Thursday, November 4, 2010

भगवान के द्वारा मेरे लिये जो कुछ भी विधान होगा वह मंगलमय हो होगा। पूरी


परिस्थिति मेरी समझ में आये या न आये यह बात दूसरी है, पर भगवान का विधान तो

मेरे लिए कल्याणकारी ही है, इसमें कोई सन्देह नहीं। इसलिए जो कुछ होता है वह

मेरे कर्मों का फल नहीं है, प्रत्युत भगवान के द्वारा कृपा करके केवल मेरे हित

के लिए भेजा हुआ विधान है।

Tuesday, October 5, 2010

 सुमिरन इस तरह करो जैसे कामी एक क्षण के लिए भी स्त्री को नहीं भूलता, जैसे गौ घास चरती हुई भी बछड़े को याद रखती है, जैसे कंगाल अपने पैसे सम्हाल करता है,जैसे बिना संकोच के पतंग दीपशिखा में जल मरता है, परंतु उसके रूप को भूलता नहीं, जैसे मछली जल से बिछुड़ने पर प्राणत्याग कर देती है, परंतु उसे भूलती नहीं।'
प्यास लगी हों और कोई आदमी पानी की तरफ ना जाकर, अग्नि की तरफ जाए तो प्यास मिटेगी नहीं, तपन और बढ जाएगी। जो कुछ भी मिलेगा ना हमकों, वो कुछ पाए हुए महापुरुषों से मिलेगा, जिसनें कुछ पाया नहीं वो हमकों कुछ दे सकता नहीं हैं। जो व्यक्ति भगवान कों छोड़ कर और सबक़ों पानें में लग जाता हैं, वह कुछ पाता नहीं हैं।
 शरीर नाशवान है। संसार के पदार्थ भी मिथ्या ही हैं, केवल आत्मा ही सत्य एवं शाश्वत है। मनुष्य शरीर, जाति, धर्म आदि से अपनी एकता करके उनका अभिमान करने लगता है और उनके अनुसार स्वयं को कई बंधनों में बाँध लेता है। इससे उसका मन अशुद्ध रहता है। विचार, वाणी और व्यवहार में सच्चाई एवं पवित्रता रखने से मन पवित्र होता है।
 उस परमात्मा को वोही जान सकता जिस को परमात्मा जगाना चाहते है उसी पर वो कृपा करता है…वो सभी प्राणी मात्र का सुहुर्द है जो बच्चा सच्चे ह्रदय से पुकारेगा, माँ वही जायेगी…. ऐसे अन्तात्मा भगवान को पुकार रहे है ये पुकार है…. तपस्या से सिमित फल मिलता है…

Sunday, July 4, 2010

Saari duniya ka gyan pa lo phir bhi sukh tikega nahi, dukh mitega nahi , Bhagwan ka gyan, preeti pa lo sukh mitega nahi, dukh tikega nahi
ईश्वरीय विधान में हम जितना अडिग रहते हैं उतनी ही प्रकृति अनुकूल हो जाती है। ईश्वरीय विधान में कम अडिग रहते है तो प्रकृति कम अनुकूल रहती है


ईश्वरीय विधान हमारी तरक्की.... तरक्की.... और तरक्की ही चाहता है। जब थप्पड़ पड़ती है तब भी हेतु तरक्की का है। जब अनुकूलता मिलती है तब ईश्वरीय विधान का हेतु हमारी तरक्की का है
Ishwar ki pratyek leela me sukh, shanti, anand ka samavesh hai. Tum apni nazar ishwer ki nazar se milakar to dekho. Tumhe ye anubhav hoga ke tum bhi sukhswaroop ho




Bahar koi sahara nahi hai, saccha sahara to tumhara antaryami PARMATMA hai, jitne tum unke karib hote ho utna jagat tumhari anukulta karta hai aur jitna tum usse dur hote ho utna hi jagat bhi tumhe thukrata hai
हे दयालु दाता। हमें ऐसा आशीर्वाद दीजिए कि हम प्रत्येक दिन को शुभ अवसर बना सकें। प्रत्येक दिन की चुनौती का सामना करने के लिए हमें ऐसी शक्ति प्रदान कीजिए कि जिससे हम संघर्ष में विजयी हों। हमारे द्वारा संसार में कुछ भी बुरा न हो, प्रेमपूर्ण वातावरण में श्वास ले सकें तथा प्रेम को संपूर्ण संसार में बाँट सकें।

Friday, July 2, 2010

आयु बीत जाने के बाद काम भाव नहीं रहता, पानी सूख जाने पर तालाब नहीं रहता, धन चले जाने पर परिवार नहीं रहता और तत्त्व ज्ञान होने के बाद संसार नहीं रहता ॥१०॥ कोई योग में लगा हो या भोग में, संग में आसक्त हो या निसंग हो, पर जिसका मन ब्रह्म में लगा है वो ही आनंद करता है, आनंद ही करता है

Wednesday, June 30, 2010

भगवदसुमरिन का,


परिस्थितियों में सम रहने की सजगता का, परमात्म-विश्रान्ति का, आकाश में

एकटक निहारने का, श्वासोच्छवास में सोऽहं जप द्वारा समाधि-सुख में जाने का

आदरसहित अभ्यास करना। कभी-कभी एकांत में समय गुजारना, विचार करना कि इतना

मिल गया आखिर क्या ? अपने को स्वार्थ

... से बचाना। स्वार्थरहित कार्य ईश्वर को कर्जदार बना देता है
आत्मवेत्ता महापुरुष जब हमारे अन्तःकरण का संचालन करते हैं, तभी अन्तःकरण परमात्म-तत्त्व में स्थित हो सकता है, नहीं तो किसी अवस्था में, मान्यता में, वृत्ति में, आदत में साधक रुक जाता है। । उससे आगे जाना है तो महापुरुषों के आगे बिल्कुल 'मर जाना' पड़ेगा। ब्रह्मवेत्ता सदगुरु के हाथों में जब हमारे 'मैं' की लगाम आती है, तब आगे की यात्रा आती है।
सब दुःखों की एक दवाई




अपने आपको जानो भाई।
यदि तुम सदैव प्रसन्न रहना चाहते हो तो यह अदभुत मंत्र याद रखो। 'यह भी बीत जायेगा।' इसे सदा के लिए अपने हृदय पटल पर अंकित कर दो। यह वह मंत्र है, जिसके अभ्यास से मनुष्य सुख-दुःख के समय स्वयं को सँभालकर सावधान हो सकता है और उसमें फँसने से बच सकता है, समरसता के परम सुख में प्रतिष्ठित हो सकता है।

Monday, June 28, 2010

प्रार्थना

प्रार्थना




गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।



गुरुर्साक्षात्परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।



ध्यानमूलं गुरोर्मूतिः पूजामूलम गुरो पदम्।



मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा।।



अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।



तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।



त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव।



त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव।।



ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं।



द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्।



एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं



भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि।।



ॐ गुरु ॐ गुरु
संसार में माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी के सम्बन्ध की तरह गुरु-शिष्य का सम्बन्ध भी एक सम्बन्ध ही है लेकिन अन्य सब सम्बन्ध बन्धन बढ़ाने वाले हैं जबकि गुरु-शिष्य का सम्बन्ध सम बन्धनों से मुक्ति दिलाता है। यह सम्बन्ध एक ऐसा सम्बन्ध है जो सब बन्धनों से छुड़ाकर अन्त में आप भी हट जाता है और जीव को अपने शिवस्वरूप का अनुभव करा देता है।

Sunday, May 30, 2010


  • सर्वस्व जाय तो भी कभी किसी निमितसे कहीं किंचिन्मात्र भी पाप न करे,न करवावे और न उसमें सहमत ही हो


  • ममता की छांव में, हम आपने गाँव में बगिया में तोड़े वो आम बड़े कच्चे थे तब जब हम बच्चे थे...... चांदनी की रातों में, दादी के पहलू में सुनते थे किस्से जो, लगते वो सच्चे थे तब जब हम बच्चे थे........... गैया का दूध दुहे, नन्हे से हांथो से प्यारे बछडे उसके, तब लगते अच्छे थे तब जब हम बच्चे थे...........


  • आकार वो बैठ गयी, घर में बिन बात के बकबक काकी को तब, देते हम गच्चे थे तब जब हम बच्चे थे........... प्रातः उठकर बाबा, खेतों की ओर चलें चाहे कोई ऋतु हो, धुन के वो पक्के थे तब जब हम बच्चे थे.......... शहरों की चकाचौंध, मुझसे ना सही जाये बेहतर था गाँव, वहां हम इससे अच्छे थे तब जब हम बच्चे थे.........

  • Tuesday, May 18, 2010

    अन्दर की चेतना को जगाओ ..अन्दर की चेतना जगी , भक्ती है तो खुदा को पा लेगा…इतनी शक्ति है इन्सान तुझ मे !


    संसार मे सुख खोजना कुसंग है और सच्चे सुख का तरीका जानना सत्संग है..!!
    इन्सान की बद भक्ती अंदाज से बाहर है l


    कम्बख्त , खुदा होकर बन्दा नझर आता है…!!
    जैसे प्रकाश के बिना पदार्थ का ज्ञान नहीं होता उसी प्रकार पुरुषार्थ के बिना कोई सिद्धि नही होती। जिस पुरुष ने अपना पुरुषार्थ त्याग दिया है और दैव (भाग्य) के आश्रय होकर समझता है कि "दैव हमारा कल्याण करेगा" तो वह कभी सिद्ध नहीं होगा। पत्थर से कभी तेल नहीं निकलता, वैसे ही दैव से कभी कल्याण नहीं होता। तुम दैव का आश्रय त्याग कर अपने पुरुषार्थ का  आश्रय करो। जिसने अपना पुरुषार्थ त्यागा है उसको सुन्दरता, कान्ति और लक्ष्मी त्याग जाती है।
    रैन की बिछड़ी चाकवी, आन मिले प्रभात।सत्य का बिछड़ा मानखा, दिवस मिले न ही रात।।हे चिड़िया ! सन्ध्या हुई। तू मुझसे बिछड़ जायेगी, दूसरे घोंसले में चली जाएगी किन्तु प्रभात को तू फिर मुझे मिल जायेगी लेकिन मनुष्य जन्म पाकर भी उस सत्य स्वरूप परमात्मा के सत्य से बिछड़नेवाला मनुष्य पुनः सत्य से न सुबह मिलेगा, न शाम को, न रात में मिलेगा न दिन में।
    नम्रतापूर्वक पूज्यश्री सदगुरू के पदारविन्द के पास जाओ। सदगुरू के जीवनदायी चरणों में साष्टांग प्रणाम करो। सदगुरू के चरणकमल की शरण में जाओ। सदगुरू के पावन चरणों की पूजा करो। सदगुरू के पावन चरणों का ध्यान करो। सदगुरू के पावन चरणों में मूल्यवान अर्घ्य अर्पण करो। सदगुरू के यशःकारी चरणों की सेवा में जीवन अर्पण करो। सदगुरू के दैवी चरणों की धूलि बन जाओ।
    जैसे स्वप्न में मिली हुई सजा जागृत अवस्था में नहीं रहती, दूध में से घी निकलने के बाद वह दूध में नहीं मिलता अपितु पृथक ही रहता है, लकड़ी जल जाने के बाद वह अग्निरूप हो जाती है और लकड़ी का कहीं नामोनिशान नहीं रहता है, उसी प्रकार संसारस्वप्न में से जो जीव जाग जाता है उसे फिर संसार स्वप्न की कैद में, माता के गर्भ में आने का दुर्भाग्य नहीं होता
    हमारे पास खाने को पर्याप्त अन्न, पहनने को वस्त्र, रहने को घर होते हुए भी हम भीतर से दुःखी क्यों हैं? दीन क्यों है ? अशान्त क्यों हैं ? क्योंकि हम लोग अपने भीतर की चेतना जगाने की तरकीब भूल गये हैं, अन्तर में निहित आनन्दसागर से संपर्क खो बैठे हैं, परमात्मा का अनुसंधान करने के संपर्क-सूत्र छोड़ बैठे हैं, मंत्रजप एवं उसके विधि-विधान त्याग चुके हैं।

    Sunday, May 16, 2010

    लक्ष्य जितना ऊँचा होता है उतने ही संकल्प


    शुद्ध होते हैं। ऊँचा लक्ष्य है मोक्ष,परमात्मा-प्राप्ति, , अनन्त

    ब्रह्माण्डनायक ईश्वर से मिलना। ऊँचा लक्ष्य तुच्छ संकल्पों को दूर कर देता

    है। ऊँचा संकल्प जितना दृढ़ होगा उतना ही तुच्छ संकल्पों को हटाने में

    सफलता मिलेगी। तुच्छ संकल्पों को काट दिया जाएगा, ऊँचा जीवन, ऊँची

    समझ, और ऊँचे में ऊँचे परमात्मा की

    प्राप्ति सुलभ होगी।
    सेवा वह उत्तम होती है,जिसमें सेवक का नामतक सेव्यको ज्ञात न हो सके।


     सुख की लोलुपता कैसे छुटे?जानते हुए,कहते हुए,समझते हुए,पढ़ते हुए भी उसमें फँस जाते हैं!अत: उससे छुटनेके लिये बड़ा सीध सरल उपाय है कि दूसरे को सुख कैसे पहुँचे?यह भाव बना लें।घर में माँ-बाप को सुख कैसे हो?स्त्री को सुख कैसे हो?मेरे द्वारा क्या किया जाय,जिससे इनको सुख हो जाय?यह वृति अगर आपकी जोरदार हो जायेगी तो सुखभोग की रुचि मिट जायेगी।
    सच्चा भक्त अपने किसी अनिष्टकी आशङ्कासे सन्मार्गका -ईश्वर-सेवाका कदापि त्याग नहीं करता।तन,मन,धन सभी कुछ प्रभुकी ही तो सम्पति है,फिर उन्हें प्रभुके काममें लगा देनेमें अनिष्ट कैसा?इसीसे यदि असहाय रोगीकी सेवा करते-करते भक्तके प्राण चले जाते हैं या भूखे-गरीबोंका पेट भरनेमें भक्तकी सारी समपति स्वाहा हो जाते है तो वह अपने को बड़ा भाग्यवान्‌ समझता है।

    Wednesday, May 12, 2010

     जो प्रेम परमात्मा को करना चाहिए वह प्रेम अगर मोहवश होकर कुटुम्ब में केन्द्रित किया तो कुटुम्ब तुम्हें धोखा देगा। जो कर्म परमात्मा के नाते करना चाहिए वे ही कर्म अगर अहंकार पोसने के लिए किये तो जिनके वास्ते किये वे लोग ही तुम्हारे शत्रु बन जाएँगे। जो जीवन जीवनदाता को पाने के लिए मिला है, वह अगर हाड़-मांस के लिए खर्च किया तो वही जीवन बोझीला हो जाता है।
     जो प्रेम परमात्मा को करना चाहिए वह प्रेम अगर मोहवश होकर कुटुम्ब में केन्द्रित किया तो कुटुम्ब तुम्हें धोखा देगा। जो कर्म परमात्मा के नाते करना चाहिए वे ही कर्म अगर अहंकार पोसने के लिए किये तो जिनके वास्ते किये वे लोग ही तुम्हारे शत्रु बन जाएँगे। जो जीवन जीवनदाता को पाने के लिए मिला है, वह अगर हाड़-मांस के लिए खर्च किया तो वही जीवन बोझीला हो जाता है।

    Tuesday, May 11, 2010

    हे नाथ ! हे मेरे नाथ! । छोटा बालक रोता है तो माँ आ ही जाती है । बालक घरका कुछ काम नहीं करता, पर जब वह रोने लगता है, तब माँको सब काम छोडकर बालकको उठाना पडता है । बालकका एकमात्र बल रोना ही है—‘बालानां रोदनं बलम्’ । रोनेमें बड़ी ताकत है । सच्चे ह्रदयसे व्याकुल होकर यह बालक आपको पुकार रहा है, आपके लिए रो रहा है ! आपको आकर उठाना ही पड़ेगा

    Monday, May 10, 2010

    रैन की बिछड़ी चाकवी, आन मिले प्रभात।




    सत्य का बिछड़ा मानखा, दिवस मिले न ही रात।।



    हे चिड़िया ! सन्ध्या हुई। तू मुझसे बिछड़ जायेगी, दूसरे घोंसले में चली जाएगी किन्तु प्रभात को तू फिर मुझे मिल जायेगी लेकिन मनुष्य जन्म पाकर भी उस सत्य स्वरूप परमात्मा के सत्य से बिछड़नेवाला मनुष्य पुनः सत्य से न सुबह मिलेगा, न शाम को, न रात में मिलेगा न दिन में।
     लक्ष्य न ओझल होने पाये, कदम मिलाकर चल।
    सफलता तेरे चरण चूमेगी, आज नहीं तो कल।।

    आदर तथा आनादर , वचन बुरे या भले , निंदा स्तुति जगत की धर जुते की तल्ले ... हरी हरी ॐ
     हे देवाधिदेव महादेव ! हे सच्ग्क्गीदानंद! काल आपके अधीन है ,आप काल से मुक्त हैं ! जिसे मृत्यु जीतनी है ,उसे तो आपमें स्थित होना चाहिय ! आपका मन्त्र मृत्युँजय है !
     है शंकर ! है शिवा ! आप त्र्यम्बक अर्थात तीन नेत्रों वाले हैं ! सत्यम ,शिवम और सुन्दरम आपके तीन नेत्र हैं ! आप ज्ञान ,कर्म और भक्ती को धारण करते हैं !भू:, भुव: और स्व: -भूमि ,अंतरिक्ष ,और धुलोक सब आपमें ही व्याप्त है ! जीवन ,मृत्यु और मुक्ति तीनों ही आपके नेत्र हैं ! आप बालचन्द्र ,गंगा और शक्ति -तीनों को धारण करते है ! आप जग का कल्याण करते हैं ! प्रभु ! हम कल्याण मार्ग के पथि
    जो भी लोग सत्संग ध्यान से सुनते हैं वो बुद्धिमान बनते हैं बड़ी-बड़ीतपस्या से भी अदमी इतना बुद्धिमान नहीं होता जितना सत्संग से हो जाता हैसत्संग से जो भी बुद्धि का विकास होता है, भाग्य का उदय होता है, वह राज्यसत्ता मिलने से भी नहीं होता
     हे वत्स !उठ.... ऊपर उठ।प्रगति के सोपान एक के बाद एकतय करता जा।दृढ़ निश्चय कर कि'अब अपना जीवनदिव्यता की तरफ लाऊँगा।
    सत्य को सुनो, इसके भीतर जाओ, इसे गुनो, इसे भूल जाओ, और जितना तुम इसे पढ़ पाओगे, उतनी ही इससे मुक्त होने की तुममें क्षमता आयेगी। इसे समझने की क्षमता और इससे मुक्त होने की क्षमता एक ही घटना के दो नाम है।
    बीते हुएकी चिन्ता न करो, जो अब करना है, उसे विचारो और विचारो यही की बाकिका सारा जीवन केवल उस परमात्माके ही काममें आवे |

    Sunday, May 9, 2010

    भगवान् को साथ रखकर काम करनेसे ही पापोंसे रक्षा और कार्य में सफलता होती है

    (आनंद की लहरें - पेज ६
    सच्ची जिज्ञासा रहनेसे उसमें एक व्याकुलता पैदा होती है कि ‘मैंने इतना जान लिया, पर मेरेमें कोई फर्क नहीं पड़ा, कोई विलक्षणता नहीं आयी ! राग-द्वेष, हर्ष-शोक वही होते हैं !’ ऐसी व्याकुलता होनेपर वह अहम् से सर्वथा विमुख हो जाता है । अहम् से सर्वथा विमुख होनेपर जिज्ञासु नहीं रहता, प्रत्युत शुद्ध जिज्ञासा रह जाती है और वह जिज्ञासा ज्ञान (बोध) में परिणत हो जाती है ।
    भगवानके सभी नाम एक-से हैं, सब में सामान शक्ति है, सभी पूर्ण हैं; तथापि जिस नाममें अपनी रूचि हो, जिसमें मन लगता हो और सदगुरु अथवा सन्त ने जिस नामका उपदेश किया हो, उसीका जप करना उत्तम है!

    Sunday, May 2, 2010

    चित्त की मधुरता से, बुद्धि की स्थिरता से सारे दुःख दूर हो जाते हैं। चित्त की प्रसन्नता से दुःख तो दूर होते ही हैं लेकिन भगवद-भक्ति और भगवान में भी मन लगता है। इसीलिए कपड़ा बिगड़ जाये तो ज्यादा चिन्ता नहीं, दाल बिगड़ जाये तो बहुत फिकर नहीं, रूपया बिगड़ जाये तो ज्यादा फिकर नहीं लेकिन अपना दिल मत बिगड़ने देना।

    Saturday, May 1, 2010

    ‘हे प्रभु ! हे दया के सागर ! तेरे द्वार पर आये हैं । तेरे पास कोई कमी नहीं । तू हमें बल दे, तू हमें हिम्मत दे कि तेरे मार्ग पर कदम रखे हैं तो पँहुचकर ही रहें । हे मेरे प्रभु ! देह की ममता को तोड़कर तेरे साथ अपने दिल को जोड़ लें

    Thursday, April 29, 2010

    भूल से उत्पन्न हुई असावधानी और असावधानी से उत्पन्न एवं पोषित दोषों को मिटाने में अपने को असमर्थ स्वीकार करना और नित्य प्राप्त,स्वत: सिद्ध निर्दोषता से निराश होना मानव-जीवन का घोर अनादर है।यह नियम है कि जो अपना आदर नहीं करता,उसका कोई आदर नहीं करता।अपने आदर का अर्थ दूसरों का अनादर नहीं है,अपितु दूसरों के अनादर से तो अपना ही अनादर होने लगता है;क्योंकि जो किसी को भी दोषी मानता है,वह स्वयं निर्दोष नहीं हो सकता।
    जबतक तुम्हारा हृदय मलिन है, जबतक तुम लुक-छिपकर पाप करते हो, तबतक मानसिक अशान्ति, संताप और नरक-दुःख से कदापि नहीं बच सकते।

    Wednesday, April 28, 2010

    badi badi madhur badhur teri vani , badi kalyani yah vardani , sabko poavan karti ho jogi , jogi re kya jadu hai tere pyar me ,tera nam hai bhavdukh tari , tu hame lage tprurari ,sabi dev tume mi basate jogi re kya jadu hai tere pyar me
    ડગમગતો પગ રાખ તું સ્થિર મુજ, દુર નજર છો ન જાયે, દૂર માર્ગ જોવા લોભ લગીર ના, મારે એક ડગલું બસ થાય, મારો જીવનપન્થ ઉજાળ
    પોતાના ગુણો પોતે જ કહેવા ન જોઈએ. પણ યુક્તિપૂર્વક બીજા લોકો વર્ણવે તેમ કરવું જોઈએ
    દરેક માણસના સ્વભાવની પરીક્ષા સૌથી પહેલી થાય છે, બીજા ગુણોની નહિ. કારણ કે બીજા બધા ગુણોને પાછળ રાખી દઈને માણસનો સ્વભાવ જ આગળ તરી આવે છે
    वृक्ष के समान सहनशील हों।पत्थर मारनेवाले को फल दें,काटकर जला देनेवालेकी रोटी पका दें।चीरकर काट देनेवालेका दरवाजा,चौखट,छ्त बन जायँ।बिना किसी भेदके सबको छाया दें,जात-पात का भेद कुछ न मानें।
    यदि तुम अपने लक्ष्य को - भगवान् को कभी न भूलते हुए सदा निर्लेप तथा सावधान रहकर भगवान् की ओर चलते रहोगे तो यह मानव-शरीर तुम्हें निश्चय ही वहाँ पहुँचाने में समर्थ होगा।
    भयंकर से भयंकर परिस्थिति आ जाय,तब भी कह दो-"आओ मेरे प्यारे!आओ,आओ,आओ।तुम कोई और नहीं हो।मैं तुम्हें जानता हूँ।तुमने मेरे लिये आवश्यक समझा होगा कि मैं दु:ख के वेश में आऊँ,इसलिये तुम दु:ख के वेश में आये हो।स्वागतम्!वैलकम्! आओ आओ चले आओ!" आप देखेंगे कि वह प्रतिकूलता आपके लिये इतनी उपयोगी सिद्ध होगी कि जिस पर अनेकों अनुकूलतायें निछावर की जा सकती है।
    तुम अपने आप हो आत्मा, दूसरा है शरीर। स्व है आत्मा और पर है शरीर। शरीर के लिए सन्देह रहेगा कि यह शरीर कैसा रहेगा ? बुढ़ापा अच्छा जाएगा कि नहीं ? मृत्यु कैसी होगी ? लेकिन आत्मा के बारे में ऐसा कोई सन्देह, चिन्ता या भय नहीं होगा। आत्म-स्वरूप से अगर मैं की स्मृति हो जाए तो फिर बुढ़ापा जैसे जाता हो, जाय.... जवानी जैसे जाती हो, जाय.... बचपन जैसे जाता हो, जाय.....

    Monday, April 26, 2010

    रीत-रिवाज जानने वाले लोग बहुत हैं, यज्ञ याग करके सिद्धियाँ पाने की इच्छावाले लोग बहुत हो सकते हैं। भगवान की प्रीति के लिए जो कर्म करते हैं, यज्ञ करते हैं वे विरले हैं। काम-विकार से प्रेरित होकर बच्चों को जन्म देने वाले लोग तो कई होते हैं, भगवान की प्रसन्नता के लिए संसार का कार्य करने वाले कोई विरले हैं। जो कुछ करो, भगवान की प्रसन्नता के लिए करो।
    जब तक सुख भोग और आराम का उद्देश्य है, सुख भोग और आराम की अंदर में आसक्ति है, उसकी महत्ता है तब तक पारमार्थिक उद्देश्य बनता ही नहीं। तत्व प्राप्त होते हुए भी अप्राप्त रहता है
    आपका जीवन आपकी श्रद्धा के अनुसार ही होगा। जीवन को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मनुष्य को अपना जीवन उत्साह, उमंग एवं उल्लास के साथ जीना चाहिए एवं अपनी शक्तियों पर विश्वास रखकर, सफलता के पथ पर आगे बढ़ते रहना चाहिए। श्रद्धा ही हमें सच्चे अर्थ में जीवन जीना सिखाती है। जहाँ से जीवन-प्रवाह चलता है उस शक्ति-स्रोत का द्वार हमारी श्रद्धा ही
    जिन्हें अपने जीवन की महानता पर अडिग श्रद्धा थी ऐसे व्यक्ति इतिहास के पन्नों में अमर हो गये हैं। जो ऐसा मानते हैं कि उन्हें कहीं जाना ही है, ऐसे व्यक्तियों के लिए दुनिया अपने-आप रास्ता बना देती है।
    O' Lord besides You who else will support us - the poor wretched, suffering ones? After looking at us, now pull us toward your Lotus Feet and place us there. We do not want liberation, we do not want Your abode, we do not want our name in heaven or hell,. You simply make us unconscious and mad in the dust of Your Lotus Feet. On taking Your Name, let tears of joy flow from my eyes, and the voice inarticulate with emotion stalls and the entire body and it's every pour is filled with ecstacy
    In difficulties, we remember God. We forget God in the midst of running after worldly sense enjoyments that are temporary and worthless. Therefore inbetween by giving us some difficulties, God is alerting us to not forget Him. Without that our state would be terrible. This human body has not been received for sense enjoyments. It has been received only to realize Me - therefore do not waste it away on useless activities

    Saturday, April 24, 2010

    केवल भगवान् का आश्रय ले ले तो सदाके लिये मौज हो जाये! स्वप्नमें भी किसीकी किञ्चिन्मात्र भी गरज न रहे! जब किसी-न-किसी का आश्रय लेना ही पड़ता है तो सर्वोपरिका ही आश्रय लें छोटेका आश्रय क्या लें?अत: सबसे पहले ही यह मान लें कि भगवान् हमारे और हम भगवान् के हैं।
    हमारेपर भगवान् की कृपानिरन्तर होरही है परहम उधर देखतेही नहीं!हमउस कृपाकी अवज्ञा करते हैं,निरादर करते हैं,फिरभी भगवान् अपना कृपालु स्वभाव नहीं छोड़ते,कृपा करतेही रहते हैं।बालक माँकाकोई कम निरादर नहीं करता।कहीं पेशाब कर देता है,कहीं थूकदेता है पर माँ सब कुछ सहलेती है।हमभी उल्टे चलनेमें बालककी तरह तेज हैं,पर कृपा करनेमें भगवान् भी माँसे कम तेजनहीं हैं! इसलिये हमें उनकी कॄपाका भरोसा रखना चाहिये।

    Thursday, April 22, 2010

    सुखमें विकास नहींहोता,इसमेंपुराने पुण्य नष्ट होतेहैं और सुखभोगमें उलझ जानेके कारण आगे उन्नतिनहीं होती।जोप्रतिकूलता आनेपरभी साधनकरता रहताहै,वह अनुकूलतामेंभी सुगमतापूर्वकसाधन करसकता है।इसलियेगृहस्थका उद्धारजल्दीहोताहै,परसाधुका उद्धारजल्दीनहींहोता।कारणकि साधुतो थोड़ीभी प्रतिकूलतासह नहींसकता औरप्रतिकूलता आनेपर कमण्डलुउठाकर चलदेता है,पर गृहस्थ प्रतिकूलता आनेपर कहाँ जाय?वह माँ-बाप,स्त्री-पुत्रको कैसे छोड़े?

    Tuesday, April 20, 2010

    आत्मबल में श्रद्धा उत्पन्न होते ही कायर शूरवीर हो जाते हैं, प्रमादी एवं आलसी उद्यमी हो जाते हैं, मूर्ख विद्वान हो जाते हैं, रोगी निरोग हो जाते हैं, दरिद्र धनवान हो जाते हैं, निर्बल बलवान हो जाते हैं और जीव शिवस्वरूप हो जाते हैं।
    हमारे अधिकार तभी सुरक्षित रह सकते हैं,जब हमारे साथी कर्तव्य-परायण हों;और हमारे साथियों के अधिकार तभी सुरक्षित होंगे,जब हम कर्तव्यनिष्ठ हों। हमारे कर्तव्यनिष्ठा ही हमारे साथियों में कर्तव्य परायणता उत्पन्न करेगी;क्योंकि, जिसके अधिकार सुरक्षित हो जाते हैं,उसके हृदय में हमारे प्रति प्रीति स्वत: उत्पन्न हो जाती है,जो उसे कर्तव्य-परायण होने के लिए विवश करे
    भगवान् कीतो बड़ी हीदया है।भगवान् यदि मनुष्य-जन्म नहींदेते तोहम स्वयं क्या करसकते थे।उनपरअपना क्याजोर था।हमारा जन्म आर्यावर्तमें हुआ जोकि आध्यात्मिकतासे भरी हुई भूमि है।अन्यत्रकी भूमि भोग-भूमि है।इसके साथ भगवच्चर्चाका अवसर।इतनी बातें एकत्र मिल जानेके बाद कल्याणमें क्या शंका हो सकती है।’कल्याण तो निश्चय ही होगा ’ऐसा माननेमें क्या आपति!
    हे नाथ! हमें आपके चरित्र अच्छे लगें,आपकी लीला अच्छी लगे,आपके गुण अच्छे लगे,तो यह आपके कृपा ही है,हमारा कोई बल नहीं है।आज जो हम आपका नाम ले रहे हैं,आपकी चर्चा सुन रहे हैं,आपमें लगे हुए हैं,यह केवल आपकी ही कृपा है।काम,क्रोध,लोभ,मोह,मद जैसे कितने-कितने अवगुण भरे हुए हैं और कैसा कलियुग का समय है! ऐसे समयमें आपके तरफ वृति होती है तो यह केवल आपकी कृपा है।

    Monday, April 19, 2010

    मूलस्वरूप में तुम शान्त ब्रह्म हो। अज्ञानवश देह में आ गये और अनुकूलता मिली तो वृत्ति एक प्रकार की होगी, प्रतिकूलता मिली तो वृत्ति दूसरे प्रकार की होगी, साधन-भजन मिला, सेवा मिली तो वृत्ति थोड़ी सूक्ष्म बन जाएगी। जब अपने को ब्रह्मस्वरूप में जान लिया तो बेड़ा पार हो जाएगा। फिर हाँ हाँ सबकी करेंगे लेकिन गली अपनी नहीं भूलेंगे।
     वे सत्पुरूष क्यों हैं ? कुदरत जिसकी सत्ता से चलती है उस सत्य में वे टिके हैं इसलिए सत्पुरूष हैं। हम लोग साधारण क्यों हैं ? हम लोग परिवर्तनशील, नश्वर, साधारण चीजों में उलझे हुए हैं इसलिए साधारण हैं।
    संतोंके दर्शन,स्पर्श,उपदेश-श्रवण और चरणधूलिके सिर चढ़ानेकी बात तो दूर रही,जो कभी अपने मनसे संतोंका चिन्तन भी कर लेता है,वही शुद्धान्त:करण होकर भगव्तप्राप्ति का अधिकारी बन जाता है।
    हे प्रभो! थोड़ी-सी योग्यताआते ही हमेंअभिमान होजाता है! योग्यतातो थोड़ी होती है,पर मान लेते हैंकि हमतो बहुत बड़े होगये,बड़े भक्त बन गये,बड़े त्यागी,बन गये!भीतरमें यह अभिमानभरा है नाथ! आपकी ऐसीबात सुनी हैकि आप अभिमानसे द्वेश करते हो और दैन्यसे प्रेम करते हो।अगर आपको अभिमान सुहाता नहीं हैतो फिरउसको मिटादो,दूर करदो।बालककीचड़से सना होऔर गोदीमें जाना चाहता होतो
    पानी तो वही का वही लेकिन समयानुसार उपयोग का असर पृथक-पृथक होता है। ऐसे ही मन तो वही, शरीर भी वही लेकिन किस समय शरीर से, मन से क्या काम लेना है इस प्रकार का ज्ञान जिसके पास है वह मुक्त हो जाता है। अन्यथा कितने ही मंदिर-मस्जिदों में जोड़ो एवं नाक रगड़ो, दुःख और चिन्ता तो बनी ही रहेगी।




    कभी न छूटे पिण्ड दुःखों से।



    जिसे ब्रह्म का ज्ञान नहीं।।
    कई प्रकार के कर्म होते हैं , लेकिन भगवान और संत से निगुरों , सगुरे की मुलाकात करना कितनी बड़ी सेवा है ….


    वाह- वाही के लिए , चाटुकारी के लिए तो नेता भी सेवा कर लेता है , रोटी के टुकड़े के लिए तो कुत्ता भी पूछ हिला देता है …लेकिन मान – अपमान , ठंडी -गर्मी , आंधी -तूफ़ान
    अपने लिए तो कई जिंदगी बर्बाद हो गयी , लेकिन धर्म के लिए ….धर्मं के लिए गांधीजी भी जेल गए , नानक भी तो गए , बाबर ने नानक जी को जेल डाला ….फिर भी नानक अभी भी हमारे दिलों में आदरणीय हैं …..ऐसे ही बुद्ध कितना दुष्ट लोगों ने


    ऐसे ही बुद्ध कितना दुष्ट लोगों ने साजिशें की …..वैश्या आके बोलती थी बुद्ध तो मेरे साथ ही सोते हैं ….गुनाह तो किसी ने किया , आरोप बुद्ध पर आ गए …..
    लोगों को भगवान से जोड़ना और संत वाणी से जोड़ना ये अपने आप में बड़ी सेवा है ….


    तीर्थ नहाये एक फल , संत मिले फल चार

    सदगुरु मिले अनंत फल , कहत कबीर विचार

    Sunday, April 18, 2010

    Kis tarah ladatee rahi ho, Pyaas se parchhaiyon se, Neend se , angadaiyon se, Maut se aur zindagi se, Teej se ,tanahaiyon se. kab tak ladte rahoge , jiwan me bhar lo ujale ,kar do roshan apni rahe , prabhu prem se Guru Giyan se
    जो मृत्यु के बाद भी तुम्हारे साथ रहेगा उस आत्मा का ज्ञान कर लो…जीवन लाचार मोहताज हो जाये उसके पहले जीवन मे परमात्म सुख की पूंजी इकठ्ठी कर लो…।lकर सत्संग अभी से प्यारे नही तो फिर पछताना हैखिला पिला के देह बढाई वो भी अग्नि मे जलाना है…कर सत्संग अभी से प्यारे नही तो फिर पछताना है॥

    Saturday, April 17, 2010

    सजदा

     मै सोचता हु हज को न आऊ न जाऊ काशी और मथुरा और ना चारो धाम पहले खुद को पवित्र तो कर लू मन से और तन से सच्ची भावनाओ के स्पर्श से .. मै वैसे ही आ जाऊ तेरे पास जैसा तुने भेजा था पाक , पवित्र , कोमल , सच्चा ,.. फिर आ जाऊंगा तेरे पास सिर्फ एक इल्तजा है मेरी मेरा सजदा कुबुल कर ले
    निर्दोषता की अभिव्यक्ति तभी सुरक्षित रह सकती है,जब किसी के प्रति वैर-भाव की गन्ध तक न रहे।यह तभी सम्भव है जब किसी के प्रति भी दोषी भाव न रहे,अर्थात् अपने प्रति होने वाली बुराई का कारण भी अपने को ही मान लिया जाय।जिन्हें दोषी मान लिया है,यदि किसी कारण उन्हें निर्दोष माननेमें असमर्थता प्रतीत हो,तो उन्हें अनजान बालककी भाँति क्षमा कर दिया जाय।
    संत जो यथार्थ मे ईशवर के अवतार होते है, जो बन्धनो व इच्छाओ से मुक्त होते है, वे संसार के उत्थान के लिए बिना किसी स्वार्थ के प्रकट होते है I

    प्रेम

    सभीको प्रेमभरी मधुरता और सहानुभूतिभरी आँखोंसे देखो। याद रखो- सुखी जीवनके लिये प्रेम ही असली खुराक है। संसार इसीकी भूखसे मर रहा है! अतएव प्रेम वितरण करो- अपने हॄदयके प्रेमको हृदयमें ही मत छिपा रखो। उसे उदारताके साथ बाँटो। जगत्का बहुत-सा दु:ख दूर हो जायगा।

    शरण

    यदि कहें कि किस बातको लेकर खुश रहें तो इसका उत्तर यह है कि भगवान् की दयाको देख-देखकर।देखो,भगवान् की तुमपर कितनी दया है। अपार दया समझकर इतना आनन्द होना चाहिये कि वह हृदयमें समावे नहीं।हर समय आनन्दमें मुग्ध रहें।बार-बार प्रसन्न होवें।अहा प्रभुकी कितनी दया है।यही सबसे बढ़कर साधन है और यही भक्ति है एवं इसीका नाम शरण है।

    Wednesday, April 14, 2010

    पिघले हुए चपड़ेमें जैसा भी रंग डाल दिया जाय,वह वैसा ही रंग वाला बन जाता है।इसी तरह किसीका हृदय जब पिघल जाता है तब बहुत ही अच्छा रंग चढ़ता है।जिन पुरुषोंका हृदय भगवान् के विरह की व्याकुलता में पिघला है,उनके चरित्र को करुणाभाव या प्रेमभाव से याद करे।ऐसा करने से हृदय एकदम पिघल जाता है।यदि आदमी का हृदय व्याकुल हो जाय तो उसका जीवन बहुत ही बदल जाय।
    को काहू को नहीं सुख दुःख करी दाता।




    निज कृत कर्म हि भोगत भ्राता।।

    Tuesday, April 13, 2010

    अपने से सुखियों को देखकर आप प्रसन्न हो जायं।अपने से दुखियों को देख कर आप करुणित हो जायं।जिस हृदय में करुणा निवास करती है उस हृदयमें भोग की रुचि नहीं रहती।और जिस चित्त में प्रसन्नता निवास करती है,उसमें काम की उत्पति नहीं होती।आप हो जायेंगे भोग की वासना से रहित और काम से रहित।यह भौतिक जीवन की पराकाष्टा हो गई।
    समस्त जगत्को भगवान् की प्रजा समझकर प्रेम करे तथा इससे बढ़कर सबको अपनी आत्मा समझकर प्रेम करे और इससे भी बढ़कर सबको भगवत्स्वरुप समझकर प्रेम करना चाहिये।

    Monday, April 12, 2010

    जैसे बच्चा माँसे दूर चला जाय तो माँ को उसकी बहुत याद आती है।माताओं की ऐसी बात सुनी हैं।दीपावली,अक्षय तृतीया आदि त्यौहार आते हैं तो माताएँ कहती हैं कि क्या बनायें? लड़का तो घर पर है नहीं,अच्छी चीज बनाकर किसको खिलायें?ऐसे ही भगवान् के लड़के हमलोग चले गये विदेशमें!अब भगवान् कहते हैं कि क्या करुँ?क्या दूँ?लड़का तो घरपर ही नही है!वह तो धन-सम्पति की तरफ लगा है,खेल-कू


    वह तो धन-सम्पति की तरफ लगा है,खेल-कूद में लगा है!

    तुम यदि अपनेको भगवान् के प्रति सौंप देते हो,अपनी इच्छाओंको भगवान्की इच्छामें मिला देते हो एवं अपने ज्ञान और बलको भगवान् के ज्ञान और बल का अंश मान लेते हो तो निश्चय समझो-फिर तुम भगवान् की मङ्गलमयी इच्छासे मङ्गलमय बनकर केवल अपना ही कल्याण नहीं करोगे;तुम्हारा प्रत्येक विचार,तुम्हारा प्रत्येक निश्चय और तुम्हारी प्रत्येक क्...रिया अखिल जगत् का मङ्गल करोगे
    प्रेमकी इति नहीं है।प्रथम भगवान् में प्रेम बढ़ता है तो अश्रुपात होता है,वाणी गद्गद् हो जाती है।जब आगे बढ़ जाता है,तब प्रेम में बेहोश हो जाता है। और आगे बढ़े तो होश आ जाता है फिर भगवान् मिल जाते हैं।
    प्रयत्न के बिना कोई भी फल प्रगट नहीं होता। अतः प्रयत्न को उत्पन्न करने वाली आत्मश्रद्धा का जिसमें अभाव है उसका जीवन निष्क्रिय, निरुत्साही एवं निराशाजनक हो जाता है। जहाँ-जहाँ कोई छोटा-बड़ा प्रयत्न होता है वहाँ-वहाँ उसके मूल में आत्मश्रद्धा ही स्थित होती है और अंतःकरण में जब तक आत्मश्रद्धा स्थित होती है तब तक प्रयत्नों का प्रवाह अखंड रूप से बहता रहता है

    Saturday, April 10, 2010

    जो तुम्हारे दिल को चेतना देकर धड़कन दिलाता है, तुम्हारी आँखों को निहारने की शक्ति देता है, तुम्हारे कानों को सुनने की सत्ता देता है, तुम्हारी नासिका को सूँघने की सत्ता देता है और मन को संकल्प-विकल्प करने की स्फुरणा देता है उसे भरपूर स्नेह करो। तुम्हारी 'मैं....मैं...' जहाँ से स्फुरित होकर आ रही है उस उदगम स्थान को नहीं भी जानते हो फिर भी उसे धन्यवाद देते हुए स्नेह करो।
    जिस समय अपने दोष का दर्षन हो जाय,समझ लो,तुम जैसा विचारशील कोई नहीं।और जिस समय पर-दोष-दर्षन हो,उस समय समझ लो कि हमारे जैसा बेसमझ कोई नहीं।बे-समझ की सबसे बड़ी पहिचान है कि जो पराये दोष का पण्डित हो।और भैया,विचारशील की कसौटी है,कि जो अपने दोष का ज्ञाता हो।
    Guruvar teri charano ki pag dhul jo mil jaye


    such kehta hu tumse takdir badal jaye

    Sunate hai tari rehmat din rat barasati hai

    ek bund jo mil jaye jivan hi bada jaye ...Guruvar..teri..................

    Najaro se girana na chahe jitni saja denaaaaaaa

    najaro se jo gir jaye muskil hi samhal payeyyyyyyyy.....Guruvar teri........
    जिस समय अपने दोष का दर्षन हो जाय,समझ लो,तुम जैसा विचारशील कोई नहीं।और जिस समय पर-दोष-दर्षन हो,उस समय समझ लो कि हमारे जैसा बेसमझ कोई नहीं।बे-समझ की सबसे बड़ी पहिचान है कि जो पराये दोष का पण्डित हो।और भैया,विचारशील की कसौटी है,कि जो अपने दोष का ज्ञाता हो।

    Friday, April 9, 2010

    बालक जबतक जीता है, चाहे बड़ा हो जाये, माँ रक्षा करती ही है इश्वररुपी माँ मरनेवाली नहीं है, इसलिए हमें चिन्ता नहीं करनी चाहिए


    हर स्थिति में हर जगहप्रभु की सहज कृपा पर विश्वाश करने वाले भक्त को प्रत्येक परिस्थिति में उनकी अनुकम्पा का अनुभव होता हैं. स्थितिया बदलती रहते हैं परन्तु उसे अटल विश्वास रहता हैं की प्रभु सदेव उसका कल्याण ही करते हैं , इसलिए वहा सर्वदा प्रमुदित रहता हैं.

    भगवान् से कह दो-"हे प्रेमास्पद! भोग और मोक्ष की भूख मिटा दो, प्रियता की भूख जगा दो,अपने निर्मित जीवन को अपने लिये उपयोगी बना लो"। वे व्यथित हॄदय की पुकार शीघ्र सुनते हैं,यह निर्विवाद सत्य है। यद्दपि वे स्वत: सब कुछ जानते हैं,फिर भी व्यथित हृदय से पुकारती रहो।जैसे रखें वैसे रहो,पर अनेक रुपों में उन्हीं को देखते हुए अनेक प्रकार से उन्हीं को लाड़ लड़ओ।वे सदैव तुम्हारे और तुम उनकी हो।

    Wednesday, April 7, 2010

    भगवान् को प्राप्त करने का सबसे बढ़कर सरल उपाय है भगवान् के ऊपर निर्भर हो जाना,उनको सब कुछ समर्पण कर देना,अपने आप को भी भगवान् को समर्पण कर देना
    मन्द-मन्द वर्षा हो रही है।प्रत्येक बूँद उनकी अहैतुकी कृपा का पाठ पढ़ा-पढ़ाकर कृतकृत्य कर रही है।न जाने उन्हें अपने शरणागतों की हर चीज इतनी प्यारी क्यों लगती है! इतना ही नहीं,अपने दिये हुए को पाकर ही क्यों बिक जाते हैं!और पतित-से-पतित प्राणियों को भी अपनाने के लिये क्यों आकुल हैं! न जाने साधक प्रमादवश क्यों नहीं उन्हें अप...ना मानता?  पर वे तो सर्वदा सभी के सब कुछ होने के लिये तत्पर हैं।

    Tuesday, April 6, 2010

    जब गुरु करुणा करेंगे केवल तभी सांसारिक जीवन सुखी होगा;जो कार्य कभी भी होने संभव नहीं थे,वह सहज ही पूर्ण हो जायेंगे और क्षण भर में वे तुम्हे भव सागर के उस पार ले जायेंगे
    प्रश्न-संसारका सुख लेना कैसे मिटे?.....आप अपना पूरा बल लगायें।फिर भी न मिटे तो ’हे नाथ! हे नाथ!’ कहकर भगवान् को पुकारें।एक तो सांसारिक सुखासक्ति को मिटानेकी चाहना नहीं है और एक हम उसको मिटाते नहीं हैं ये दो बाधाएँ है।ये दोनों बाधाएँ हट जायँ,फिर भी सुखासक्ति न मिटे तो उस समय आप स्वत: परमात्मा को पुका...र उठोगे। सज्जनों उस प्रभुके आगे रो पड़ो तो सब काम हो जायेगा।
    नाम से मुझे बहुत लाभ हुआ। कई बार मुझे गिरने से बचाया, लोभ से बचाया। अनुभव तो क्या बतायें। जप करके अनुभव कर लें। नाम से सब कामनाओं की सिद्धि हो सकती है। भगवन्नाम और कृपा -- ये दो चीज जैसी परमार्थ में सहायक होती हैं और मेरे हुई हैं वैसी दूसरी नहीं। नाम सब कुछ करने में समर्थ है।
    दूसरेके द्वारा तुम्हारा कभी कोई अनिष्ट हो जाय तो उसके लिए दुःख न करो; उससे अपने किये हुआ बुरे कर्मका फल समझो, यह विचार कभी मनमें मत आने दो कि " अमुकने मेरा अनिष्ट कर दिया है," यह निश्चय समझो कि ईश्वरके दरबारमें अन्याय नहीं होता... वह पूर्वक्रुक्त कर्मोका फल है.
    अपना ज्ञान स्वभाव नित्य अवतरित होता रहेता है.. परिस्थितियाँ बदल जाती परमात्म सत्ता ज्यों की त्यों रहेती है.. अपना ज्ञान स्वभाव नित्य अवतरित होता रहेता सभी परिस्थितियों में… उस से ही परिस्थितियों का पता चलता है.. परिस्थितियाँ बदल जाती लेकिन परमात्मा ज्यों का त्यों रहेता है..
    अब समझो की इस मनुष्य देह से विशेष सम्बन्ध नहीं …जैसे और देह छुट गया ऐसे ये भी छुट जाएगा…जहां जाना है वहाँ पहुँचने के लिए जैसे बस से जाते तो पहुँचने पर बस छोड़ देते ऐसे इस शरीर को छोड़ देंगे..ऐसे शरीर सबंध को छोड़ देंगे…इन को साथ नहीं रख सकते…आप तो असल में चैत्यन्य है लेकिन जुड़ते संबंधो से…मनुष्य देह में आये.. ये सदा साथ नहीं रहेता… ऐसे शरीर के संबंधो को सदा साथ में नहीं रख सकते.. जो सदा साथ है, उस को कभी छोड़ नही सकते, तो जिस को छोड़ नहीं सकते उस को ‘मैं ’ मानने में क्या आपत्ति है? उस को अपना ‘मैं ’ मानो… जिस को नहीं रख सकते उस की आसक्ति छोड़ दीजिये…
    शरीर के तो करोडो करोडो बार जन्म हुए, मृत्यु हुयी… केवल ये ना-समझी है की , ‘मैं ’ दुखी हूँ.. ‘मैं ’ बच्चा हूँ.. ‘मैं ’ फलानी जाती का हूँ.. ये सभी व्यवहार की रमणा है..अपना व्यवहार चलाने के लिए बाहर से चले लेकिन अन्दर से जाने की “सोऽहं.. सोऽहं” मैं वो ही हूँ!..सत -चित-आनंद स्वरुप!….जो पहेले था, बाद में भी रहेगा वो ही मैं अब भी हूँ…

    Monday, April 5, 2010

    बुराई को बुराई से नहीं बल्कि अच्छाई द्वारा, हिंसा को अंहिसा द्वारा और घृणा को प्रेम से खत्म किया जा सकता है।’अपने शत्रुओं से प्यार करो, ईश्वर में विश्वास करो, भविष्य की चिंता मत करो और दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करो जैसे कि तुम उनसे अपेक्षा रखते हो।
    जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है,


    जिस समय समाज में खिंचाव, तनाव व विषयों के भोग का आकर्षण जीव को अपनी महिमा से गिराते हैं, उस समय प्रेमाभक्ति का दान करने वाले तथा जीवन में कदम कदम पर आनंद बिखेरने वाले महापुरूष का अवतार होता है।
    दूसरो को हस्साना ,उन्हें ख़ुशी देना यह एक कठोर तपस्या है, जिसकी यह तपस्या सफल हो जाती है ,मालिक उस पर अपनी कृपा की वर्षा करता है.

    Sunday, April 4, 2010

    संसार में हर वस्तु का मूल्य चुकाना होता हे ! बिना ताप किये कष्ट सहे आप अधिकार, पद, प्रतिष्ठा, सत्ता, सम्पति, शक्ति प्राप्त नहीं कर सकते, अत: आपको तपस्वी होना चाहिए आलसी, आराम पसंद नहीं! जीवन के समस्त सुख आपके कठोर पर्रिश्रम के नीचे दबे पड़े हैं, इसे हमेशा याद रखिए!
    NDप्रेम एक अनुभूति है

    शाश्वत रिश्तों के मर्म की

    सुर्ख जोड़े में लिपटे गर्व की

    विरक्ति से उपजे दर्द की

    प्रेम अनुभूति है।



    प्रेम एक रिश्ता है

    दिलों के इकरार का

    ममत्व के दुलार का

    मानवता की पुकार का

    प्रेम एक रिश्ता है।



    प्रेम दिखता है

    किसी मासूम-सी मुस्कान में

    नवविवाहिता की माँग में

    वीरों की आन-बान में

    प्रेम दिखता है।



    प्रेम की अनुगूँज है

    दिल के झंकृ‍त तारों में

    बागों में बहारों में

    फागुन की मस्त फुहारों में

    प्रेम की अनुगूँज है।

    Friday, April 2, 2010

    हे नाथ! वे दिन कब आयेंगे जब हमारे प्राण आपके चरणों में बस जायेंगे!! हे नाथ! ऐसा कब होगा जब हम आपके हाथों निर्मोल(बिना किसी चाह के) बिक जायेंगे!! हे नाथ!! ऐसा कब होगा जब हम आपकी याद में पूरा जीवन एक क्षण की भाँति बिता देंगे!! हे प्रभु! ऐसा एक क्षण के लिये भी तो नहीं हो पाता!!
    निर्भर भक्ति में कुछ नहीं करना पड़ता।बस,केवल निर्भरता को अपने जीवन में उतारना पड़ता है।इस भक्ति में हमारे सामने आदर्श है शिशु।छोटा बच्चा माँ की मार से बचने के लिये भी माँ की ही गोद में घुसता है।जो इस प्रकार निर्भर है भगवान् पर,वही वास्तविक निर्भर है।
    अहंकार तथा अपने स्वार्थ का त्याग करके दूसरेका हित कैसे हो?दूसरे का कल्याण कैसे हो?दूसरे को सुख कैसे मिले? अपने तनसे,मनसे,वचनसे,बुद्धिसे,पदसे किसी तरह ही दूसरों को सुख कैसे हो? ऐसा भाव रहेगा तो आप ऐसे निर्मल हो जायँगे कि आपके दर्शनों में भी दूसरे लोग निर्मल हो जायँगे।
    जैसे कूड़े-कचरे के स्थान पर बैठोगे तो लोग और कूड़ा-कचरा आपके ऊपर डालेंगे । फूलों के ढेर के पास बैठोगे तो सुगन्ध पाओगे । ऐसे ही देहाध्यास, अहंकार के कूड़े कचरे पर बैठोगे तो मान-अपमान, निन्दा स्तुति, सुख-दुःख आदि द्वन्द्व आप पर प्रभाव डालते रहेंगे और भगवच्चिन्तन, भगवत्स्मरण, ब्रह्मभाव के विचारों में रहोगे तो शांति, अनुपम लाभ और दिव्य आनन्द पाओगे ।

    Thursday, April 1, 2010

    कितने ही कर्म करो, कितनी ही उपासनाएँ करो, कितने ही व्रत और अनुष्ठान करो, कितना ही धन इकट्ठा कर लो और् कितना ही दुनिया का राज्य भोग लो लेकिन जब तक सदगुरु के दिल का राज्य तुम्हारे दिल तक नहीं पहुँचता, सदगुरुओं के दिल के खजाने तुम्हारे दिल तक नही उँडेले जाते, जब तक तुम्हारा दिल सदगुरुओं के दिल को झेलने के काबिल नहीं बनता,


     तब तक सब कर्म, उपासनाएँ, पूजाएँ अधुरी रह जाती हैं। देवी-देवताओं की पूजा के बाद भी कोई पूजा शेष रह जाती है किंतु सदगुरु की पूजा के बाद कोई पूजा नहीं बचती।
    मेरे ऐसे दिन कब आयेगे कि देह होते हुए भी मै स्वयं को अपने देह से अनुभव करूँगा ?... एकांत मै बैठा-बैठा मै अपने मन-बुद्धि को पृथक देखते-देखते अपनी आत्मा मे तृप्त होऊगा ?... मे आत्मानंद मे मस्त रहकर संसार के व्यवहार मे निश्चिंत रहूगा ? ... सत्रु और मित्र के व्यवहार को मे खेल सम्जुंगा ?"


    अगर मन इन्द्रियों के साथ चलेगा तो समझो परमात्मा रूठे है मन को ऊपर उठाना है तो सत्संग किया, उंचा उठेगा..मन बुध्दी के अनुसार चलेगा..अगर बुध्दी ज्ञान स्वरुप है तो सही निर्णय देगी…जिस के प्रिय भगवान नहीं, जिस के लिए भगवत प्राप्ति मुख्य नही, उस का संग ऐसे ठुकराओ जैसे करोडो वैरी सामने बैठे है यद्यपि वो परम स्नेही हो..

     अनित्यानि शरीराणि बैभवो नैव शाश्वतः।

    नित्यं संन्निहितो मृत्युः कर्त्तव्यो धर्मसंग्रहः।।

    हम जब जन्मे थे उस समय हमारी जो आयु थी वह आज नहीं है। हम जब यहाँ आये तब जो आयु थी वह अभी नहीं है और अभी जो है वह घर जाते तक उतनी ही नहीं रहेगी।शरीर अनित्य है, वैभव शाश्वत नहीं है। शरीर हर रोज मृत्यु के नजदीक जा रहा है। अतः धर्म का संग्रह कर लेना चाहिए।
    बीता हुआ समय लौटकर नहीं आता । जीवन का एक एक क्षण आत्मोपलब्धि, भगवत्प्राप्ति, मुक्ति के साधनों में लगाओ । हमें जो इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि प्राप्त है, जो सुविधा, अनुकूलता प्राप्त है उसका उपयोग वासना-विलास का परित्याग कर भगवान से प्रेम करने में करो । एक क्षण का भी इसमें प्रमाद मत करो । पूरे मन से, सम्पूर्ण बुद्धि से भगवान से जुड़ जाओ । इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि भगवा


     इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि भगवान में ही लग जाय । एकमात्र भगवान ही रह जायें, अन्य सब गुम हो जाय

     जीवन में आप जो कुछ करते हो उसका प्रभाव आपके अंतःकरण पर पड़ता है। कोई भी कर्म करते समय उसके प्रभाव को, अपने जीवन पर होने वाले उसके परिणाम को सूक्ष्मता से निहारना चाहिए । ऐसी सावधानी से हम अपने मन की कुचाल को नियंत्रित कर सकेंगे, इन्द्रियों के स्वछन्द आवेगों को निरुद्ध कर सकेंगे, बुद्धि को सत्यस्वरूप आत्मा-परमात्मा में प्रतिष्ठित कर सकेंगे ।


     पूरे मन से, सम्पूर्ण बुद्धि से भगवान से जुड़ जाओ । इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि भगवान में ही लग जाय । एकमात्र भगवान ही रह जायें, अन्य सब गुम हो जाय । ऐसा कर सको तो जीवन सार्थक है । ऐसा नहीं होगा तो मानव जीवन केवल व्यर्थ ही नहीं गया अपित अनर्थ हो गया । अतः जब तक श्वास चल रहा है, शरीर स्वस्थ है तब तक सुगमता से इस साधन में लग जाओ ।
    कितने ही कर्म करो, कितनी ही उपासनाएँ करो, कितने ही व्रत और अनुष्ठान करो, कितना ही धन इकट्ठा कर लो और् कितना ही दुनिया का राज्य भोग लो लेकिन जब तक सदगुरु के दिल का राज्य तुम्हारे दिल तक नहीं पहुँचता, सदगुरुओं के दिल के खजाने तुम्हारे दिल तक नही उँडेले जाते, जब तक तुम्हारा दिल सदगुरुओं के दिल को झेलने के काबिल नहीं बनता,


    तब तक सब कर्म, उपासनाएँ, पूजाएँ अधुरी रह जाती हैं। देवी-देवताओं की पूजा के बाद भी कोई पूजा शेष रह जाती है किंतु सदगुरु की पूजा के बाद कोई पूजा नहीं बचती।
    Puri jindgi laga ke jo kamate hai voh sath nahi jata par Gurudaware jo aap kamate ho voh sadev sath raheta hai , Guru dware pe aap jiwan ki anmol kamai karte hao


    voh pa lo use mat gavao , sab lutake bhi yah kama sakte ho to kuch nahi lutaya , par sab kuch kamake bhi agar asli khajana gava diya to samjo sab kuch varth me gava diya

    bas khajana to khula pada hai jitna lut sakate ho lut lo jitna kama sakate ho kama lo jiwan ki sham hone se pahele apne asli khajane ko pa lo aap sada hai , chetan rup hai giyan rup hai , apne sat sawabhav se hi aapko sukh milta hai bas ushi sukh ko pahechan lo
    दिल में आत्म-साक्षात्कार की योग्यता होने के बाद भी यदि विषय, विकार, काम, क्रोध आदि से आसक्ति नहीं मिटी ।


    सागर से नदियाँ भली, जो सबकी प्यास बुझाए।।

    ब्रह्मलोक तक जाओ और पुण्यों का क्षय होने पर वापस आओ इससे उचित होगा कि मनुष्य जन्म में ही आत्मज्ञान प्राप्त कर लो ताकि पुनः जन्म-मरण के चक्कर में फँसना ही न पड़े।
    मेरा मकान ठीक हो जाए….मेरी नोकरी ठीक हो जाए…मेरा कर्जा ठीक हो जाए..मेरा दूकान ठीक हो जाए..मेरा बेटा ठीक हो जाए…ये ठीक हो जाए,वो ठीक हो जायेवालो ये भी समझ लो की …जो कभी बे-ठीक नहीं होता उस आत्मा में टिकना, उस को आत्म-स्वरुप मानना…तो सब कुछ अपने आप ही ठीक हो जाता है…
    भगवान् हमें गोद में लेने के लिये तैयार खड़े हैं,केवल हमें थोड़ा-सा ऊँचा हाथ करना है अथार्त् भगवान् के सम्मुख होना है।हमें भगवान् की कृपा की तरफ देखना है और ’हे मेरे नाथ! हे मेरे नाथ!!’ कहकर भगवान् को पुकारना है।पुकारनेमात्र से भगवान कल्याण कर देते हैं।
    अपने को सत्यवादी मान लेने पर ही सत्य बोलने की प्रवृति होती है और सत्य बोलने की प्रवृति से "मैं सत्यवादी हूँ"-इस भाव की दृढ़ता हो जाती है।
    विश्वास करो,तुमपर भगवान् की बड़ी कृपा है;तभी तो तुम्हें मनुष्य का देह मिला है।यह और भी विशेष कृपा समझो जो तुम्हें भजन करने की बुद्धि प्राप्त हुई और भजन के लिये सुअवसर मिला।इस सुअवसर को हाथ से मत जाने दो,नहीं तो पछ्तावोगे।
    Karni hai khuda se ek guzarish ke Teri Dosti ke siva koi bandgi na mile.. Har janam mein mile dost tere jaisa Ya phir kabhi zindgi na mile
    Takdir ne khel se nirash nahi hote zindgi me kabhi udas nahi hote hatho ki lakiro pe yakin mat kr takdir to unki b hoti h jinke hath nahi hote
    जीवन में आप जो कुछ करते हो उसका प्रभाव आपके अंतःकरण पर पड़ता है। कोई भी कर्म करते समय उसके प्रभाव को, अपने जीवन पर होने वाले उसके परिणाम को सूक्ष्मता से निहारना चाहिए । ऐसी सावधानी से हम अपने मन की कुचाल को नियंत्रित कर सकेंगे, इन्द्रियों के स्वछन्द आवेगों को निरुद्ध कर सकेंगे, बुद्धि को सत्यस्वरूप आत्मा-परमात्मा में प्रतिष्ठित कर सकेंगे
    kitene hi logo ko sukh dukh aata hai par voh aapko farak nahi padata kyoki aap usme jude huwe nahi ho , jab aap judte ho aur use apna manate ho to voh bat aapko sukh aur dukh deti hai par jab tak aap unse nirlep aur nirvikar ho tab voh bat aapko sukh aur dukh nahi deti , karta banana hi dukh ka karna hai aur darshta banana hi sukh ka karan hai bas darshta bane raho aur param ananad aur param sukh ke marg ki aur chal pado jiwan jine ki chah bad jayegi param aanad panae ki rah mil jayegi
    कहाँ है वह तलवार जो मुझे मार सके ? कहाँ है वह शस्त्र जो मुझे घायल कर सके ? कहाँ है वह विपत्ति जो मेरी प्रसन्नता को बिगाड़ सके ? कहाँ है वह दुख जो मेरे सुख में विघ्न ड़ाल सके ? मेरे सब भय भाग गये

    सब संशय कट गये
    मेरा विजय-प्राप्ति का दिन आ पहुँचा है
    कोई संसारिक तरंग मेरे निश्छल चित्त को आंदोलित नहीं कर सकती
    एक भाई ने मुझसे कहा कि आप मुझे परम आस्तिक क्यों कहते हैं? मैं तो परम आस्तिक नहीं हूँ।मैंने कहा-मैं इसीलिये कहता हूँ कि आप आस्तिक हो जायेंगे।यह कोई कल्पना नहीं है,यह वास्तविकता है।जिसको आप जैसा समझेंगे,जैसा सोचेंगे,जैसा मानेंगे,वैसा वह हो जायेगा।हम किसी को बुरा न समझें।तब किसी के बुरे होने में हमारा हाथ नहीं रहेगा।

    Ashram SMS

    Jaise sadhana me age badhoge to kabhi vyarth ki ninda hogi us se bhaybhit na hue to bemap prashansha milegi usme bhi ab uljhe to parmatma Sakshaktar ho jayega -

    dil

    bas dil ko to mandir banana hai aur usme murat sajani hai apne pratam ki voh pritam jo kabhi juda nahi hota , kabhi nahi bichadta , kabhi hamse alag nahi hota , bhichadta hai yah sansar , bhichadti hai yah sansari vastue jo kabhi hamari nahi thi par galti se ham apni samaj bethate hai , jinke liye mare mare firte hai , rat din rote rahate hai voh sab to bichad jayega par jo kabhi nahi bhichdega , kabhi hamese juda nahi hoga use kab ham prit karenge , kab dil me mandir me use sajayenge
    प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी के शरणापन्न रहता है। अन्तर केवल इतना है कि आस्तिक एक के और नास्तिक अनेक के। आस्तिक आवश्यक्ता की पूर्ति करता है और नास्तिक इच्छाओं की। आवश्यक्ता एक और इच्छाएँ अनेक होती है। आवश्यक्ता की पूर्ति होने पर पुनः उत्पत्ति नहीं होती। इच्छाकर्ता तो बेचारा प्रवृत्ति द्वारा केवल शक्तिहीनता ही प्राप्त करता है

    Wednesday, March 31, 2010

    अपने को सत्यवादी मान लेने पर ही सत्य बोलने की प्रवृति होती है और सत्य बोलने की प्रवृति से "मैं सत्यवादी हूँ"-इस भाव की दृढ़ता हो जाती है।

    Monday, March 22, 2010

    गुरू के सान्निध्य से जो मिलता है वह दूसरा कभी दे नहीं सकता।


    हमारे जीवन से गुरू का सान्निध्य जब चला जाता है तो वह जगह मरने के लिए दुनिया की कोई भी हस्ती सक्षम नहीं होती। गुरू नजदीक होते हैं तब भी गुरू गुरू ही होते हैं और गुरू का शरीर दूर होता है तब भी गुरू दूर नहीं होते।

    गुरू प्रेम करते हैं, डाँटते हैं, प्रसाद देते हैं, तब भी गुरू ही होते हैं और गुरू रोष भरी नजरों से देखते हैं, ताड़ते हैं तब भी गुरू ही होते हैं।
    Jagat ka sab aiswarwrya bhogne ka mil jaye parantu apne Atma-Parmatma ka gyan nahi mila to ant me is jivatma ka sarvasva chhin jata hai atah savdhan!

    Saturday, March 20, 2010

    भगवान बोलते मैं दिव्यता से जन्म लेता हूँ… जो मनुष्य मुझे कर्म दिव्य, जन्म दिव्य ऐसा जानेगा वो मेरा भक्त है…तो जिस के जन्म कर्म दिव्य है ऐसे परमात्मा की मैं संतान हूँ ऐसा खुद को जानेगा उस का जन्म कर्म दिव्य हो जाएगा..
    सारांश यह है की गुरु कृपा के भाग्यशाली क्षण से सांसारिक जीवन को पार करने की पहेली हल हो जाती है ; मोक्ष प्राप्ति का द्वार स्वतः ही खुल जाता है और सभी दुःख और कष्ट सुख में बदल जाते हैं. जब सद्द गुरु का नित्य स्मरण किया जाता है तो विघन के कारन आने वाली रुकावटें अनायास ही नष्ट हो जातीं हैं ; मृत्यु स्वयं मर जाती है और सांसारिक दुखों का विस्मरण हो जाता है
    Keval sat chit anand parmatma ke sukh ko parmatma ke anand ko apne swabhav me prakat kar do. Bhagwan anand swabhav hain, sat swabhav hain, chetan swabhav hain

    Wednesday, March 17, 2010

    kam aisa kijiye jinse ho sab ka bhala, bat aise kijiye jismai ho amrut bhara, aise boli bol sabko pram se pukariye, kadve bol bolkar na jindgi begadiye, haste - gate huve jindgi gujariye, aache karm karte huve dukh bhi agar pa rahe, himmat na har pyare bapu tere sath hai hriday ki kitab pe ye bat likh lejiye, ban ki sacche bhakt banki sacche amal kijiye, jag mai jagmagati huive rosni jagmagana hai, muskilo musibatto ka karna hai khatma, faried karki aapna hal na begadeye, jase prabhu rakhe vase jindgi gujariye, himmat na har, himmat na har, bapu tere sath hai pyare himmat na har.

    Tuesday, March 16, 2010

    जब-जब हम कर्म करें तो कर्म को अकर्म में बदल दें अर्थात् कर्म का फल ईश्वर को अर्पित कर दें अथवा कर्म में से कर्तापन हटा दें तो कर्म करते हुए भी हो गया अकर्म। कर्म तो किये लेकिन उनका बंधन नहीं रहा।




    संसारी आदमी कर्म को बंधनकारक बना देता है, साधक कर्म को अकर्म बनाने का यत्न करता है लेकिन सिद्ध पुरुष का प्रत्येक कर्म स्वाभाविक रूप से अकर्म ही होता है। रामजी युद्ध जैसा घोर कर्म करते हैं लेकिन अपनी ओर से युद्ध नहीं करते, रावण आमंत्रित करता है तब करते हैं। अतः उनका युद्ध जैसा घोर कर्म भी अकर्म ही है। आप भी कर्म करें तो अकर्ता होकर करें, न कि कर्ता होकर। कर्ता भाव से किया गया कर्म बंधन में डाल देता है एवं उसका फल भोगना ही पड़ता है।

    नव वर्ष-२०१०,विक्रम संवत्सर-२०६७

    सु:ख समृद्धि से भरपूर


    हर घर आंगन हो !

    जीवन में नित नूतन खुशियां आएँ ,

    हर दिन ,हर पल मन भावन हो !...

    फैले यश कीर्ति दिग्दगान्त,...

    तन मन धन अति पावन हो !

    बढे प्रेम श्रद्धा सिमरन नित ,

    हरि कृपा का बरसता सावन हो !

    नव वर्ष की आप सबको ,

    हार्दिक मंगल कामनाएं !



     नव वर्ष-२०१०,विक्रम संवत्सर-२०६७ ,चेटीचंड महोत्सव की शुभकामनाये
    motwaninaresh (12/17/09 1:02 PM): Pawan Tanay Bal Pawan Samana , Budi Vivek Vigiyan Nidhana Kounsa Kaj Kathin Jab Mahi Jo nahi hoi tat tum pahi





    motwaninaresh (12/17/09 1:02 PM): सतगुरु सृष्टि के पालनहारे , सब विधि बिगडे काज सँवारे घट अनहद नाद सुनाएँ , घट में ईश्वर प्रगटायें गुरू कृपा से संशय मिटायें , घट में ईश्वर प्रगटायें ॥ ब्रह्मज्ञान का दीप जलाया , कलिकलुष अन्धकार मिटाया सब ज्योतिर्मय चमकायें , घट में ईश्वर प्रगटायें गुरू कृपा से संशय मिटायें , घट में ईश्वर प्रगटायें



    motwaninaresh (12/17/09 1:02 PM): हम धनवान होगे या नहीं, चुनाव जीतेंगे या नहीं इसमें शंका हो सकती है परंतु भैया ! हम मरेंगे या नहीं, इसमें कोई शंका है? विमान उड़ने का समय निश्चित होता है, बस चलने का समय निश्चित होता है, गाड़ी छूटने का समय निश्चित होता है परंतु इस जीवन की गाड़ी छूटने का कोई निश्चित समय है?



    motwaninaresh (12/17/09 1:02 PM): Your house is not here. Your house is the house of Parmatmaa's eternal abode. Over here is the school of Dharma (righteousness) . Our "self" is imperishable, then how long will we sit depending on the perishable? Humanity is in only two things - 1) Serving Others 2) Rememberance of God. Let these two points come in our nature once and for all.

    Monday, March 15, 2010

    mara prabhu mane sachi disha batacjo ,sachu margdharshan dejo , he sukh sawarup , shaniti shawarup maray haiya ma sukh rupe , shanti rupe saday vasjso , he karuna nidan , he krishna kaniya , bansi bajaiya , madur lala , mara vahaluda mara riday ma saday nivas karjo , mari kadji lejo , mane eklo , atulo kadapi na mukjo mara nath , hu tamari sharane , tara vina na koi maro nath , bas taro j ek sath mane mara pritam , mara dev , mara hridaya na nath Om narayan narayan narayan


    naresh motwani: he shanti data , giyan devta ,mara ishtadevta , kay cho tame , mara dil ma cho kem chupaya cho aji sudhi , mane man mandir na dharshan karavo mara nath , mane potana ma dubado mara nath

    guruji mare nav ne tu tarje sukh ma ke dukh ma tu sambharje aasro adhar taro ek che mare tute nav ne tu tarje tara vena jag ma nathi maru biju mara man ne tara ma tu varje barak bane ne khore tara rahva ne hu aavyo chu gurudev mare nav ne tu tarje

    Atlu madi jay to sukhi thavu , aa kurshi suchi phohich javu to sukhi tavu , kya suthi aa badhu karta rahishu nath , kaya sudhi sansar na janam maran na chakro ma padta rahishu , kya suthi ame sansari vato ma atvata rahishu , bas have to evo di dekhad ke tara ma dubhi jayai , bas kya sudhi duniyavi maja pachad ame dodta rahishu , kem ishavariyi maja... See more ma man nathi dubtu , cigarete , pana , masala and kahava piva ma maja shodhiye chiye kem diyan ma maja nathi avati, kem simran and satsang ma maja nathi aavati bas he gurudev , he nath ave to asli maja dekhadi to duniyavi mana bhuli jayeaye

    Pram bharelu haiyu lai ne tare dware aaveyo chu jo tu mujne tarchode to duneya ma mare javu kya? na janu hu pooj tari na janu bhakti ne rit, gandi ghale vane ma hu gato guruji tara geet chacker banine charne tara rahva ne hu aaveyo chu jo tu mujne tarchode to duneya ma mare javu kya?

    he mara nath , me mara valuda , janmo thi batki rahaya chiye , taro abhar che mara nath te amne manushaya jo jiwan apyo , have bas aa janam ma aame tane medvi laveye , tara ma dubhi ne tara charano me priti karine tane pami laviye , bas mara prabhu dar rose tane yaad kariye , sansar na sambhado ne kya sudhi sachivishu , bas tara sathe sambhand pako thai jaye to sansar na sambado to dodta pachad aavshe , savare uthu to tari yad aave , divas bar tane yad karta nikade and ratre suvu to bas tara khoda ma suvu , eve daya kara mara prabhu mara nath bas tara sivay kashu yad na rahe mari ankho bas tara didar kare , mari sans bas tara mate chale , mari hriday ma bas tari yad rahe , maru sharir bas tari seva ma ja jaye , jaldi mara nath mane evo di dekhad mara vahaluda

    hath jod mangu sada tumse yahe vardan ek palak bisre nahi sadguru tera dhyan

    mai balak tera prabhu janu yogna dhyan guru krupa milte rahe dedo ye vardan
    mara prabhu mane sachi disha batacjo ,sachu margdharshan dejo , he sukh sawarup , shaniti shawarup maray haiya ma sukh rupe , shanti rupe saday vasjso , he karuna nidan , he krishna kaniya , bansi bajaiya , madur lala , mara vahaluda mara riday ma saday nivas karjo , mari kadji lejo , mane eklo , atulo kadapi na mukjo mara nath , hu tamari sharane , tara vina na koi maro nath , bas taro j ek sath mane mara pritam , mara dev , mara hridaya na nath Om narayan narayan narayan


    naresh motwani: he shanti data , giyan devta ,mara ishtadevta , kay cho tame , mara dil ma cho kem chupaya cho aji sudhi , mane man mandir na dharshan karavo mara nath , mane potana ma dubado mara nath

    Sunday, March 14, 2010

    राग करना है तो वैराग्य में ही राग करो , संसार का राग फँसाता है संसार की प्रीती आदमी को फँसाती है …भक्तिनिस्थ हो जाओ


    ॐ हरी ॐ ॐ ॐ ….

    ओमम्म्म्म…
    राग करना है तो वैराग्य में ही राग करो , संसार का राग फँसाता है संसार की प्रीती आदमी को फँसाती है …भक्तिनिस्थ हो जाओ


    ॐ हरी ॐ ॐ ॐ ….

    ओमम्म्म्म…
    जिसने अनुराग का दान दिया , उससे कण मांग लजाता नहीं


    अपना पन भूल समाधी लगा ये पिहू का विहाग सुहाता नहीं
    सो संगति जल जाये जिसमे कथा नहीं राम की


    बिन खेती के बाड़ किस काम की …
    लोभी धन के लिए रोता है , मोह़ी परिवार के लिए रोता है आँशु बहाता है , अहंकारी कुर्सी पद प्रतिष्ठा के लिए रोता है , लेकिन तेरा प्यारा भक्त तुझे पुकारते हुए मीरा की नाई विरह के आँशु बहाता है , धन्य हो जाता है ..पत्थर दिल तू संसार के लिए तो रोता पिघलता है , लेकिन प्रभु के लिए क्यों नहीं पिघलता

    Saturday, March 13, 2010

    इन प्राणी, पदार्थ, परिस्थितियों की आस्था, आशा, आकांक्षा छोड़कर प्रभु की ओर देखो। फिर सारी प्रभु-इच्छित अनुकूलता अपने-आप ही आकर तुम्हारे चरण चूमेगी। Removing your belief on these people, objects and situations - look towards God. Then all that God desires will come and kiss your feet by themselves.




    हर वक्त इस बात पर प्रसन्न और आनन्द में रहे कि भगवान् आपसे मिलना चाहते है। Always be happy and in bliss because of the fact that God wants to meet you.
    अगर तुम दुसरों के लिये बोलते हो, दुसरों के लिये सुनते हो, दुसरों के लिये सोचते हो, दूसरों के लिये काम करते हो, तो तुम्हारी भौतिक उन्नति होती चली जायगी। कोई बाधा नहीं डाल सकता। अगर तुम केवल अपने लिये सोचते हो तो दरिद्रता कभी नहीं जायगी

     If you speak for others, if you hear for others, if you think for others, if you work for others, then your material progress will take place constantly. No one can put any obstacle in it. But if you think only for yourself, your impoverishment (poverty) can never be removed

    Wednesday, January 27, 2010

    फकीरी मौत ही असली जीवन है। फकीरी मौत अर्थात् अपने अहं की मृत्यु। अपने जीवभाव की मृत्यु। 'मैं देह हूँ.... मैं जीव हूँ....' इस परिच्छिन्न भाव की मृत्यु।
    विघ्न, बाधाएँ, दुःख, संघर्ष, विरोध आते हैं वे तुम्हारी भीतर की शक्ति जगाने कि लिए आते है। जिस पेड़ ने आँधी-तूफान नहीं सहे उस पेड़ की जड़ें जमीन के भीतर मजबूत नहीं होंगी। जिस पेड़ ने जितने अधिक आँधी तूफान सहे और खड़ा रहा है उतनी ही उसकी नींव मजबूत है। ऐसे ही दुःख, अपमान, विरोध आयें तो ईश्वर का सहारा लेकर अपने ज्ञान की नींव मजबूत करते जाना चाहिए। दुःख, विघ्न, बाध
    तुम्हारे पास जो है वह दूसरों तक पहुँचाने में स्वतन्त्र हो। तुम दूसरे का ले लेने में स्वतंत्र नहीं हो लेकिन दूसरों को अपना बाँट देने में स्वतंत्र हो। मजे की बात यह है कि जो अपना बाँटता है वह दूसरों का बहुत सारा ले सकता है। जो अपना नहीं देता और दूसरों का लेना चाहता है उसको ज्यादा चिन्ता रहती है।
    हे मानव ! तू सनातन है, मेरा अंश है। जैसे मैं नित्य हूँ वैसे ही तू भी नित्य है। जैसे मैं शाश्वत हूँ वैसे ही तू भी शाश्वत है। परन्तु भैया ! भूल सिर्फ इतनी हो रही है कि नश्वर शरीर को तू मान बैठा है। नश्वर वस्तुओं को तू अपनी मान बैठा है। लेकिन तेरे शाश्वत स्वरूप और मेरे शाश्वत सम्बन्ध की ओर तेरी दृष्टि नहीं है इस कारण तू दुःखी होता है।
    करने की, मानने की और जानने की शक्ति को अगर रूचि के अनुसार लगाते हैं तो करने का अंत नहीं होगा, मानने का अंत नहीं होगा, जानने का अंत नहीं होगा। इन तीनों योग्यताओं को आप अगर यथायोग्य जगह पर लगा देंगे तो आपका जीवन सफल हो जायगा।

    Thursday, January 21, 2010

    मन, वचन और कर्म से अयोग्य क्रिया न करना, देश-काल के अनुसार योग्यता से, सरलता से विचारपूर्वक बर्तना-इस आचरण को शास्त्र में 'शीलव्रत' कहा गया है। उन्नति का मार्ग शील ही है। शीलवान ही आत्मबोध प्राप्त करके मुक्त हो सकता है। शीलरहित को कड़ा, कुण्डल आदि गहने ऊपर की शोभा भले ही देते हों, परन्तु सज्जन का तो शील ही भूषण है।

    Saturday, January 16, 2010

    Paras aru sant main ,bada antaru jaan, yah loha kanchan kare, woh kare aap samaan'




    Paras stone can convert the metal Iron into Gold but cannot make it Paras itself, but a saintly person or the Sadguru can mould his shishya into a knowledgeable person just like the Sadguru himself.

    Thursday, January 14, 2010

    हम जब जब दुःखी होते हैं, जब-जब अशांत होते हैं, जब-जब भयभीत होते हैं तब निश्चित समझ लो कि हमारे द्वारा ईश्वरीय विधान का उल्लंघन हुआ है। जब-जब हम प्रसन्न होते हैं, निर्भीक होते हैं, खुश होते हैं, निश्चिन्त होते हैं तब समझ लो कि अनजाने में भी हमने ईश्वरीय विधान का पालन किया है।

    Tuesday, January 12, 2010

    दो वस्तुएँ हैं। एक प्रतीति और दूसरी प्राप्ति। प्राप्ति परमात्मा की होती है और प्रतीति माया की।




    प्रतीति के बिना प्राप्ति टिक सकती है लेकिन प्राप्ति के बिना प्रतीति हो ही नहीं सकती। चैतन्य के बिन शरीर चल नहीं सकता, किन्तु शरीर के बिना चैतन्य रह सकता है। ये जो वस्तुएँ दिख रही हैं, वे चैतन्य के बिना रह नहीं सकतीं, लेकिन वस्तुओं के बिना चैतन्य रह सकता है।

    Tuesday, January 5, 2010

    विश्रान्ति तुम्हारी आवश्यकता है। अपने आपको जानना तुम्हारी आवश्यकता है। जगत की सेवा करना तुम्हारी आवश्यकता है क्योंकि जगत से शरीर बना है तो जगत के लिए करोगे तो तुम्हारी आवश्यकता अपने आप पूरी हो जायगी।




    ईश्वर को आवश्यकता है तुम्हारे प्यार की, जगत को आवश्यकता है तुम्हारी सेवा की और तुम्हें आवश्यकता है अपने आपको जानने की।
    नानक ! दुखिया सब संसार....तुम्हें यदि सदा के लिए परम सुखी होना है तो तमाम सुख-दुःख के साक्षी बनो। तुम अमर आत्मा हो, आनन्दस्वरूप हो.... ऐसा चिन्तन करो। तुम शरीर नहीं हो। सुख-दुःख मन को होता है। राग-द्वेष बुद्धि को होता है। भूख-प्यास प्राणों को लगती है। प्रारब्धवश जिन्दगी में कोई दुःख आये तो ऐसा समझो कि मेरे कर्म कट रहे हैं.... मैं शुद्ध हो रहा हूँ।
    ऐसे ही दुःख, अपमान, विरोध आयें तो ईश्वर का सहारा लेकर अपने ज्ञान की नींव मजबूत करते जाना चाहिए। दुःख, विघ्न, बाधाएँ इसलिए आती हैं कि तुम्हारे ज्ञान की जड़ें गहरी जायें। लेकिन हम लोग डर जाते है। ज्ञान के मूल को उखाड़ देते हैं।
    विघ्न, बाधाएँ, दुःख, संघर्ष, विरोध आते हैं वे तुम्हारी भीतर की शक्ति जगाने कि लिए आते है। जिस पेड़ ने आँधी-तूफान नहीं सहे उस पेड़ की जड़ें जमीन के भीतर मजबूत नहीं होंगी। जिस पेड़ ने जितने अधिक आँधी तूफान सहे और खड़ा रहा है उतनी ही उसकी नींव मजबूत है।
    जिंदगी की इस धारा में


    किस किसकी नाव पार लगाओगे।

    समंदर से गहरी है इसकी धारा

    लहरे इतनी ऊंची कि

    आकाश का भी तोड़ दे तारा

    अपनी सोच को इस किनारे से

    उस किनारे तक ले जाते हुए

    स्वयं ही ख्यालों में डूब जाओगे।

    दूसरे को मझधार से तभी तो निकाल सकते हो

    जब पहले अपनी नाव संभाल पाओगे।
    तुम्हारे पास जो है वह दूसरों तक पहुँचाने में स्वतन्त्र हो। तुम दूसरे का ले लेने में स्वतंत्र नहीं हो लेकिन दूसरों को अपना बाँट देने में स्वतंत्र हो। मजे की बात यह है कि जो अपना बाँटता है वह दूसरों का बहुत सारा ले सकता है। जो अपना नहीं देता और दूसरों का लेना चाहता है उसको ज्यादा चिन्ता रहती है।

    Saturday, January 2, 2010

    New Year Prathna

    Happy new Year Prathna

    हे मेरे अंतर्यामी ! अब मेरी ओर जरा कृपादृष्टि करो । बरसती हुई आपकी अमृतवर्षा में मैं भी पूरा भीग जाऊँ मेरा मन मयूर अब एक आत्मदेव के सिवाय किसीके प्रति टहुँकार न करे

    हे प्रभु ! हमें विकारों से, मोह ममता से, अपने आपमें जगाओ । हे मेरे मालिक ! अब कब तक मैं भटकता रहूँगा ? मेरी सारी उमरिया बिती जा ...रही है कुछ तो रहमत करो कि अब आपके चरणों का अनुरागी होकर मैं आत्मानन्द के महासागर में गोता लगाऊँ