दूसरेके द्वारा तुम्हारा कभी कोई अनिष्ट हो जाय तो उसके लिए दुःख न करो; उससे अपने किये हुआ बुरे कर्मका फल समझो, यह विचार कभी मनमें मत आने दो कि " अमुकने मेरा अनिष्ट कर दिया है," यह निश्चय समझो कि ईश्वरके दरबारमें अन्याय नहीं होता... वह पूर्वक्रुक्त कर्मोका फल है.
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