Sunday, December 27, 2009

हे वत्स ! हे साधक ! अब मैं तुझे संसार रूपी अरण्य में अकेला छोड़ दूँ फिर भी मुझे फिकर नहीं। क्योंकि अब मुझे तुझ पर विश्वास है कि तू विघ्न-बाधाओं को चीरकर आगे बढ़ जायेगा। संसार के तमाम आकर्षणों को तू अपने पैरों तले कुचल डालेगा। विघ्न और विरोध तेरी सुषुप्त शक्ति को जगायेंगे। बाधाएँ तेरे भीतर कायरता को नहीं अपितु आत्मबल को जन्म देगी।

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