Tuesday, May 18, 2010

रैन की बिछड़ी चाकवी, आन मिले प्रभात।सत्य का बिछड़ा मानखा, दिवस मिले न ही रात।।हे चिड़िया ! सन्ध्या हुई। तू मुझसे बिछड़ जायेगी, दूसरे घोंसले में चली जाएगी किन्तु प्रभात को तू फिर मुझे मिल जायेगी लेकिन मनुष्य जन्म पाकर भी उस सत्य स्वरूप परमात्मा के सत्य से बिछड़नेवाला मनुष्य पुनः सत्य से न सुबह मिलेगा, न शाम को, न रात में मिलेगा न दिन में।

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