Sunday, December 27, 2009

इस संसार रूपी अरण्य में कदम-कदम पर काँटे बिखरे पड़े हैं। अपने पावन दृष्टिकोण से तू उन काँटो और केंकड़ों से आकीर्ण मार्ग को अपना साधन बना लेना। विघ्न मुसीबत आये तब तू वैराग्य जगा लेना। सुख व अनुकूलता में अपना सेवाभाव बढ़ा लेना। बीच-बीच में अपने आत्म-स्वरूप में गोता लगाते रहना, आत्म-विश्रान्ति पाते रहना।
हे वत्स ! हे साधक ! अब मैं तुझे संसार रूपी अरण्य में अकेला छोड़ दूँ फिर भी मुझे फिकर नहीं। क्योंकि अब मुझे तुझ पर विश्वास है कि तू विघ्न-बाधाओं को चीरकर आगे बढ़ जायेगा। संसार के तमाम आकर्षणों को तू अपने पैरों तले कुचल डालेगा। विघ्न और विरोध तेरी सुषुप्त शक्ति को जगायेंगे। बाधाएँ तेरे भीतर कायरता को नहीं अपितु आत्मबल को जन्म देगी।
‘हे प्रभु ! हे दया के सागर ! तेरे द्वार पर आये हैं । तेरे पास कोई कमी नहीं । तू हमें बल दे, तू हमें हिम्मत दे कि तेरे मार्ग पर कदम रखे हैं तो पँहुचकर ही रहें । हे मेरे प्रभु ! देह की ममता को तोड़कर तेरे साथ अपने दिल को जोड़ लें

Thursday, December 24, 2009

भूलो सभी को मगर, माँ-बाप को भूलना नहीं।


उपकार अगणित हैं उनके, इस बात को भूलना नहीं।।

पत्थर पूजे कई तुम्हारे, जन्म के खातिर अरे।

पत्थर बन माँ-बाप का, दिल कभी कुचलना नहीं।।

मुख का निवाला दे अरे, जिनने तुम्हें बड़ा किया।... See More

अमृत पिलाया तुमको जहर, उनको उगलना नहीं।।

कितने लड़ाए लाड़ सब, अरमान भी पूरे किये।

पूरे करो अरमान उनके, बात यह भूलना नहीं।।

लाखों कमाते हो भले, माँ-बाप से ज्यादा नहीं।

सेवा बिना सब राख है, मद में कभी फूलना नहीं।।

सन्तान से सेवा चाहो, सन्तान बन सेवा करो।

जैसी करनी वैसी भरनी, न्याय यह भूलना नहीं।।

सोकर स्वयं गीले में, सुलाया तुम्हें सूखी जगह।

माँ की अमीमय आँखों को, भूलकर कभी भिगोना नहीं।।

जिसने बिछाये फूल थे, हर दम तुम्हारी राहों में।

उस राहबर के राह के, कंटक कभी बनना नहीं।।

धन तो मिल जायेगा मगर, माँ-बाप क्या मिल पायेंगे?

पल पल पावन उन चरण की, चाह कभी भूलना नहीं।

Wednesday, December 23, 2009

सदा स्मरण रहे कि इधर-उधर भटकती वृत्तियों के साथ तुम्हारी शक्ति भी बिखरती रहती है। अतः वृत्तियों को बहकाओ नहीं। तमाम वृत्तियों को एकत्रित करके साधना-काल में आत्मचिन्तन में लगाओ और व्यवहार-काल में जो कार्य करते हो उसमें लगाओ। दत्तचित्त होकर हर कोई कार्य करो। सदा शान्त वृत्ति धारण करने का अभ्यास करो।
मैं नहीं मेरा नहीं यह तन किसी का है दिया


जो भी अपने पास है वह धन किसी का है दिया



देने वाले ने दिया वह भी दिया किस शान से

मेरा है यह लेने वाला कह उठा अभिमान से

मेरा है यह कहने वाला मन किसी का है दिया

मैं नहीं मेरा नहीं यह तन किसी का है दिया ...



जो मिला है वह हमेशा पास रह सकता नहीं

कब बिछुड़ जाये यह कोई राज़ कह सकता नहीं

ज़िन्दगानी का खिला मधुबन किसी का है दिया

मैं नहीं मेरा नहीं यह तन किसी का है दिया ...



जग की सेवा, खोज अपनी, प्रीति प्रभु से कीजिये

ज़िन्दगी का राज़ है यह जान कर जी लीजिये

साधना की राह पर साधन किसी का है दिया (२)

मैं नहीं मेरा नहीं यह तन किसी का है दिया

जो भी अपने पास है वह धन किसी का है दिया



मैं नहीं मेरा नहीं यह तन किसी का है दिया
आया जहाँ से सैर करने, हे मुसाफिर ! तू यहाँ। था सैर करके लौट जाना, युक्त तुझको फिर वहाँ। तू सैर करना भूलकर, निज घर बनाकर टिक गया। कर याद अपने देश की, परदेश में क्यों रुक गया।। फँसकर अविद्या जाल में, आनन्द अपना खो दिया। नहाकर जगत मल सिन्धु में, रंग रूप सुन्दर धो दिया। निःशोक है तू सर्वदा, क्यों मोह वश पागल भया। तज दे मुसाफिर ! नींद, जग, अब भी न तेरा कुछ गया।।
मेरा अपना अबतक का अनुभव है कि जो हम चाहते हैं, वह न हो, इसीमें हमारा हित है. हमने तो जबतक अपने मन की मानी है, अपने मन की बात की है तो सिवाय पतन के, सिवाय अवनति के हमें तो कुछ परिणाम में मिला नहीं ..........मैं आपके सामने अपनी अनुभूति निवेदन कर रहा हूँ , और इससे लाभ उठाना चाहते हैं तो अपनी चाही मत करो .प्रभु की चाही होने दो . प्रभु वही चाहते हैं जो अपने-आप हो रहा है
जो बिना सीखे हो, वही सच्चा ’ज्ञान’ है अर्थात् स्वभावत: आ जाय । जो बिना हेतु के हो, वही सच्चा ’प्रेम’ है । और जो बिना किये हो, वही सच्चा ’त्याग’ है, क्योंकि सच्चा त्याग करना नहीं पड़ता, हो जाता है
हम अपने लिये यह करेंगे, इससे हमें कुछ मिलेगा, हमें जगत से कुछ मिलेगा, हमें प्रभु से कुछ मिलेगा । तो जबतक ये बातें जीवन में रहेती हैं, तबतक विश्राम नहीं मिलता
विश्राम के लिये यह महामन्त्र अपनाना अनिवार्य है कि अपने लिये कभी कुछ नहीं करना है और न आज तक किया हुआ अपने काम आया है । कर्म का परिणाम जो कुछ होता है, उसकी पहुँच शरीर तक ही रहती है
मन, वाणी, कर्म से अगर हम बुराई रहित हो जायँ तो यह सारे 'विश्व की सेवा' कहलाती है । ज्ञान और सामर्थ्य के अनुसार दूसरों के काम आ जायँ तो यह 'समाज सेवा' कहलाती है । यदि अचाह हो जायँ तो यह 'अपनी सेवा' कहलाती है । यदि हुम प्रभु की प्रियता प्राप्त कर ले तो यह 'प्रभु की सेवा' कहलाती है -
ध्यान किसी का नहीं करना है । किसी का ध्यान नहीं करोगे तो परमात्मा का ध्यान हो जायगा । और किसी का ध्यान करोगे, तो फिर किसी और का ही ध्यानमात्र रह जायगा ।
समस्त विश्व मिलकर भी साधक की वास्तविक मांग को पूरा नहीं कर सकता । इस दृष्टि से साधक का मूल्य सृष्टि से अधिक है
विवेक के प्रकाश को ही जब किसी भाषा-विशेष या लिपि-विशेष में आबद्ध कर देते है, तो वह ’ग्रन्थ’ कहलाता है और जब उस विवेक के प्रकाश को किसी जीव में देखते हैं, तो उसे ’संत’ कहने लगते है
जीवन क्या है ? जीवन शब्द का अर्थ है, जो अविनाशी हो, नष्ट न हो सकता हो, सदैव हो, वही जीवन है । जो चीज अपने में होती है, उसके लिए पराश्रय अपेक्षित नहीं होता है । अत: जीवन के लिए पराश्रय और परिश्रम अपेक्षित नहीं है । निर्मम और निष्काम होकर मनुष्य अपने में सन्तुष्ट हो जाय, तो उसे जीवन मिल जाता है
दु:ख क्यों होता है ? मनुष्य जब सुख का उपभोग करता है तो उसको दु:ख होता है । सुख का उपभोग करना छोड़ दो, दु:ख होगा ही नहीं ।

 Why do we get sorrowful/grief ? it is only when man takes enjoyment in pleasures that he gets sorrowful. If we leave taking the enjoyment of pleasures - sorrow can never come.
प्रेम एक से ही सम्भव है, अनेक से नहीं । प्रेमी को तो एक में अनेक और अनेक में एक का स्वाभाविक, बिना यत्न किये, अनुभव होता है ।

 Love is possible with only One, not with many. The lover experiences the One in many and many in the One, naturally, without any effort
मैं उनका हूँ और वे मेरे हैं - इस भाव के दृढ़ होने पर उनकी याद अपने आप आती है और उनके बिना किसी प्रकार चैन नहीं पड़ती । वह मेरे है, इस भाव का दृढ़ होने पर उनका ध्यान अपने आप होता है ।

 'I am His and He is mine' - as soon as this acceptance is firm, His remembrance will come naturally and you will not be a peace without Him.... 'He is mine', with this acceptance being firm His concentration happens by itself.
संसार असत् नहीं है । वह मेरे प्यारे प्रभु का स्वरूप है तो असत् कैसे हो सकता है ? उससे जो संबन्ध माना है, वह संबन्ध असत् है । वह संबन्ध रहेगा नहीं । The world is not Unreal. It is the form of my Beloved Lord - how can it be Unreal. The relation (me and mine) that we have made with it, that is Unreal. That relation will never remain.
सुख और दुःख बीज और वृक्ष के समान है । सुख रूप बीज से दुःख रूप वृक्ष हरा भरा होता है
मेरे नाथ !


आप अपनी सुधामयी,

सर्व समर्थ,

पतित पावनी,

अहैतु की कृपा से

मानवमात्र को विवेक का आदर

तथा बल का सदुपयोग करने की सामर्थ्य प्रदान करें

एवं

हे करुणासागर !

अपनी अपार करुणा से शीघ्र ही

राग द्वेष का नाश करें


सभी का जीवन सेवा, त्याग, प्रेम से परिपूर्ण हो जाए
जागो.... उठो.... अपने भीतर सोये हुए निश्चयबल को जगाओ। सर्वदेश, सर्वकाल में सर्वोत्तम आत्मबल को अर्जित करो। आत्मा में अथाह सामर्थ्य है। अपने को दीन-हीन मान बैठे तो विश्व में ऐसी कोई सत्ता नहीं जो तुम्हें ऊपर उठा सके। अपने आत्मस्वरूप में प्रतिष्ठित हो गये तो त्रिलोकी में ऐसी कोई हस्ती नहीं जो तुम्हें दबा सके।

Friday, December 4, 2009

तुम कब तक बाहर के सहारे लेते रहोगे ? एक ही समर्थ का सहारा ले लो। वह परम समर्थ परमात्मा है। उससे प्रीति करने लग जाओ। उस पर तुम अपने जीवन की बागडोर छोड़ दो। तुम निश्चिन्त हो जाओगे तो तुम्हारे द्वारा अदभुत काम होने लगेंगे

Wednesday, November 25, 2009

rag

जब जब दुःख, मुसीबत, चिन्ता, भय घेर लें तब सावधान रहें और जान लें कि ये सब राग के ही परिवारजन हैं। उन चीजों में राग होने के कारण मुसीबत आयी है। राग तुम्हें कमजोर बना देता है। कमजोर आदमी को ही मुसीबत आती है। बलवान आदमी के पास मुसीबत आती है तो बलवान पर उसका प्रभाव नहीं पड़ता। अगर प्रभाव पड़ गया तो वह मुसीबत की अपेक्षा कमजोर है।तुम कब तक बाहर के सहारे लेते रहोगे ?

Monday, November 23, 2009

Till the time one does not realize the omnipresence of God, one does not get over the feelings of attachment & separation, one does not see others same as himself, one’s faith & level of spiritualism will keep fluctuating. When the faith of devotees like Prahlad can shake, then O Spiritual Aspirant! You save yourself from the circumstances, the people, and the negative turmoils of mind which make you slip on the road to spiritualism & God.

Sunday, November 22, 2009

jiwan jine ki kala

विघ्न, बाधाएँ, दुःख, संघर्ष, विरोध आते हैं वे तुम्हारी भीतर की शक्ति जगाने कि लिए आते है। जिस पेड़ ने आँधी-तूफान नहीं सहे उस पेड़ की जड़ें जमीन के भीतर मजबूत नहीं होंगी। जिस पेड़ ने जितने अधिक आँधी तूफान सहे और खड़ा रहा है उतनी ही उसकी नींव मजबूत है।

ME AND MINE

Only one point has to be understood by you, that I am not this body. You say "this watch is mine", but you do not say "I am the watch". But when it comes to this body, you say - "this body is mine", but you also say "I am this body". "I am this body", this is the "abhed bhaav" (absence of any distintion, unbreakable, impenetrable, unshakable, undivided identity). And when you say - "this body is mine" is a "bhed baah" (distinction, discrimination) . You should say one or the other, whether you call it undivided entity or distinct entity. But to call the same body as "me" as well as "mine" is a mistake

HAPINESS

do not spoil any work because of stupidity and carelessness work with full concentration and diligence it is unrighteous to be lazy and have an escapist attitude procrastination and negegence is a social menace believe in work is workship and work with enthusiasm and sincerity for the benefit ...........happiness of all.

Thursday, November 19, 2009

TIME

if we waste our time in trivial things we get trivial returns if we put our time doing something useful it result in useful outcome and if we devote our time insacred and pious effort we get scared returns this way if we channelize our time and energy towards god we can even realize him one day !

god

Only God is mine. No one else is mine. "Nashto moha smriti labdhvaa" - I now recollect! It is not that you have become something new. You were already that, you had simply forgotten. It is only "sweekriti" (acceptance) . After this all spiritual disciplines happen naturally. When it happens naturally and automatically then no mistakes can occur. Even in your sleep you will be alert.

Wednesday, November 18, 2009

person

the sun may appear very stale to a tired frustrated and pessimistic person but an optimistic enthusiastic and cheerful person finde the sun afresh every day make each moment of ur full of renewed enthusaiasm and happiness!

sukh

ishwar ki pratyek leela me sukh shanti anand ka samavesh hai tum apni nazar ishwar ki nazar se milakar to dekho tumhe ye anubav hoga ke tum bhi sukhswaroop ho.

AIM

he whose aim is unchangable, firm and fixed like the devotee Dhruv, he can attain perfection very quickly without facing many obstacles. In his path no difficulties and impediments arise, and even those that do come, they also aid in the spiritual growth.

Tuesday, November 17, 2009

Aim

he whose aim is unchangable, firm and fixed like the devotee Dhruv, he can attain perfection very quickly without facing many obstacles. In his path no difficulties and impediments arise, and even those that do come, they also aid in the spiritual growth.

Monday, November 16, 2009

Jagat

आज तक आपने जगत में जो कुछ जाना है, जो कुछ प्राप्त किया है.... आज के बाद जो जानोगे और प्राप्त करोगे, प्यारे भैया ! वह सब मृत्यु के एक ही झटके में छूट जायेगा, जाना अनजाना हो जायेगा, प्राप्ति अप्राप्ति में बदल जायेगी।
अतः सावधान हो जाओ। अन्तर्मुख होकर अपने अविचल आत्मा को, निजस्वरूप के अगाध आनन्द को, शाश्वत शांति को प्राप्त कर लो। फिर तो आप ही अविनाशी आत्मा हो।

Sunday, November 15, 2009

Sacha Guru

SACHA GURU SHANTI KA GANBHIR SAGAR HOTA HAI , PAP KA SANHARAK HOTA HAI , jisne Guru ki seava ki hai use yam bhi dand nahi de sakata ! Guru ki barabari koi bhi nahi kar sakata

Friday, November 13, 2009

उनती

आद्यात्मिक उन्नति के बिना भौतिक उन्नति और नैतिक उन्नति वास्तव मैं सम्भव ही नहीं,दिखावा हो सकता है

Thursday, November 12, 2009

मन

man has to discover for himself that what he thinks as being himself, what he calls 'myself' is an illusion a "MAYA" which is but a cloak of many colours like those that appear on a bubble in the sunlight

Wednesday, November 11, 2009

TKT फॉर FINAL DESTINATION

at birth, we take a ticket to the destination - death. Whether we think of it or do not think of it, it will come. However uncertain all other things are, death is certain. As the sun sets on the western hill, it has devoured a portion of our life. Thus our days decrease, life tapers off, drop by drop the cup is emptied - but man takes no notice of all this.

न कोई संगी साथी ऐसा, जो जीवन में साथ चले,
इन मेलों में रहकर, मजबूर हम अकेले चले

Tuesday, November 10, 2009

life

life is too short to wake up in the morning with regrets. so love the people who treat u right and forget about the ones who don't and believe that everything happens for a reason.. if u get a chance---take it, if it changes ur life---let it, no body said that it would be easy.. they just promised it would be worth it.

jiwan

दुनिया की सब चीजें कितनी भी मिल जायें............ . किंतु एक दिन तो छोड़कर जाना ही पड़ेगा।............ .... आज मृत्यु को याद किया तो फिर छूटने वाली चीजों में आसक्ति नहीं होगी, ............ ......... . ममता नहीं होती और जो कभी छूटने वाला नहीं है, उस अछूट के प्रति, उस शाश्वत के प्रति प्रीति हो जायेगी, तुम अपना शुद्ध-बुद्ध, सच्चिदानंद, परब्रह्म परमात्म-स्वरूप पा लोगे। जहाँ इंद्र का वैभव भी नन्हा लगता है, ऐसे आत्मवैभव को सदा के लिए पा लोगे।

परमेश्वर

प्रेम पूर्वक उस पूर्ण परमेश्वर का जप दियांन करते जावो , उसका गियान सुनकर उसमे तलीन होते जावो और सची समज विक्सित करके अपने परमात्मा प्राप्ति के उदेश्य की और आगे बढ़ते जावो ॐ आनंन्द ॐ माधुर्य ॐ शान्ति ..........परम पूज्य संत श्री आशाराम बापू

Monday, November 9, 2009

god

we turn to god for help when our foundations are shaking, only to learn that it is god who is shaking themrantixjuhi: there is no need for temples, no need for complicated philosophy, our own brain, our own heart is our temple, the philosophy is kindness.

भज ले राम

Respect is to be given, not to be taken. Give to all, don't take. The only thing to take is God's name. Worship (Bhajan), meditation (dhyaan), chanting the Divine Name (kirtan) is for giving and taking

Sunday, November 8, 2009

संसार के भोग

ऐसा कोई भोग नहीं है जो भोक्ता को शांति दे सके; ऐसा कोई बाहर का सुख नहीं है, जो सुख लेने वाले को परेशानी ना दे; यह बात बुद्धि में जब तक समझ में नहीं आती, तब तक सुख-स्वरूप आत्मा में आदमी अंतर्मुख नहीं होता;

Friday, November 6, 2009

गुरुदेव

गुरुदेव
किसान चाहे कितनी भी खेती करे , खाद डाले , बिज बोए पानी देवे , परन्तु सूर्य का प्रकाश नही मिलता तब तक सब व्यर्थ है । इसी प्रकार मनुष्य चाहे कितना भी जप तप करे , यम् नियमो का पालन करे परन्तु जब तक सचे सतगुरु रूपी सूर्य का आत्मप्रकाश नही मिलता तब तक सब व्यर्थ हें साधक तू भी उसी आत्म प्रकाश में गोते लगा और साकार करले अपने मनुष्य तन को .हरी ॐ

bhuddhi

बुद्धि को शुद्ध करने के लिए आत्मविचार की जरुरत है, ध्यान की जरुरत है,जप की जरुरत है । बुद्धि शुद्ध हो तो जैसे दूसरे शरीर को अपनेसे पृथक्देखते हैं वैसे ही अपने शरीर को भी आप अपनेसे अलग देखेंगे । ऐसा अनुभव जबतक नहीं होता, तब तक बुद्धि में मोह होने की संभावना रहती है ।

तन

Tan kar man kar vachan kar, det na kahoo dukh 'Tulsi' paatak harat hai, dekhat unka mukh (says Goswamiji Tulsidasji Maharaj) By looking at (even) the face of Gurudev who does not impart sorrows to anyone by body, mind and speech, the sins (of on-lookers) are destroyed.

Wednesday, November 4, 2009

परमात्मा

In spite of the relationship between 'inert' (jad) and 'sentient' (chetan) being false, difficulty in renunciation arises because importance has been given to the relationship between inert-sentient. Therefore, today itself, by using discrimination (viveka) accept this truth with a truthful heart that we have no relationship whatsoever with 'inert' (body / world). Our relationship is with Paramatma (God).

Tuesday, November 3, 2009

PREM

Abhi duniya ko acharan me varaj ke saman shakti bhar dene vale Nishvarth Jalvant Prem Ki avashakataya hai ! sankuchita chodo ! vishal avam nishavarth bano ! phir log aapke kadamo par chalkar unnat honge .........( expand the horizons of your love ) .............Param Pujya shri Asharam ji Bapu

Friday, October 30, 2009

man

मनः एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयोः । मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कराण है । शुभ संकल्प और पवित्र कार्य करने से मन शुद्ध होता है, निर्मल होता है तथा मोक्ष मार्ग पर ले जाता है । यही मन अशुभ संकल्प और पापपूर्ण आचरण से अशुद्ध हो जाता है तथा जडता लाकर संसार के बन्धन में बांधता है । रामायण में ठीक ही कहा है :निर्मल मन जन सो मोहि पावा ।मोही कपट छल छिद्र न भावा

Tuesday, October 27, 2009

अनित्य शरीर

अनित्य शरीर
शरीर अनित्य है , वैभव नश्वर है , मुर्त्यु सदा नजदीक आ रही है ! अन्तः लाला ललिया देविया धर्म और पुण्य का संग्रह कराने में लग जावो आत्मा गियान बढाते जावो ...........पूज्य गुरुदेव

GURUDEV

I BOW TO GURU'S HOLY FEET WHICH ARE THE DISPELLER OF IGNORANCE

GURUDEV KRIPA KE SAGAR HAI MANUSHAY KE RUP ME BHAGAWAN HAI ! MAYA-MOH KE GHOR ANDHAKAR KO NASH KARANE KE LIYE JINKE VACHAN SURYA KE KIRANO KE SAMUH KE SAMAN HAI , UN GURUDEV KE CHARAN KAMLO ME VANDAN KARATA HU .......WE BOW TO GURU'S HOLY FEET WHICH ARE THE DISPELLER OF IGNORANCE .........GURU BIN BHAV NIDHI TARAI NA KOI! JO BIRNCHI SANKAR SAM HOI

Saturday, October 24, 2009

ब्रमवेता महापुरुष

ब्रमवेता महापुरुष
बारह कोष चलकर जाने से भी यदि सत्पुरुष के दर्शन मिलते है तो में पेदल चलाकर जाने के लिए तेयार हु कयोकी इसे ब्रह्म्वेता महापुरुष के दर्शन से कैसा अध्यात्मिक लाभ मिलता है वह में अच्छी तरह जनता हु ...........स्वामी विवेकानंद .

जगत की सेवा

Udar ho kar jagat ki seva kare , vikaro se swadhin hokar mukti ka anubhav kare ! shudh prem ke vikas se prabhu bhakti ka purn anbhubhav kare .. .........Pujya Gurudev
naresh motwani: Udar ho kar jagat ki seva kare , vikaro se swadhin hokar mukti ka anubhav kare ! shudh prem ke vikas se prabhu bhakti ka purn anbhubhav kare .. .........Pujya Gurudev

कबीरा

कबीरा कुत्ता राम का, मोतिया मेरा नाम l
गले राम की जेवरी, जित खीचें उत जाऊंll त्यों त्यों करे तो बाहुरों, दूर दूर करे तो जाऊँ l
ज्यों हरि राखे सो रहूँ, जो देवे सो खाऊं ll

Friday, October 23, 2009

आशीर्वाद

Sabkaa Mangal Sabkaa bhalaa ho, Guru chahnaa aisi hai |

|| Isee liye to Aaye dhara par Sadguru Asaramji hain

कदम

LAKSHYA NAA OUJAL HONE PAYE
KADAM BADAKAR KAR CHAL
SAFLTA TAIRE KADAM CHUMEGI
AAJ NAHI THO KAAL

दिले दिलबर

यह कौन सा उकदा जो हो नहीं सकता।
तेरा जी न चाहे तो हो नहीं सकता
छोटा सा कीड़ा पत्थर में घर करे।
इन्सान क्या अपने दिले-दिलबर में घर न करे

आशीर्वाद

दुनिया की सब चीजें कितनी भी मिल जायें, किंतु एक दिन तो छोड़कर जाना ही पड़ेगा।

आज मृत्यु को याद किया तो फिर छूटने वाली चीजों में आसक्ति नहीं होगी, ममता नहीं होती और जो कभी छूटने वाला नहीं है,


उस अछूट के प्रति, उस शाश्वत के प्रति प्रीति हो जायेगी,

तुम अपना शुद्ध-बुद्ध, सच्चिदानंद, परब्रह्म परमात्म-स्वरूप पा लोगे।

जहाँ इंद्र का वैभव भी नन्हा लगता है, ऐसे आत्मवैभव को सदा के लिए पा लोगे।

Thursday, October 22, 2009

प्रेम

यह मोहब्बत की बातें है उद्धव, बंदगी अपने बस की नही है।
यहाँ सिर देकर होते हैं सौदे, आशिकी इतनी सस्ती नहीं है।।
प्रेमवालों ने कब किससे पूछा ? किसको पूजूँ बता मेरे उद्धव।
यहाँ दम-दम पर होते हैं सिजदे, सिर घुमाने की फुरसत नहीं है।।

Wednesday, October 21, 2009

दरिद्रता मिटाने के उपाय

ग़रीबी - दरिद्रता मिटाने के लिए
सोमवती अमावस्या के दिन 108 बार अगर तुलसी की परिक्रमा करते हो, ओंकार का थोड़ा जप करते हो, सूर्य नारायण को अर्घ्य देते हो; यह सब साथ में करो तो अच्छा है, नहीं तो खाली तुलसी को 108 बार प्रदक्षिणा करने से तुम्हारे घर से दरिद्रता भाग जाएगी l
अगली सोमवती अमावस्या 16th Nov'09 को है

अमृत सुधा

Sansar se priti karna Ghode ki punch pakadate ke barabar hai ! yah priti ghashitkar girayegi ! Parmatma se priti karana Ghode ki lagam pakadane ke barabar hai ! Yah Priti mukti ki manjil tak avashay phuhuchayegi ..........Pujaya Gurudev