Wednesday, January 27, 2010
विघ्न, बाधाएँ, दुःख, संघर्ष, विरोध आते हैं वे तुम्हारी भीतर की शक्ति जगाने कि लिए आते है। जिस पेड़ ने आँधी-तूफान नहीं सहे उस पेड़ की जड़ें जमीन के भीतर मजबूत नहीं होंगी। जिस पेड़ ने जितने अधिक आँधी तूफान सहे और खड़ा रहा है उतनी ही उसकी नींव मजबूत है। ऐसे ही दुःख, अपमान, विरोध आयें तो ईश्वर का सहारा लेकर अपने ज्ञान की नींव मजबूत करते जाना चाहिए। दुःख, विघ्न, बाध
हे मानव ! तू सनातन है, मेरा अंश है। जैसे मैं नित्य हूँ वैसे ही तू भी नित्य है। जैसे मैं शाश्वत हूँ वैसे ही तू भी शाश्वत है। परन्तु भैया ! भूल सिर्फ इतनी हो रही है कि नश्वर शरीर को तू मान बैठा है। नश्वर वस्तुओं को तू अपनी मान बैठा है। लेकिन तेरे शाश्वत स्वरूप और मेरे शाश्वत सम्बन्ध की ओर तेरी दृष्टि नहीं है इस कारण तू दुःखी होता है।
Thursday, January 21, 2010
मन, वचन और कर्म से अयोग्य क्रिया न करना, देश-काल के अनुसार योग्यता से, सरलता से विचारपूर्वक बर्तना-इस आचरण को शास्त्र में 'शीलव्रत' कहा गया है। उन्नति का मार्ग शील ही है। शीलवान ही आत्मबोध प्राप्त करके मुक्त हो सकता है। शीलरहित को कड़ा, कुण्डल आदि गहने ऊपर की शोभा भले ही देते हों, परन्तु सज्जन का तो शील ही भूषण है।
Saturday, January 16, 2010
Thursday, January 14, 2010
Tuesday, January 12, 2010
दो वस्तुएँ हैं। एक प्रतीति और दूसरी प्राप्ति। प्राप्ति परमात्मा की होती है और प्रतीति माया की।
प्रतीति के बिना प्राप्ति टिक सकती है लेकिन प्राप्ति के बिना प्रतीति हो ही नहीं सकती। चैतन्य के बिन शरीर चल नहीं सकता, किन्तु शरीर के बिना चैतन्य रह सकता है। ये जो वस्तुएँ दिख रही हैं, वे चैतन्य के बिना रह नहीं सकतीं, लेकिन वस्तुओं के बिना चैतन्य रह सकता है।
प्रतीति के बिना प्राप्ति टिक सकती है लेकिन प्राप्ति के बिना प्रतीति हो ही नहीं सकती। चैतन्य के बिन शरीर चल नहीं सकता, किन्तु शरीर के बिना चैतन्य रह सकता है। ये जो वस्तुएँ दिख रही हैं, वे चैतन्य के बिना रह नहीं सकतीं, लेकिन वस्तुओं के बिना चैतन्य रह सकता है।
Tuesday, January 5, 2010
विश्रान्ति तुम्हारी आवश्यकता है। अपने आपको जानना तुम्हारी आवश्यकता है। जगत की सेवा करना तुम्हारी आवश्यकता है क्योंकि जगत से शरीर बना है तो जगत के लिए करोगे तो तुम्हारी आवश्यकता अपने आप पूरी हो जायगी।
ईश्वर को आवश्यकता है तुम्हारे प्यार की, जगत को आवश्यकता है तुम्हारी सेवा की और तुम्हें आवश्यकता है अपने आपको जानने की।
ईश्वर को आवश्यकता है तुम्हारे प्यार की, जगत को आवश्यकता है तुम्हारी सेवा की और तुम्हें आवश्यकता है अपने आपको जानने की।
नानक ! दुखिया सब संसार....तुम्हें यदि सदा के लिए परम सुखी होना है तो तमाम सुख-दुःख के साक्षी बनो। तुम अमर आत्मा हो, आनन्दस्वरूप हो.... ऐसा चिन्तन करो। तुम शरीर नहीं हो। सुख-दुःख मन को होता है। राग-द्वेष बुद्धि को होता है। भूख-प्यास प्राणों को लगती है। प्रारब्धवश जिन्दगी में कोई दुःख आये तो ऐसा समझो कि मेरे कर्म कट रहे हैं.... मैं शुद्ध हो रहा हूँ।
Saturday, January 2, 2010
New Year Prathna
Happy new Year Prathna
हे मेरे अंतर्यामी ! अब मेरी ओर जरा कृपादृष्टि करो । बरसती हुई आपकी अमृतवर्षा में मैं भी पूरा भीग जाऊँ मेरा मन मयूर अब एक आत्मदेव के सिवाय किसीके प्रति टहुँकार न करे
हे प्रभु ! हमें विकारों से, मोह ममता से, अपने आपमें जगाओ । हे मेरे मालिक ! अब कब तक मैं भटकता रहूँगा ? मेरी सारी उमरिया बिती जा ...रही है कुछ तो रहमत करो कि अब आपके चरणों का अनुरागी होकर मैं आत्मानन्द के महासागर में गोता लगाऊँ
हे मेरे अंतर्यामी ! अब मेरी ओर जरा कृपादृष्टि करो । बरसती हुई आपकी अमृतवर्षा में मैं भी पूरा भीग जाऊँ मेरा मन मयूर अब एक आत्मदेव के सिवाय किसीके प्रति टहुँकार न करे
हे प्रभु ! हमें विकारों से, मोह ममता से, अपने आपमें जगाओ । हे मेरे मालिक ! अब कब तक मैं भटकता रहूँगा ? मेरी सारी उमरिया बिती जा ...रही है कुछ तो रहमत करो कि अब आपके चरणों का अनुरागी होकर मैं आत्मानन्द के महासागर में गोता लगाऊँ
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