Tuesday, April 20, 2010

हमारे अधिकार तभी सुरक्षित रह सकते हैं,जब हमारे साथी कर्तव्य-परायण हों;और हमारे साथियों के अधिकार तभी सुरक्षित होंगे,जब हम कर्तव्यनिष्ठ हों। हमारे कर्तव्यनिष्ठा ही हमारे साथियों में कर्तव्य परायणता उत्पन्न करेगी;क्योंकि, जिसके अधिकार सुरक्षित हो जाते हैं,उसके हृदय में हमारे प्रति प्रीति स्वत: उत्पन्न हो जाती है,जो उसे कर्तव्य-परायण होने के लिए विवश करे

No comments:

Post a Comment