Wednesday, April 7, 2010

मन्द-मन्द वर्षा हो रही है।प्रत्येक बूँद उनकी अहैतुकी कृपा का पाठ पढ़ा-पढ़ाकर कृतकृत्य कर रही है।न जाने उन्हें अपने शरणागतों की हर चीज इतनी प्यारी क्यों लगती है! इतना ही नहीं,अपने दिये हुए को पाकर ही क्यों बिक जाते हैं!और पतित-से-पतित प्राणियों को भी अपनाने के लिये क्यों आकुल हैं! न जाने साधक प्रमादवश क्यों नहीं उन्हें अप...ना मानता?  पर वे तो सर्वदा सभी के सब कुछ होने के लिये तत्पर हैं।

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