दो वस्तुएँ हैं। एक प्रतीति और दूसरी प्राप्ति। प्राप्ति परमात्मा की होती है और प्रतीति माया की।
प्रतीति के बिना प्राप्ति टिक सकती है लेकिन प्राप्ति के बिना प्रतीति हो ही नहीं सकती। चैतन्य के बिन शरीर चल नहीं सकता, किन्तु शरीर के बिना चैतन्य रह सकता है। ये जो वस्तुएँ दिख रही हैं, वे चैतन्य के बिना रह नहीं सकतीं, लेकिन वस्तुओं के बिना चैतन्य रह सकता है।
Tuesday, January 12, 2010
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