Sunday, December 27, 2009

इस संसार रूपी अरण्य में कदम-कदम पर काँटे बिखरे पड़े हैं। अपने पावन दृष्टिकोण से तू उन काँटो और केंकड़ों से आकीर्ण मार्ग को अपना साधन बना लेना। विघ्न मुसीबत आये तब तू वैराग्य जगा लेना। सुख व अनुकूलता में अपना सेवाभाव बढ़ा लेना। बीच-बीच में अपने आत्म-स्वरूप में गोता लगाते रहना, आत्म-विश्रान्ति पाते रहना।

No comments:

Post a Comment