Sunday, May 30, 2010


  • सर्वस्व जाय तो भी कभी किसी निमितसे कहीं किंचिन्मात्र भी पाप न करे,न करवावे और न उसमें सहमत ही हो


  • ममता की छांव में, हम आपने गाँव में बगिया में तोड़े वो आम बड़े कच्चे थे तब जब हम बच्चे थे...... चांदनी की रातों में, दादी के पहलू में सुनते थे किस्से जो, लगते वो सच्चे थे तब जब हम बच्चे थे........... गैया का दूध दुहे, नन्हे से हांथो से प्यारे बछडे उसके, तब लगते अच्छे थे तब जब हम बच्चे थे...........


  • आकार वो बैठ गयी, घर में बिन बात के बकबक काकी को तब, देते हम गच्चे थे तब जब हम बच्चे थे........... प्रातः उठकर बाबा, खेतों की ओर चलें चाहे कोई ऋतु हो, धुन के वो पक्के थे तब जब हम बच्चे थे.......... शहरों की चकाचौंध, मुझसे ना सही जाये बेहतर था गाँव, वहां हम इससे अच्छे थे तब जब हम बच्चे थे.........

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