Tuesday, January 5, 2010

नानक ! दुखिया सब संसार....तुम्हें यदि सदा के लिए परम सुखी होना है तो तमाम सुख-दुःख के साक्षी बनो। तुम अमर आत्मा हो, आनन्दस्वरूप हो.... ऐसा चिन्तन करो। तुम शरीर नहीं हो। सुख-दुःख मन को होता है। राग-द्वेष बुद्धि को होता है। भूख-प्यास प्राणों को लगती है। प्रारब्धवश जिन्दगी में कोई दुःख आये तो ऐसा समझो कि मेरे कर्म कट रहे हैं.... मैं शुद्ध हो रहा हूँ।

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