्त की प्रसन्नता से दुःख तो दूर होते ही हैं लेकिन भगवद-भक्ति और भगवान में भी मन लगता है। इसीलिए कपड़ा बिगड़ जाये तो ज्यादा चिन्ता नहीं, दाल बिगड़ जाये तो बहुत फिकर नहीं, रूपया बिगड़ जाये तो ज्यादा फिकर नहीं लेकिन अपना दिल मत बिगड़ने देना।
Saturday, May 1, 2010
Thursday, April 29, 2010
भूल से उत्पन्न हुई असावधानी और असावधानी से उत्पन्न एवं पोषित दोषों को मिटाने में अपने को असमर्थ स्वीकार करना और नित्य प्राप्त,स्वत: सिद्ध निर्दोषता से निराश होना मानव-जीवन का घोर अनादर है।यह नियम है कि जो अपना आदर नहीं करता,उसका कोई आदर नहीं करता।अपने आदर का अर्थ दूसरों का अनादर नहीं है,अपितु दूसरों के अनादर से तो अपना ही अनादर होने लगता है;क्योंकि जो किसी को भी दोषी मानता है,वह स्वयं निर्दोष नहीं हो सकता।
Wednesday, April 28, 2010
भयंकर से भयंकर परिस्थिति आ जाय,तब भी कह दो-"आओ मेरे प्यारे!आओ,आओ,आओ।तुम कोई और नहीं हो।मैं तुम्हें जानता हूँ।तुमने मेरे लिये आवश्यक समझा होगा कि मैं दु:ख के वेश में आऊँ,इसलिये तुम दु:ख के वेश में आये हो।स्वागतम्!वैलकम्! आओ आओ चले आओ!" आप देखेंगे कि वह प्रतिकूलता आपके लिये इतनी उपयोगी सिद्ध होगी कि जिस पर अनेकों अनुकूलतायें निछावर की जा सकती है।
तुम अपने आप हो आत्मा, दूसरा है शरीर। स्व है आत्मा और पर है शरीर। शरीर के लिए सन्देह रहेगा कि यह शरीर कैसा रहेगा ? बुढ़ापा अच्छा जाएगा कि नहीं ? मृत्यु कैसी होगी ? लेकिन आत्मा के बारे में ऐसा कोई सन्देह, चिन्ता या भय नहीं होगा। आत्म-स्वरूप से अगर मैं की स्मृति हो जाए तो फिर बुढ़ापा जैसे जाता हो, जाय.... जवानी जैसे जाती हो, जाय.... बचपन जैसे जाता हो, जाय.....
Monday, April 26, 2010
रीत-रिवाज जानने वाले लोग बहुत हैं, यज्ञ याग करके सिद्धियाँ पाने की इच्छावाले लोग बहुत हो सकते हैं। भगवान की प्रीति के लिए जो कर्म करते हैं, यज्ञ करते हैं वे विरले हैं। काम-विकार से प्रेरित होकर बच्चों को जन्म देने वाले लोग तो कई होते हैं, भगवान की प्रसन्नता के लिए संसार का कार्य करने वाले कोई विरले हैं। जो कुछ करो, भगवान की प्रसन्नता के लिए करो।
आपका जीवन आपकी श्रद्धा के अनुसार ही होगा। जीवन को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मनुष्य को अपना जीवन उत्साह, उमंग एवं उल्लास के साथ जीना चाहिए एवं अपनी शक्तियों पर विश्वास रखकर, सफलता के पथ पर आगे बढ़ते रहना चाहिए। श्रद्धा ही हमें सच्चे अर्थ में जीवन जीना सिखाती है। जहाँ से जीवन-प्रवाह चलता है उस शक्ति-स्रोत का द्वार हमारी श्रद्धा ही
O' Lord besides You who else will support us - the poor wretched, suffering ones? After looking at us, now pull us toward your Lotus Feet and place us there. We do not want liberation, we do not want Your abode, we do not want our name in heaven or hell,. You simply make us unconscious and mad in the dust of Your Lotus Feet. On taking Your Name, let tears of joy flow from my eyes, and the voice inarticulate with emotion stalls and the entire body and it's every pour is filled with ecstacy
In difficulties, we remember God. We forget God in the midst of running after worldly sense enjoyments that are temporary and worthless. Therefore inbetween by giving us some difficulties, God is alerting us to not forget Him. Without that our state would be terrible. This human body has not been received for sense enjoyments. It has been received only to realize Me - therefore do not waste it away on useless activities
Saturday, April 24, 2010
हमारेपर भगवान् की कृपानिरन्तर होरही है परहम उधर देखतेही नहीं!हमउस कृपाकी अवज्ञा करते हैं,निरादर करते हैं,फिरभी भगवान् अपना कृपालु स्वभाव नहीं छोड़ते,कृपा करतेही रहते हैं।बालक माँकाकोई कम निरादर नहीं करता।कहीं पेशाब कर देता है,कहीं थूकदेता है पर माँ सब कुछ सहलेती है।हमभी उल्टे चलनेमें बालककी तरह तेज हैं,पर कृपा करनेमें भगवान् भी माँसे कम तेजनहीं हैं! इसलिये हमें उनकी कॄपाका भरोसा रखना चाहिये।
Thursday, April 22, 2010
सुखमें विकास नहींहोता,इसमेंपुराने पुण्य नष्ट होतेहैं और सुखभोगमें उलझ जानेके कारण आगे उन्नतिनहीं होती।जोप्रतिकूलता आनेपरभी साधनकरता रहताहै,वह अनुकूलतामेंभी सुगमतापूर्वकसाधन करसकता है।इसलियेगृहस्थका उद्धारजल्दीहोताहै,परसाधुका उद्धारजल्दीनहींहोता।कारणकि साधुतो थोड़ीभी प्रतिकूलतासह नहींसकता औरप्रतिकूलता आनेपर कमण्डलुउठाकर चलदेता है,पर गृहस्थ प्रतिकूलता आनेपर कहाँ जाय?वह माँ-बाप,स्त्री-पुत्रको कैसे छोड़े?
Tuesday, April 20, 2010
हमारे अधिकार तभी सुरक्षित रह सकते हैं,जब हमारे साथी कर्तव्य-परायण हों;और हमारे साथियों के अधिकार तभी सुरक्षित होंगे,जब हम कर्तव्यनिष्ठ हों। हमारे कर्तव्यनिष्ठा ही हमारे साथियों में कर्तव्य परायणता उत्पन्न करेगी;क्योंकि, जिसके अधिकार सुरक्षित हो जाते हैं,उसके हृदय में हमारे प्रति प्रीति स्वत: उत्पन्न हो जाती है,जो उसे कर्तव्य-परायण होने के लिए विवश करे
भगवान् कीतो बड़ी हीदया है।भगवान् यदि मनुष्य-जन्म नहींदेते तोहम स्वयं क्या करसकते थे।उनपरअपना क्याजोर था।हमारा जन्म आर्यावर्तमें हुआ जोकि आध्यात्मिकतासे भरी हुई भूमि है।अन्यत्रकी भूमि भोग-भूमि है।इसके साथ भगवच्चर्चाका अवसर।इतनी बातें एकत्र मिल जानेके बाद कल्याणमें क्या शंका हो सकती है।’कल्याण तो निश्चय ही होगा ’ऐसा माननेमें क्या आपति!
हे नाथ! हमें आपके चरित्र अच्छे लगें,आपकी लीला अच्छी लगे,आपके गुण अच्छे लगे,तो यह आपके कृपा ही है,हमारा कोई बल नहीं है।आज जो हम आपका नाम ले रहे हैं,आपकी चर्चा सुन रहे हैं,आपमें लगे हुए हैं,यह केवल आपकी ही कृपा है।काम,क्रोध,लोभ,मोह,मद जैसे कितने-कितने अवगुण भरे हुए हैं और कैसा कलियुग का समय है! ऐसे समयमें आपके तरफ वृति होती है तो यह केवल आपकी कृपा है।
Monday, April 19, 2010
मूलस्वरूप में तुम शान्त ब्रह्म हो। अज्ञानवश देह में आ गये और अनुकूलता मिली तो वृत्ति एक प्रकार की होगी, प्रतिकूलता मिली तो वृत्ति दूसरे प्रकार की होगी, साधन-भजन मिला, सेवा मिली तो वृत्ति थोड़ी सूक्ष्म बन जाएगी। जब अपने को ब्रह्मस्वरूप में जान लिया तो बेड़ा पार हो जाएगा। फिर हाँ हाँ सबकी करेंगे लेकिन गली अपनी नहीं भूलेंगे।
हे प्रभो! थोड़ी-सी योग्यताआते ही हमेंअभिमान होजाता है! योग्यतातो थोड़ी होती है,पर मान लेते हैंकि हमतो बहुत बड़े होगये,बड़े भक्त बन गये,बड़े त्यागी,बन गये!भीतरमें यह अभिमानभरा है नाथ! आपकी ऐसीबात सुनी हैकि आप अभिमानसे द्वेश करते हो और दैन्यसे प्रेम करते हो।अगर आपको अभिमान सुहाता नहीं हैतो फिरउसको मिटादो,दूर करदो।बालककीचड़से सना होऔर गोदीमें जाना चाहता होतो
पानी तो वही का वही लेकिन समयानुसार उपयोग का असर पृथक-पृथक होता है। ऐसे ही मन तो वही, शरीर भी वही लेकिन किस समय शरीर से, मन से क्या काम लेना है इस प्रकार का ज्ञान जिसके पास है वह मुक्त हो जाता है। अन्यथा कितने ही मंदिर-मस्जिदों में जोड़ो एवं नाक रगड़ो, दुःख और चिन्ता तो बनी ही रहेगी।
कभी न छूटे पिण्ड दुःखों से।
जिसे ब्रह्म का ज्ञान नहीं।।
कभी न छूटे पिण्ड दुःखों से।
जिसे ब्रह्म का ज्ञान नहीं।।
अपने लिए तो कई जिंदगी बर्बाद हो गयी , लेकिन धर्म के लिए ….धर्मं के लिए गांधीजी भी जेल गए , नानक भी तो गए , बाबर ने नानक जी को जेल डाला ….फिर भी नानक अभी भी हमारे दिलों में आदरणीय हैं …..ऐसे ही बुद्ध कितना दुष्ट लोगों ने
ऐसे ही बुद्ध कितना दुष्ट लोगों ने साजिशें की …..वैश्या आके बोलती थी बुद्ध तो मेरे साथ ही सोते हैं ….गुनाह तो किसी ने किया , आरोप बुद्ध पर आ गए …..
ऐसे ही बुद्ध कितना दुष्ट लोगों ने साजिशें की …..वैश्या आके बोलती थी बुद्ध तो मेरे साथ ही सोते हैं ….गुनाह तो किसी ने किया , आरोप बुद्ध पर आ गए …..
Sunday, April 18, 2010
Saturday, April 17, 2010
सजदा
मै सोचता हु हज को न आऊ न जाऊ काशी और मथुरा और ना चारो धाम पहले खुद को पवित्र तो कर लू मन से और तन से सच्ची भावनाओ के स्पर्श से .. मै वैसे ही आ जाऊ तेरे पास जैसा तुने भेजा था पाक , पवित्र , कोमल , सच्चा ,.. फिर आ जाऊंगा तेरे पास सिर्फ एक इल्तजा है मेरी मेरा सजदा कुबुल कर ले
निर्दोषता की अभिव्यक्ति तभी सुरक्षित रह सकती है,जब किसी के प्रति वैर-भाव की गन्ध तक न रहे।यह तभी सम्भव है जब किसी के प्रति भी दोषी भाव न रहे,अर्थात् अपने प्रति होने वाली बुराई का कारण भी अपने को ही मान लिया जाय।जिन्हें दोषी मान लिया है,यदि किसी कारण उन्हें निर्दोष माननेमें असमर्थता प्रतीत हो,तो उन्हें अनजान बालककी भाँति क्षमा कर दिया जाय।
प्रेम
सभीको प्रेमभरी मधुरता और सहानुभूतिभरी आँखोंसे देखो। याद रखो- सुखी जीवनके लिये प्रेम ही असली खुराक है। संसार इसीकी भूखसे मर रहा है! अतएव प्रेम वितरण करो- अपने हॄदयके प्रेमको हृदयमें ही मत छिपा रखो। उसे उदारताके साथ बाँटो। जगत्का बहुत-सा दु:ख दूर हो जायगा।
शरण
यदि कहें कि किस बातको लेकर खुश रहें तो इसका उत्तर यह है कि भगवान् की दयाको देख-देखकर।देखो,भगवान् की तुमपर कितनी दया है। अपार दया समझकर इतना आनन्द होना चाहिये कि वह हृदयमें समावे नहीं।हर समय आनन्दमें मुग्ध रहें।बार-बार प्रसन्न होवें।अहा प्रभुकी कितनी दया है।यही सबसे बढ़कर साधन है और यही भक्ति है एवं इसीका नाम शरण है।
Wednesday, April 14, 2010
पिघले हुए चपड़ेमें जैसा भी रंग डाल दिया जाय,वह वैसा ही रंग वाला बन जाता है।इसी तरह किसीका हृदय जब पिघल जाता है तब बहुत ही अच्छा रंग चढ़ता है।जिन पुरुषोंका हृदय भगवान् के विरह की व्याकुलता में पिघला है,उनके चरित्र को करुणाभाव या प्रेमभाव से याद करे।ऐसा करने से हृदय एकदम पिघल जाता है।यदि आदमी का हृदय व्याकुल हो जाय तो उसका जीवन बहुत ही बदल जाय।
Tuesday, April 13, 2010
अपने से सुखियों को देखकर आप प्रसन्न हो जायं।अपने से दुखियों को देख कर आप करुणित हो जायं।जिस हृदय में करुणा निवास करती है उस हृदयमें भोग की रुचि नहीं रहती।और जिस चित्त में प्रसन्नता निवास करती है,उसमें काम की उत्पति नहीं होती।आप हो जायेंगे भोग की वासना से रहित और काम से रहित।यह भौतिक जीवन की पराकाष्टा हो गई।
Monday, April 12, 2010
जैसे बच्चा माँसे दूर चला जाय तो माँ को उसकी बहुत याद आती है।माताओं की ऐसी बात सुनी हैं।दीपावली,अक्षय तृतीया आदि त्यौहार आते हैं तो माताएँ कहती हैं कि क्या बनायें? लड़का तो घर पर है नहीं,अच्छी चीज बनाकर किसको खिलायें?ऐसे ही भगवान् के लड़के हमलोग चले गये विदेशमें!अब भगवान् कहते हैं कि क्या करुँ?क्या दूँ?लड़का तो घरपर ही नही है!वह तो धन-सम्पति की तरफ लगा है,खेल-कू
वह तो धन-सम्पति की तरफ लगा है,खेल-कूद में लगा है!
तुम यदि अपनेको भगवान् के प्रति सौंप देते हो,अपनी इच्छाओंको भगवान्की इच्छामें मिला देते हो एवं अपने ज्ञान और बलको भगवान् के ज्ञान और बल का अंश मान लेते हो तो निश्चय समझो-फिर तुम भगवान् की मङ्गलमयी इच्छासे मङ्गलमय बनकर केवल अपना ही कल्याण नहीं करोगे;तुम्हारा प्रत्येक विचार,तुम्हारा प्रत्येक निश्चय और तुम्हारी प्रत्येक क्...रिया अखिल जगत् का मङ्गल करोगे
वह तो धन-सम्पति की तरफ लगा है,खेल-कूद में लगा है!
तुम यदि अपनेको भगवान् के प्रति सौंप देते हो,अपनी इच्छाओंको भगवान्की इच्छामें मिला देते हो एवं अपने ज्ञान और बलको भगवान् के ज्ञान और बल का अंश मान लेते हो तो निश्चय समझो-फिर तुम भगवान् की मङ्गलमयी इच्छासे मङ्गलमय बनकर केवल अपना ही कल्याण नहीं करोगे;तुम्हारा प्रत्येक विचार,तुम्हारा प्रत्येक निश्चय और तुम्हारी प्रत्येक क्...रिया अखिल जगत् का मङ्गल करोगे
प्रयत्न के बिना कोई भी फल प्रगट नहीं होता। अतः प्रयत्न को उत्पन्न करने वाली आत्मश्रद्धा का जिसमें अभाव है उसका जीवन निष्क्रिय, निरुत्साही एवं निराशाजनक हो जाता है। जहाँ-जहाँ कोई छोटा-बड़ा प्रयत्न होता है वहाँ-वहाँ उसके मूल में आत्मश्रद्धा ही स्थित होती है और अंतःकरण में जब तक आत्मश्रद्धा स्थित होती है तब तक प्रयत्नों का प्रवाह अखंड रूप से बहता रहता है
Saturday, April 10, 2010
जो तुम्हारे दिल को चेतना देकर धड़कन दिलाता है, तुम्हारी आँखों को निहारने की शक्ति देता है, तुम्हारे कानों को सुनने की सत्ता देता है, तुम्हारी नासिका को सूँघने की सत्ता देता है और मन को संकल्प-विकल्प करने की स्फुरणा देता है उसे भरपूर स्नेह करो। तुम्हारी 'मैं....मैं...' जहाँ से स्फुरित होकर आ रही है उस उदगम स्थान को नहीं भी जानते हो फिर भी उसे धन्यवाद देते हुए स्नेह करो।
Guruvar teri charano ki pag dhul jo mil jaye
such kehta hu tumse takdir badal jaye
Sunate hai tari rehmat din rat barasati hai
ek bund jo mil jaye jivan hi bada jaye ...Guruvar..teri..................
Najaro se girana na chahe jitni saja denaaaaaaa
najaro se jo gir jaye muskil hi samhal payeyyyyyyyy.....Guruvar teri........
such kehta hu tumse takdir badal jaye
Sunate hai tari rehmat din rat barasati hai
ek bund jo mil jaye jivan hi bada jaye ...Guruvar..teri..................
Najaro se girana na chahe jitni saja denaaaaaaa
najaro se jo gir jaye muskil hi samhal payeyyyyyyyy.....Guruvar teri........
Friday, April 9, 2010
बालक जबतक जीता है, चाहे बड़ा हो जाये, माँ रक्षा करती ही है इश्वररुपी माँ मरनेवाली नहीं है, इसलिए हमें चिन्ता नहीं करनी चाहिए
हर स्थिति में हर जगहप्रभु की सहज कृपा पर विश्वाश करने वाले भक्त को प्रत्येक परिस्थिति में उनकी अनुकम्पा का अनुभव होता हैं. स्थितिया बदलती रहते हैं परन्तु उसे अटल विश्वास रहता हैं की प्रभु सदेव उसका कल्याण ही करते हैं , इसलिए वहा सर्वदा प्रमुदित रहता हैं.
भगवान् से कह दो-"हे प्रेमास्पद! भोग और मोक्ष की भूख मिटा दो, प्रियता की भूख जगा दो,अपने निर्मित जीवन को अपने लिये उपयोगी बना लो"। वे व्यथित हॄदय की पुकार शीघ्र सुनते हैं,यह निर्विवाद सत्य है। यद्दपि वे स्वत: सब कुछ जानते हैं,फिर भी व्यथित हृदय से पुकारती रहो।जैसे रखें वैसे रहो,पर अनेक रुपों में उन्हीं को देखते हुए अनेक प्रकार से उन्हीं को लाड़ लड़ओ।वे सदैव तुम्हारे और तुम उनकी हो।
हर स्थिति में हर जगहप्रभु की सहज कृपा पर विश्वाश करने वाले भक्त को प्रत्येक परिस्थिति में उनकी अनुकम्पा का अनुभव होता हैं. स्थितिया बदलती रहते हैं परन्तु उसे अटल विश्वास रहता हैं की प्रभु सदेव उसका कल्याण ही करते हैं , इसलिए वहा सर्वदा प्रमुदित रहता हैं.
भगवान् से कह दो-"हे प्रेमास्पद! भोग और मोक्ष की भूख मिटा दो, प्रियता की भूख जगा दो,अपने निर्मित जीवन को अपने लिये उपयोगी बना लो"। वे व्यथित हॄदय की पुकार शीघ्र सुनते हैं,यह निर्विवाद सत्य है। यद्दपि वे स्वत: सब कुछ जानते हैं,फिर भी व्यथित हृदय से पुकारती रहो।जैसे रखें वैसे रहो,पर अनेक रुपों में उन्हीं को देखते हुए अनेक प्रकार से उन्हीं को लाड़ लड़ओ।वे सदैव तुम्हारे और तुम उनकी हो।
Wednesday, April 7, 2010
मन्द-मन्द वर्षा हो रही है।प्रत्येक बूँद उनकी अहैतुकी कृपा का पाठ पढ़ा-पढ़ाकर कृतकृत्य कर रही है।न जाने उन्हें अपने शरणागतों की हर चीज इतनी प्यारी क्यों लगती है! इतना ही नहीं,अपने दिये हुए को पाकर ही क्यों बिक जाते हैं!और पतित-से-पतित प्राणियों को भी अपनाने के लिये क्यों आकुल हैं! न जाने साधक प्रमादवश क्यों नहीं उन्हें अप...ना मानता? पर वे तो सर्वदा सभी के सब कुछ होने के लिये तत्पर हैं।
Tuesday, April 6, 2010
प्रश्न-संसारका सुख लेना कैसे मिटे?.....आप अपना पूरा बल लगायें।फिर भी न मिटे तो ’हे नाथ! हे नाथ!’ कहकर भगवान् को पुकारें।एक तो सांसारिक सुखासक्ति को मिटानेकी चाहना नहीं है और एक हम उसको मिटाते नहीं हैं ये दो बाधाएँ है।ये दोनों बाधाएँ हट जायँ,फिर भी सुखासक्ति न मिटे तो उस समय आप स्वत: परमात्मा को पुका...र उठोगे। सज्जनों उस प्रभुके आगे रो पड़ो तो सब काम हो जायेगा।
अब समझो की इस मनुष्य देह से विशेष सम्बन्ध नहीं …जैसे और देह छुट गया ऐसे ये भी छुट जाएगा…जहां जाना है वहाँ पहुँचने के लिए जैसे बस से जाते तो पहुँचने पर बस छोड़ देते ऐसे इस शरीर को छोड़ देंगे..ऐसे शरीर सबंध को छोड़ देंगे…इन को साथ नहीं रख सकते…आप तो असल में चैत्यन्य है लेकिन जुड़ते संबंधो से…मनुष्य देह में आये.. ये सदा साथ नहीं रहेता… ऐसे शरीर के संबंधो को सदा साथ में नहीं रख सकते.. जो सदा साथ है, उस को कभी छोड़ नही सकते, तो जिस को छोड़ नहीं सकते उस को ‘मैं ’ मानने में क्या आपत्ति है? उस को अपना ‘मैं ’ मानो… जिस को नहीं रख सकते उस की आसक्ति छोड़ दीजिये…
शरीर के तो करोडो करोडो बार जन्म हुए, मृत्यु हुयी… केवल ये ना-समझी है की , ‘मैं ’ दुखी हूँ.. ‘मैं ’ बच्चा हूँ.. ‘मैं ’ फलानी जाती का हूँ.. ये सभी व्यवहार की रमणा है..अपना व्यवहार चलाने के लिए बाहर से चले लेकिन अन्दर से जाने की “सोऽहं.. सोऽहं” मैं वो ही हूँ!..सत -चित-आनंद स्वरुप!….जो पहेले था, बाद में भी रहेगा वो ही मैं अब भी हूँ…
Monday, April 5, 2010
Sunday, April 4, 2010
NDप्रेम एक अनुभूति है
शाश्वत रिश्तों के मर्म की
सुर्ख जोड़े में लिपटे गर्व की
विरक्ति से उपजे दर्द की
प्रेम अनुभूति है।
प्रेम एक रिश्ता है
दिलों के इकरार का
ममत्व के दुलार का
मानवता की पुकार का
प्रेम एक रिश्ता है।
प्रेम दिखता है
किसी मासूम-सी मुस्कान में
नवविवाहिता की माँग में
वीरों की आन-बान में
प्रेम दिखता है।
प्रेम की अनुगूँज है
दिल के झंकृत तारों में
बागों में बहारों में
फागुन की मस्त फुहारों में
प्रेम की अनुगूँज है।
शाश्वत रिश्तों के मर्म की
सुर्ख जोड़े में लिपटे गर्व की
विरक्ति से उपजे दर्द की
प्रेम अनुभूति है।
प्रेम एक रिश्ता है
दिलों के इकरार का
ममत्व के दुलार का
मानवता की पुकार का
प्रेम एक रिश्ता है।
प्रेम दिखता है
किसी मासूम-सी मुस्कान में
नवविवाहिता की माँग में
वीरों की आन-बान में
प्रेम दिखता है।
प्रेम की अनुगूँज है
दिल के झंकृत तारों में
बागों में बहारों में
फागुन की मस्त फुहारों में
प्रेम की अनुगूँज है।
Friday, April 2, 2010
जैसे कूड़े-कचरे के स्थान पर बैठोगे तो लोग और कूड़ा-कचरा आपके ऊपर डालेंगे । फूलों के ढेर के पास बैठोगे तो सुगन्ध पाओगे । ऐसे ही देहाध्यास, अहंकार के कूड़े कचरे पर बैठोगे तो मान-अपमान, निन्दा स्तुति, सुख-दुःख आदि द्वन्द्व आप पर प्रभाव डालते रहेंगे और भगवच्चिन्तन, भगवत्स्मरण, ब्रह्मभाव के विचारों में रहोगे तो शांति, अनुपम लाभ और दिव्य आनन्द पाओगे ।
Thursday, April 1, 2010
कितने ही कर्म करो, कितनी ही उपासनाएँ करो, कितने ही व्रत और अनुष्ठान करो, कितना ही धन इकट्ठा कर लो और् कितना ही दुनिया का राज्य भोग लो लेकिन जब तक सदगुरु के दिल का राज्य तुम्हारे दिल तक नहीं पहुँचता, सदगुरुओं के दिल के खजाने तुम्हारे दिल तक नही उँडेले जाते, जब तक तुम्हारा दिल सदगुरुओं के दिल को झेलने के काबिल नहीं बनता,
तब तक सब कर्म, उपासनाएँ, पूजाएँ अधुरी रह जाती हैं। देवी-देवताओं की पूजा के बाद भी कोई पूजा शेष रह जाती है किंतु सदगुरु की पूजा के बाद कोई पूजा नहीं बचती।
तब तक सब कर्म, उपासनाएँ, पूजाएँ अधुरी रह जाती हैं। देवी-देवताओं की पूजा के बाद भी कोई पूजा शेष रह जाती है किंतु सदगुरु की पूजा के बाद कोई पूजा नहीं बचती।
मेरे ऐसे दिन कब आयेगे कि देह होते हुए भी मै स्वयं को अपने देह से अनुभव करूँगा ?... एकांत मै बैठा-बैठा मै अपने मन-बुद्धि को पृथक देखते-देखते अपनी आत्मा मे तृप्त होऊगा ?... मे आत्मानंद मे मस्त रहकर संसार के व्यवहार मे निश्चिंत रहूगा ? ... सत्रु और मित्र के व्यवहार को मे खेल सम्जुंगा ?"
अगर मन इन्द्रियों के साथ चलेगा तो समझो परमात्मा रूठे है मन को ऊपर उठाना है तो सत्संग किया, उंचा उठेगा..मन बुध्दी के अनुसार चलेगा..अगर बुध्दी ज्ञान स्वरुप है तो सही निर्णय देगी…जिस के प्रिय भगवान नहीं, जिस के लिए भगवत प्राप्ति मुख्य नही, उस का संग ऐसे ठुकराओ जैसे करोडो वैरी सामने बैठे है यद्यपि वो परम स्नेही हो..
अनित्यानि शरीराणि बैभवो नैव शाश्वतः।
नित्यं संन्निहितो मृत्युः कर्त्तव्यो धर्मसंग्रहः।।
हम जब जन्मे थे उस समय हमारी जो आयु थी वह आज नहीं है। हम जब यहाँ आये तब जो आयु थी वह अभी नहीं है और अभी जो है वह घर जाते तक उतनी ही नहीं रहेगी।शरीर अनित्य है, वैभव शाश्वत नहीं है। शरीर हर रोज मृत्यु के नजदीक जा रहा है। अतः धर्म का संग्रह कर लेना चाहिए।
अगर मन इन्द्रियों के साथ चलेगा तो समझो परमात्मा रूठे है मन को ऊपर उठाना है तो सत्संग किया, उंचा उठेगा..मन बुध्दी के अनुसार चलेगा..अगर बुध्दी ज्ञान स्वरुप है तो सही निर्णय देगी…जिस के प्रिय भगवान नहीं, जिस के लिए भगवत प्राप्ति मुख्य नही, उस का संग ऐसे ठुकराओ जैसे करोडो वैरी सामने बैठे है यद्यपि वो परम स्नेही हो..
अनित्यानि शरीराणि बैभवो नैव शाश्वतः।
नित्यं संन्निहितो मृत्युः कर्त्तव्यो धर्मसंग्रहः।।
हम जब जन्मे थे उस समय हमारी जो आयु थी वह आज नहीं है। हम जब यहाँ आये तब जो आयु थी वह अभी नहीं है और अभी जो है वह घर जाते तक उतनी ही नहीं रहेगी।शरीर अनित्य है, वैभव शाश्वत नहीं है। शरीर हर रोज मृत्यु के नजदीक जा रहा है। अतः धर्म का संग्रह कर लेना चाहिए।
बीता हुआ समय लौटकर नहीं आता । जीवन का एक एक क्षण आत्मोपलब्धि, भगवत्प्राप्ति, मुक्ति के साधनों में लगाओ । हमें जो इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि प्राप्त है, जो सुविधा, अनुकूलता प्राप्त है उसका उपयोग वासना-विलास का परित्याग कर भगवान से प्रेम करने में करो । एक क्षण का भी इसमें प्रमाद मत करो । पूरे मन से, सम्पूर्ण बुद्धि से भगवान से जुड़ जाओ । इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि भगवा
इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि भगवान में ही लग जाय । एकमात्र भगवान ही रह जायें, अन्य सब गुम हो जाय
जीवन में आप जो कुछ करते हो उसका प्रभाव आपके अंतःकरण पर पड़ता है। कोई भी कर्म करते समय उसके प्रभाव को, अपने जीवन पर होने वाले उसके परिणाम को सूक्ष्मता से निहारना चाहिए । ऐसी सावधानी से हम अपने मन की कुचाल को नियंत्रित कर सकेंगे, इन्द्रियों के स्वछन्द आवेगों को निरुद्ध कर सकेंगे, बुद्धि को सत्यस्वरूप आत्मा-परमात्मा में प्रतिष्ठित कर सकेंगे ।
पूरे मन से, सम्पूर्ण बुद्धि से भगवान से जुड़ जाओ । इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि भगवान में ही लग जाय । एकमात्र भगवान ही रह जायें, अन्य सब गुम हो जाय । ऐसा कर सको तो जीवन सार्थक है । ऐसा नहीं होगा तो मानव जीवन केवल व्यर्थ ही नहीं गया अपित अनर्थ हो गया । अतः जब तक श्वास चल रहा है, शरीर स्वस्थ है तब तक सुगमता से इस साधन में लग जाओ ।
इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि भगवान में ही लग जाय । एकमात्र भगवान ही रह जायें, अन्य सब गुम हो जाय
जीवन में आप जो कुछ करते हो उसका प्रभाव आपके अंतःकरण पर पड़ता है। कोई भी कर्म करते समय उसके प्रभाव को, अपने जीवन पर होने वाले उसके परिणाम को सूक्ष्मता से निहारना चाहिए । ऐसी सावधानी से हम अपने मन की कुचाल को नियंत्रित कर सकेंगे, इन्द्रियों के स्वछन्द आवेगों को निरुद्ध कर सकेंगे, बुद्धि को सत्यस्वरूप आत्मा-परमात्मा में प्रतिष्ठित कर सकेंगे ।
पूरे मन से, सम्पूर्ण बुद्धि से भगवान से जुड़ जाओ । इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि भगवान में ही लग जाय । एकमात्र भगवान ही रह जायें, अन्य सब गुम हो जाय । ऐसा कर सको तो जीवन सार्थक है । ऐसा नहीं होगा तो मानव जीवन केवल व्यर्थ ही नहीं गया अपित अनर्थ हो गया । अतः जब तक श्वास चल रहा है, शरीर स्वस्थ है तब तक सुगमता से इस साधन में लग जाओ ।
कितने ही कर्म करो, कितनी ही उपासनाएँ करो, कितने ही व्रत और अनुष्ठान करो, कितना ही धन इकट्ठा कर लो और् कितना ही दुनिया का राज्य भोग लो लेकिन जब तक सदगुरु के दिल का राज्य तुम्हारे दिल तक नहीं पहुँचता, सदगुरुओं के दिल के खजाने तुम्हारे दिल तक नही उँडेले जाते, जब तक तुम्हारा दिल सदगुरुओं के दिल को झेलने के काबिल नहीं बनता,
तब तक सब कर्म, उपासनाएँ, पूजाएँ अधुरी रह जाती हैं। देवी-देवताओं की पूजा के बाद भी कोई पूजा शेष रह जाती है किंतु सदगुरु की पूजा के बाद कोई पूजा नहीं बचती।
तब तक सब कर्म, उपासनाएँ, पूजाएँ अधुरी रह जाती हैं। देवी-देवताओं की पूजा के बाद भी कोई पूजा शेष रह जाती है किंतु सदगुरु की पूजा के बाद कोई पूजा नहीं बचती।
Puri jindgi laga ke jo kamate hai voh sath nahi jata par Gurudaware jo aap kamate ho voh sadev sath raheta hai , Guru dware pe aap jiwan ki anmol kamai karte hao
voh pa lo use mat gavao , sab lutake bhi yah kama sakte ho to kuch nahi lutaya , par sab kuch kamake bhi agar asli khajana gava diya to samjo sab kuch varth me gava diya
bas khajana to khula pada hai jitna lut sakate ho lut lo jitna kama sakate ho kama lo jiwan ki sham hone se pahele apne asli khajane ko pa lo aap sada hai , chetan rup hai giyan rup hai , apne sat sawabhav se hi aapko sukh milta hai bas ushi sukh ko pahechan lo
voh pa lo use mat gavao , sab lutake bhi yah kama sakte ho to kuch nahi lutaya , par sab kuch kamake bhi agar asli khajana gava diya to samjo sab kuch varth me gava diya
bas khajana to khula pada hai jitna lut sakate ho lut lo jitna kama sakate ho kama lo jiwan ki sham hone se pahele apne asli khajane ko pa lo aap sada hai , chetan rup hai giyan rup hai , apne sat sawabhav se hi aapko sukh milta hai bas ushi sukh ko pahechan lo
दिल में आत्म-साक्षात्कार की योग्यता होने के बाद भी यदि विषय, विकार, काम, क्रोध आदि से आसक्ति नहीं मिटी ।
सागर से नदियाँ भली, जो सबकी प्यास बुझाए।।
ब्रह्मलोक तक जाओ और पुण्यों का क्षय होने पर वापस आओ इससे उचित होगा कि मनुष्य जन्म में ही आत्मज्ञान प्राप्त कर लो ताकि पुनः जन्म-मरण के चक्कर में फँसना ही न पड़े।
सागर से नदियाँ भली, जो सबकी प्यास बुझाए।।
ब्रह्मलोक तक जाओ और पुण्यों का क्षय होने पर वापस आओ इससे उचित होगा कि मनुष्य जन्म में ही आत्मज्ञान प्राप्त कर लो ताकि पुनः जन्म-मरण के चक्कर में फँसना ही न पड़े।
जीवन में आप जो कुछ करते हो उसका प्रभाव आपके अंतःकरण पर पड़ता है। कोई भी कर्म करते समय उसके प्रभाव को, अपने जीवन पर होने वाले उसके परिणाम को सूक्ष्मता से निहारना चाहिए । ऐसी सावधानी से हम अपने मन की कुचाल को नियंत्रित कर सकेंगे, इन्द्रियों के स्वछन्द आवेगों को निरुद्ध कर सकेंगे, बुद्धि को सत्यस्वरूप आत्मा-परमात्मा में प्रतिष्ठित कर सकेंगे
kitene hi logo ko sukh dukh aata hai par voh aapko farak nahi padata kyoki aap usme jude huwe nahi ho , jab aap judte ho aur use apna manate ho to voh bat aapko sukh aur dukh deti hai par jab tak aap unse nirlep aur nirvikar ho tab voh bat aapko sukh aur dukh nahi deti , karta banana hi dukh ka karna hai aur darshta banana hi sukh ka karan hai bas darshta bane raho aur param ananad aur param sukh ke marg ki aur chal pado jiwan jine ki chah bad jayegi param aanad panae ki rah mil jayegi
कहाँ है वह तलवार जो मुझे मार सके ? कहाँ है वह शस्त्र जो मुझे घायल कर सके ? कहाँ है वह विपत्ति जो मेरी प्रसन्नता को बिगाड़ सके ? कहाँ है वह दुख जो मेरे सुख में विघ्न ड़ाल सके ? मेरे सब भय भाग गये
सब संशय कट गये
मेरा विजय-प्राप्ति का दिन आ पहुँचा है
कोई संसारिक तरंग मेरे निश्छल चित्त को आंदोलित नहीं कर सकती
सब संशय कट गये
मेरा विजय-प्राप्ति का दिन आ पहुँचा है
कोई संसारिक तरंग मेरे निश्छल चित्त को आंदोलित नहीं कर सकती
एक भाई ने मुझसे कहा कि आप मुझे परम आस्तिक क्यों कहते हैं? मैं तो परम आस्तिक नहीं हूँ।मैंने कहा-मैं इसीलिये कहता हूँ कि आप आस्तिक हो जायेंगे।यह कोई कल्पना नहीं है,यह वास्तविकता है।जिसको आप जैसा समझेंगे,जैसा सोचेंगे,जैसा मानेंगे,वैसा वह हो जायेगा।हम किसी को बुरा न समझें।तब किसी के बुरे होने में हमारा हाथ नहीं रहेगा।
Ashram SMS
Jaise sadhana me age badhoge to kabhi vyarth ki ninda hogi us se bhaybhit na hue to bemap prashansha milegi usme bhi ab uljhe to parmatma Sakshaktar ho jayega -
dil
bas dil ko to mandir banana hai aur usme murat sajani hai apne pratam ki voh pritam jo kabhi juda nahi hota , kabhi nahi bichadta , kabhi hamse alag nahi hota , bhichadta hai yah sansar , bhichadti hai yah sansari vastue jo kabhi hamari nahi thi par galti se ham apni samaj bethate hai , jinke liye mare mare firte hai , rat din rote rahate hai voh sab to bichad jayega par jo kabhi nahi bhichdega , kabhi hamese juda nahi hoga use kab ham prit karenge , kab dil me mandir me use sajayenge
प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी के शरणापन्न रहता है। अन्तर केवल इतना है कि आस्तिक एक के और नास्तिक अनेक के। आस्तिक आवश्यक्ता की पूर्ति करता है और नास्तिक इच्छाओं की। आवश्यक्ता एक और इच्छाएँ अनेक होती है। आवश्यक्ता की पूर्ति होने पर पुनः उत्पत्ति नहीं होती। इच्छाकर्ता तो बेचारा प्रवृत्ति द्वारा केवल शक्तिहीनता ही प्राप्त करता है
Wednesday, March 31, 2010
Monday, March 22, 2010
गुरू के सान्निध्य से जो मिलता है वह दूसरा कभी दे नहीं सकता।
हमारे जीवन से गुरू का सान्निध्य जब चला जाता है तो वह जगह मरने के लिए दुनिया की कोई भी हस्ती सक्षम नहीं होती। गुरू नजदीक होते हैं तब भी गुरू गुरू ही होते हैं और गुरू का शरीर दूर होता है तब भी गुरू दूर नहीं होते।
गुरू प्रेम करते हैं, डाँटते हैं, प्रसाद देते हैं, तब भी गुरू ही होते हैं और गुरू रोष भरी नजरों से देखते हैं, ताड़ते हैं तब भी गुरू ही होते हैं।
हमारे जीवन से गुरू का सान्निध्य जब चला जाता है तो वह जगह मरने के लिए दुनिया की कोई भी हस्ती सक्षम नहीं होती। गुरू नजदीक होते हैं तब भी गुरू गुरू ही होते हैं और गुरू का शरीर दूर होता है तब भी गुरू दूर नहीं होते।
गुरू प्रेम करते हैं, डाँटते हैं, प्रसाद देते हैं, तब भी गुरू ही होते हैं और गुरू रोष भरी नजरों से देखते हैं, ताड़ते हैं तब भी गुरू ही होते हैं।
Saturday, March 20, 2010
सारांश यह है की गुरु कृपा के भाग्यशाली क्षण से सांसारिक जीवन को पार करने की पहेली हल हो जाती है ; मोक्ष प्राप्ति का द्वार स्वतः ही खुल जाता है और सभी दुःख और कष्ट सुख में बदल जाते हैं. जब सद्द गुरु का नित्य स्मरण किया जाता है तो विघन के कारन आने वाली रुकावटें अनायास ही नष्ट हो जातीं हैं ; मृत्यु स्वयं मर जाती है और सांसारिक दुखों का विस्मरण हो जाता है
Wednesday, March 17, 2010
kam aisa kijiye jinse ho sab ka bhala, bat aise kijiye jismai ho amrut bhara, aise boli bol sabko pram se pukariye, kadve bol bolkar na jindgi begadiye, haste - gate huve jindgi gujariye, aache karm karte huve dukh bhi agar pa rahe, himmat na har pyare bapu tere sath hai hriday ki kitab pe ye bat likh lejiye, ban ki sacche bhakt banki sacche amal kijiye, jag mai jagmagati huive rosni jagmagana hai, muskilo musibatto ka karna hai khatma, faried karki aapna hal na begadeye, jase prabhu rakhe vase jindgi gujariye, himmat na har, himmat na har, bapu tere sath hai pyare himmat na har.
Tuesday, March 16, 2010
जब-जब हम कर्म करें तो कर्म को अकर्म में बदल दें अर्थात् कर्म का फल ईश्वर को अर्पित कर दें अथवा कर्म में से कर्तापन हटा दें तो कर्म करते हुए भी हो गया अकर्म। कर्म तो किये लेकिन उनका बंधन नहीं रहा।
संसारी आदमी कर्म को बंधनकारक बना देता है, साधक कर्म को अकर्म बनाने का यत्न करता है लेकिन सिद्ध पुरुष का प्रत्येक कर्म स्वाभाविक रूप से अकर्म ही होता है। रामजी युद्ध जैसा घोर कर्म करते हैं लेकिन अपनी ओर से युद्ध नहीं करते, रावण आमंत्रित करता है तब करते हैं। अतः उनका युद्ध जैसा घोर कर्म भी अकर्म ही है। आप भी कर्म करें तो अकर्ता होकर करें, न कि कर्ता होकर। कर्ता भाव से किया गया कर्म बंधन में डाल देता है एवं उसका फल भोगना ही पड़ता है।
संसारी आदमी कर्म को बंधनकारक बना देता है, साधक कर्म को अकर्म बनाने का यत्न करता है लेकिन सिद्ध पुरुष का प्रत्येक कर्म स्वाभाविक रूप से अकर्म ही होता है। रामजी युद्ध जैसा घोर कर्म करते हैं लेकिन अपनी ओर से युद्ध नहीं करते, रावण आमंत्रित करता है तब करते हैं। अतः उनका युद्ध जैसा घोर कर्म भी अकर्म ही है। आप भी कर्म करें तो अकर्ता होकर करें, न कि कर्ता होकर। कर्ता भाव से किया गया कर्म बंधन में डाल देता है एवं उसका फल भोगना ही पड़ता है।
नव वर्ष-२०१०,विक्रम संवत्सर-२०६७
सु:ख समृद्धि से भरपूर
हर घर आंगन हो !
जीवन में नित नूतन खुशियां आएँ ,
हर दिन ,हर पल मन भावन हो !...
फैले यश कीर्ति दिग्दगान्त,...
तन मन धन अति पावन हो !
बढे प्रेम श्रद्धा सिमरन नित ,
हरि कृपा का बरसता सावन हो !
नव वर्ष की आप सबको ,
हार्दिक मंगल कामनाएं !
नव वर्ष-२०१०,विक्रम संवत्सर-२०६७ ,चेटीचंड महोत्सव की शुभकामनाये
हर घर आंगन हो !
जीवन में नित नूतन खुशियां आएँ ,
हर दिन ,हर पल मन भावन हो !...
फैले यश कीर्ति दिग्दगान्त,...
तन मन धन अति पावन हो !
बढे प्रेम श्रद्धा सिमरन नित ,
हरि कृपा का बरसता सावन हो !
नव वर्ष की आप सबको ,
हार्दिक मंगल कामनाएं !
नव वर्ष-२०१०,विक्रम संवत्सर-२०६७ ,चेटीचंड महोत्सव की शुभकामनाये
motwaninaresh (12/17/09 1:02 PM): Pawan Tanay Bal Pawan Samana , Budi Vivek Vigiyan Nidhana Kounsa Kaj Kathin Jab Mahi Jo nahi hoi tat tum pahi
motwaninaresh (12/17/09 1:02 PM): सतगुरु सृष्टि के पालनहारे , सब विधि बिगडे काज सँवारे घट अनहद नाद सुनाएँ , घट में ईश्वर प्रगटायें गुरू कृपा से संशय मिटायें , घट में ईश्वर प्रगटायें ॥ ब्रह्मज्ञान का दीप जलाया , कलिकलुष अन्धकार मिटाया सब ज्योतिर्मय चमकायें , घट में ईश्वर प्रगटायें गुरू कृपा से संशय मिटायें , घट में ईश्वर प्रगटायें
motwaninaresh (12/17/09 1:02 PM): हम धनवान होगे या नहीं, चुनाव जीतेंगे या नहीं इसमें शंका हो सकती है परंतु भैया ! हम मरेंगे या नहीं, इसमें कोई शंका है? विमान उड़ने का समय निश्चित होता है, बस चलने का समय निश्चित होता है, गाड़ी छूटने का समय निश्चित होता है परंतु इस जीवन की गाड़ी छूटने का कोई निश्चित समय है?
motwaninaresh (12/17/09 1:02 PM): Your house is not here. Your house is the house of Parmatmaa's eternal abode. Over here is the school of Dharma (righteousness) . Our "self" is imperishable, then how long will we sit depending on the perishable? Humanity is in only two things - 1) Serving Others 2) Rememberance of God. Let these two points come in our nature once and for all.
motwaninaresh (12/17/09 1:02 PM): सतगुरु सृष्टि के पालनहारे , सब विधि बिगडे काज सँवारे घट अनहद नाद सुनाएँ , घट में ईश्वर प्रगटायें गुरू कृपा से संशय मिटायें , घट में ईश्वर प्रगटायें ॥ ब्रह्मज्ञान का दीप जलाया , कलिकलुष अन्धकार मिटाया सब ज्योतिर्मय चमकायें , घट में ईश्वर प्रगटायें गुरू कृपा से संशय मिटायें , घट में ईश्वर प्रगटायें
motwaninaresh (12/17/09 1:02 PM): हम धनवान होगे या नहीं, चुनाव जीतेंगे या नहीं इसमें शंका हो सकती है परंतु भैया ! हम मरेंगे या नहीं, इसमें कोई शंका है? विमान उड़ने का समय निश्चित होता है, बस चलने का समय निश्चित होता है, गाड़ी छूटने का समय निश्चित होता है परंतु इस जीवन की गाड़ी छूटने का कोई निश्चित समय है?
motwaninaresh (12/17/09 1:02 PM): Your house is not here. Your house is the house of Parmatmaa's eternal abode. Over here is the school of Dharma (righteousness) . Our "self" is imperishable, then how long will we sit depending on the perishable? Humanity is in only two things - 1) Serving Others 2) Rememberance of God. Let these two points come in our nature once and for all.
Monday, March 15, 2010
mara prabhu mane sachi disha batacjo ,sachu margdharshan dejo , he sukh sawarup , shaniti shawarup maray haiya ma sukh rupe , shanti rupe saday vasjso , he karuna nidan , he krishna kaniya , bansi bajaiya , madur lala , mara vahaluda mara riday ma saday nivas karjo , mari kadji lejo , mane eklo , atulo kadapi na mukjo mara nath , hu tamari sharane , tara vina na koi maro nath , bas taro j ek sath mane mara pritam , mara dev , mara hridaya na nath Om narayan narayan narayan
naresh motwani: he shanti data , giyan devta ,mara ishtadevta , kay cho tame , mara dil ma cho kem chupaya cho aji sudhi , mane man mandir na dharshan karavo mara nath , mane potana ma dubado mara nath
guruji mare nav ne tu tarje sukh ma ke dukh ma tu sambharje aasro adhar taro ek che mare tute nav ne tu tarje tara vena jag ma nathi maru biju mara man ne tara ma tu varje barak bane ne khore tara rahva ne hu aavyo chu gurudev mare nav ne tu tarje
Atlu madi jay to sukhi thavu , aa kurshi suchi phohich javu to sukhi tavu , kya suthi aa badhu karta rahishu nath , kaya sudhi sansar na janam maran na chakro ma padta rahishu , kya suthi ame sansari vato ma atvata rahishu , bas have to evo di dekhad ke tara ma dubhi jayai , bas kya sudhi duniyavi maja pachad ame dodta rahishu , kem ishavariyi maja... See more ma man nathi dubtu , cigarete , pana , masala and kahava piva ma maja shodhiye chiye kem diyan ma maja nathi avati, kem simran and satsang ma maja nathi aavati bas he gurudev , he nath ave to asli maja dekhadi to duniyavi mana bhuli jayeaye
Pram bharelu haiyu lai ne tare dware aaveyo chu jo tu mujne tarchode to duneya ma mare javu kya? na janu hu pooj tari na janu bhakti ne rit, gandi ghale vane ma hu gato guruji tara geet chacker banine charne tara rahva ne hu aaveyo chu jo tu mujne tarchode to duneya ma mare javu kya?
he mara nath , me mara valuda , janmo thi batki rahaya chiye , taro abhar che mara nath te amne manushaya jo jiwan apyo , have bas aa janam ma aame tane medvi laveye , tara ma dubhi ne tara charano me priti karine tane pami laviye , bas mara prabhu dar rose tane yaad kariye , sansar na sambhado ne kya sudhi sachivishu , bas tara sathe sambhand pako thai jaye to sansar na sambado to dodta pachad aavshe , savare uthu to tari yad aave , divas bar tane yad karta nikade and ratre suvu to bas tara khoda ma suvu , eve daya kara mara prabhu mara nath bas tara sivay kashu yad na rahe mari ankho bas tara didar kare , mari sans bas tara mate chale , mari hriday ma bas tari yad rahe , maru sharir bas tari seva ma ja jaye , jaldi mara nath mane evo di dekhad mara vahaluda
hath jod mangu sada tumse yahe vardan ek palak bisre nahi sadguru tera dhyan
mai balak tera prabhu janu yogna dhyan guru krupa milte rahe dedo ye vardan
naresh motwani: he shanti data , giyan devta ,mara ishtadevta , kay cho tame , mara dil ma cho kem chupaya cho aji sudhi , mane man mandir na dharshan karavo mara nath , mane potana ma dubado mara nath
guruji mare nav ne tu tarje sukh ma ke dukh ma tu sambharje aasro adhar taro ek che mare tute nav ne tu tarje tara vena jag ma nathi maru biju mara man ne tara ma tu varje barak bane ne khore tara rahva ne hu aavyo chu gurudev mare nav ne tu tarje
Atlu madi jay to sukhi thavu , aa kurshi suchi phohich javu to sukhi tavu , kya suthi aa badhu karta rahishu nath , kaya sudhi sansar na janam maran na chakro ma padta rahishu , kya suthi ame sansari vato ma atvata rahishu , bas have to evo di dekhad ke tara ma dubhi jayai , bas kya sudhi duniyavi maja pachad ame dodta rahishu , kem ishavariyi maja... See more ma man nathi dubtu , cigarete , pana , masala and kahava piva ma maja shodhiye chiye kem diyan ma maja nathi avati, kem simran and satsang ma maja nathi aavati bas he gurudev , he nath ave to asli maja dekhadi to duniyavi mana bhuli jayeaye
Pram bharelu haiyu lai ne tare dware aaveyo chu jo tu mujne tarchode to duneya ma mare javu kya? na janu hu pooj tari na janu bhakti ne rit, gandi ghale vane ma hu gato guruji tara geet chacker banine charne tara rahva ne hu aaveyo chu jo tu mujne tarchode to duneya ma mare javu kya?
he mara nath , me mara valuda , janmo thi batki rahaya chiye , taro abhar che mara nath te amne manushaya jo jiwan apyo , have bas aa janam ma aame tane medvi laveye , tara ma dubhi ne tara charano me priti karine tane pami laviye , bas mara prabhu dar rose tane yaad kariye , sansar na sambhado ne kya sudhi sachivishu , bas tara sathe sambhand pako thai jaye to sansar na sambado to dodta pachad aavshe , savare uthu to tari yad aave , divas bar tane yad karta nikade and ratre suvu to bas tara khoda ma suvu , eve daya kara mara prabhu mara nath bas tara sivay kashu yad na rahe mari ankho bas tara didar kare , mari sans bas tara mate chale , mari hriday ma bas tari yad rahe , maru sharir bas tari seva ma ja jaye , jaldi mara nath mane evo di dekhad mara vahaluda
hath jod mangu sada tumse yahe vardan ek palak bisre nahi sadguru tera dhyan
mai balak tera prabhu janu yogna dhyan guru krupa milte rahe dedo ye vardan
mara prabhu mane sachi disha batacjo ,sachu margdharshan dejo , he sukh sawarup , shaniti shawarup maray haiya ma sukh rupe , shanti rupe saday vasjso , he karuna nidan , he krishna kaniya , bansi bajaiya , madur lala , mara vahaluda mara riday ma saday nivas karjo , mari kadji lejo , mane eklo , atulo kadapi na mukjo mara nath , hu tamari sharane , tara vina na koi maro nath , bas taro j ek sath mane mara pritam , mara dev , mara hridaya na nath Om narayan narayan narayan
naresh motwani: he shanti data , giyan devta ,mara ishtadevta , kay cho tame , mara dil ma cho kem chupaya cho aji sudhi , mane man mandir na dharshan karavo mara nath , mane potana ma dubado mara nath
naresh motwani: he shanti data , giyan devta ,mara ishtadevta , kay cho tame , mara dil ma cho kem chupaya cho aji sudhi , mane man mandir na dharshan karavo mara nath , mane potana ma dubado mara nath
Sunday, March 14, 2010
Saturday, March 13, 2010
इन प्राणी, पदार्थ, परिस्थितियों की आस्था, आशा, आकांक्षा छोड़कर प्रभु की ओर देखो। फिर सारी प्रभु-इच्छित अनुकूलता अपने-आप ही आकर तुम्हारे चरण चूमेगी। Removing your belief on these people, objects and situations - look towards God. Then all that God desires will come and kiss your feet by themselves.
हर वक्त इस बात पर प्रसन्न और आनन्द में रहे कि भगवान् आपसे मिलना चाहते है। Always be happy and in bliss because of the fact that God wants to meet you.
हर वक्त इस बात पर प्रसन्न और आनन्द में रहे कि भगवान् आपसे मिलना चाहते है। Always be happy and in bliss because of the fact that God wants to meet you.
अगर तुम दुसरों के लिये बोलते हो, दुसरों के लिये सुनते हो, दुसरों के लिये सोचते हो, दूसरों के लिये काम करते हो, तो तुम्हारी भौतिक उन्नति होती चली जायगी। कोई बाधा नहीं डाल सकता। अगर तुम केवल अपने लिये सोचते हो तो दरिद्रता कभी नहीं जायगी
If you speak for others, if you hear for others, if you think for others, if you work for others, then your material progress will take place constantly. No one can put any obstacle in it. But if you think only for yourself, your impoverishment (poverty) can never be removed
If you speak for others, if you hear for others, if you think for others, if you work for others, then your material progress will take place constantly. No one can put any obstacle in it. But if you think only for yourself, your impoverishment (poverty) can never be removed
Wednesday, January 27, 2010
विघ्न, बाधाएँ, दुःख, संघर्ष, विरोध आते हैं वे तुम्हारी भीतर की शक्ति जगाने कि लिए आते है। जिस पेड़ ने आँधी-तूफान नहीं सहे उस पेड़ की जड़ें जमीन के भीतर मजबूत नहीं होंगी। जिस पेड़ ने जितने अधिक आँधी तूफान सहे और खड़ा रहा है उतनी ही उसकी नींव मजबूत है। ऐसे ही दुःख, अपमान, विरोध आयें तो ईश्वर का सहारा लेकर अपने ज्ञान की नींव मजबूत करते जाना चाहिए। दुःख, विघ्न, बाध
हे मानव ! तू सनातन है, मेरा अंश है। जैसे मैं नित्य हूँ वैसे ही तू भी नित्य है। जैसे मैं शाश्वत हूँ वैसे ही तू भी शाश्वत है। परन्तु भैया ! भूल सिर्फ इतनी हो रही है कि नश्वर शरीर को तू मान बैठा है। नश्वर वस्तुओं को तू अपनी मान बैठा है। लेकिन तेरे शाश्वत स्वरूप और मेरे शाश्वत सम्बन्ध की ओर तेरी दृष्टि नहीं है इस कारण तू दुःखी होता है।
Thursday, January 21, 2010
मन, वचन और कर्म से अयोग्य क्रिया न करना, देश-काल के अनुसार योग्यता से, सरलता से विचारपूर्वक बर्तना-इस आचरण को शास्त्र में 'शीलव्रत' कहा गया है। उन्नति का मार्ग शील ही है। शीलवान ही आत्मबोध प्राप्त करके मुक्त हो सकता है। शीलरहित को कड़ा, कुण्डल आदि गहने ऊपर की शोभा भले ही देते हों, परन्तु सज्जन का तो शील ही भूषण है।
Saturday, January 16, 2010
Thursday, January 14, 2010
Tuesday, January 12, 2010
दो वस्तुएँ हैं। एक प्रतीति और दूसरी प्राप्ति। प्राप्ति परमात्मा की होती है और प्रतीति माया की।
प्रतीति के बिना प्राप्ति टिक सकती है लेकिन प्राप्ति के बिना प्रतीति हो ही नहीं सकती। चैतन्य के बिन शरीर चल नहीं सकता, किन्तु शरीर के बिना चैतन्य रह सकता है। ये जो वस्तुएँ दिख रही हैं, वे चैतन्य के बिना रह नहीं सकतीं, लेकिन वस्तुओं के बिना चैतन्य रह सकता है।
प्रतीति के बिना प्राप्ति टिक सकती है लेकिन प्राप्ति के बिना प्रतीति हो ही नहीं सकती। चैतन्य के बिन शरीर चल नहीं सकता, किन्तु शरीर के बिना चैतन्य रह सकता है। ये जो वस्तुएँ दिख रही हैं, वे चैतन्य के बिना रह नहीं सकतीं, लेकिन वस्तुओं के बिना चैतन्य रह सकता है।
Tuesday, January 5, 2010
विश्रान्ति तुम्हारी आवश्यकता है। अपने आपको जानना तुम्हारी आवश्यकता है। जगत की सेवा करना तुम्हारी आवश्यकता है क्योंकि जगत से शरीर बना है तो जगत के लिए करोगे तो तुम्हारी आवश्यकता अपने आप पूरी हो जायगी।
ईश्वर को आवश्यकता है तुम्हारे प्यार की, जगत को आवश्यकता है तुम्हारी सेवा की और तुम्हें आवश्यकता है अपने आपको जानने की।
ईश्वर को आवश्यकता है तुम्हारे प्यार की, जगत को आवश्यकता है तुम्हारी सेवा की और तुम्हें आवश्यकता है अपने आपको जानने की।
नानक ! दुखिया सब संसार....तुम्हें यदि सदा के लिए परम सुखी होना है तो तमाम सुख-दुःख के साक्षी बनो। तुम अमर आत्मा हो, आनन्दस्वरूप हो.... ऐसा चिन्तन करो। तुम शरीर नहीं हो। सुख-दुःख मन को होता है। राग-द्वेष बुद्धि को होता है। भूख-प्यास प्राणों को लगती है। प्रारब्धवश जिन्दगी में कोई दुःख आये तो ऐसा समझो कि मेरे कर्म कट रहे हैं.... मैं शुद्ध हो रहा हूँ।
Saturday, January 2, 2010
New Year Prathna
Happy new Year Prathna
हे मेरे अंतर्यामी ! अब मेरी ओर जरा कृपादृष्टि करो । बरसती हुई आपकी अमृतवर्षा में मैं भी पूरा भीग जाऊँ मेरा मन मयूर अब एक आत्मदेव के सिवाय किसीके प्रति टहुँकार न करे
हे प्रभु ! हमें विकारों से, मोह ममता से, अपने आपमें जगाओ । हे मेरे मालिक ! अब कब तक मैं भटकता रहूँगा ? मेरी सारी उमरिया बिती जा ...रही है कुछ तो रहमत करो कि अब आपके चरणों का अनुरागी होकर मैं आत्मानन्द के महासागर में गोता लगाऊँ
हे मेरे अंतर्यामी ! अब मेरी ओर जरा कृपादृष्टि करो । बरसती हुई आपकी अमृतवर्षा में मैं भी पूरा भीग जाऊँ मेरा मन मयूर अब एक आत्मदेव के सिवाय किसीके प्रति टहुँकार न करे
हे प्रभु ! हमें विकारों से, मोह ममता से, अपने आपमें जगाओ । हे मेरे मालिक ! अब कब तक मैं भटकता रहूँगा ? मेरी सारी उमरिया बिती जा ...रही है कुछ तो रहमत करो कि अब आपके चरणों का अनुरागी होकर मैं आत्मानन्द के महासागर में गोता लगाऊँ
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