Wednesday, January 27, 2010

हे मानव ! तू सनातन है, मेरा अंश है। जैसे मैं नित्य हूँ वैसे ही तू भी नित्य है। जैसे मैं शाश्वत हूँ वैसे ही तू भी शाश्वत है। परन्तु भैया ! भूल सिर्फ इतनी हो रही है कि नश्वर शरीर को तू मान बैठा है। नश्वर वस्तुओं को तू अपनी मान बैठा है। लेकिन तेरे शाश्वत स्वरूप और मेरे शाश्वत सम्बन्ध की ओर तेरी दृष्टि नहीं है इस कारण तू दुःखी होता है।

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