Saturday, April 10, 2010

जो तुम्हारे दिल को चेतना देकर धड़कन दिलाता है, तुम्हारी आँखों को निहारने की शक्ति देता है, तुम्हारे कानों को सुनने की सत्ता देता है, तुम्हारी नासिका को सूँघने की सत्ता देता है और मन को संकल्प-विकल्प करने की स्फुरणा देता है उसे भरपूर स्नेह करो। तुम्हारी 'मैं....मैं...' जहाँ से स्फुरित होकर आ रही है उस उदगम स्थान को नहीं भी जानते हो फिर भी उसे धन्यवाद देते हुए स्नेह करो।

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