Tuesday, October 5, 2010
शरीर नाशवान है। संसार के पदार्थ भी मिथ्या ही हैं, केवल आत्मा ही सत्य एवं शाश्वत है। मनुष्य शरीर, जाति, धर्म आदि से अपनी एकता करके उनका अभिमान करने लगता है और उनके अनुसार स्वयं को कई बंधनों में बाँध लेता है। इससे उसका मन अशुद्ध रहता है। विचार, वाणी और व्यवहार में सच्चाई एवं पवित्रता रखने से मन पवित्र होता है।
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