सेवा वह उत्तम होती है,जिसमें सेवक का नामतक सेव्यको ज्ञात न हो सके।
सुख की लोलुपता कैसे छुटे?जानते हुए,कहते हुए,समझते हुए,पढ़ते हुए भी उसमें फँस जाते हैं!अत: उससे छुटनेके लिये बड़ा सीध सरल उपाय है कि दूसरे को सुख कैसे पहुँचे?यह भाव बना लें।घर में माँ-बाप को सुख कैसे हो?स्त्री को सुख कैसे हो?मेरे द्वारा क्या किया जाय,जिससे इनको सुख हो जाय?यह वृति अगर आपकी जोरदार हो जायेगी तो सुखभोग की रुचि मिट जायेगी।
Sunday, May 16, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment