Saturday, April 17, 2010

निर्दोषता की अभिव्यक्ति तभी सुरक्षित रह सकती है,जब किसी के प्रति वैर-भाव की गन्ध तक न रहे।यह तभी सम्भव है जब किसी के प्रति भी दोषी भाव न रहे,अर्थात् अपने प्रति होने वाली बुराई का कारण भी अपने को ही मान लिया जाय।जिन्हें दोषी मान लिया है,यदि किसी कारण उन्हें निर्दोष माननेमें असमर्थता प्रतीत हो,तो उन्हें अनजान बालककी भाँति क्षमा कर दिया जाय।

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