अहंकार तथा अपने स्वार्थ का त्याग करके दूसरेका हित कैसे हो?दूसरे का कल्याण कैसे हो?दूसरे को सुख कैसे मिले? अपने तनसे,मनसे,वचनसे,बुद्धिसे,पदसे किसी तरह ही दूसरों को सुख कैसे हो? ऐसा भाव रहेगा तो आप ऐसे निर्मल हो जायँगे कि आपके दर्शनों में भी दूसरे लोग निर्मल हो जायँगे।
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