Thursday, January 21, 2010

मन, वचन और कर्म से अयोग्य क्रिया न करना, देश-काल के अनुसार योग्यता से, सरलता से विचारपूर्वक बर्तना-इस आचरण को शास्त्र में 'शीलव्रत' कहा गया है। उन्नति का मार्ग शील ही है। शीलवान ही आत्मबोध प्राप्त करके मुक्त हो सकता है। शीलरहित को कड़ा, कुण्डल आदि गहने ऊपर की शोभा भले ही देते हों, परन्तु सज्जन का तो शील ही भूषण है।

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