Sunday, May 9, 2010
सच्ची जिज्ञासा रहनेसे उसमें एक व्याकुलता पैदा होती है कि ‘मैंने इतना जान लिया, पर मेरेमें कोई फर्क नहीं पड़ा, कोई विलक्षणता नहीं आयी ! राग-द्वेष, हर्ष-शोक वही होते हैं !’ ऐसी व्याकुलता होनेपर वह अहम् से सर्वथा विमुख हो जाता है । अहम् से सर्वथा विमुख होनेपर जिज्ञासु नहीं रहता, प्रत्युत शुद्ध जिज्ञासा रह जाती है और वह जिज्ञासा ज्ञान (बोध) में परिणत हो जाती है ।
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