Thursday, April 22, 2010

सुखमें विकास नहींहोता,इसमेंपुराने पुण्य नष्ट होतेहैं और सुखभोगमें उलझ जानेके कारण आगे उन्नतिनहीं होती।जोप्रतिकूलता आनेपरभी साधनकरता रहताहै,वह अनुकूलतामेंभी सुगमतापूर्वकसाधन करसकता है।इसलियेगृहस्थका उद्धारजल्दीहोताहै,परसाधुका उद्धारजल्दीनहींहोता।कारणकि साधुतो थोड़ीभी प्रतिकूलतासह नहींसकता औरप्रतिकूलता आनेपर कमण्डलुउठाकर चलदेता है,पर गृहस्थ प्रतिकूलता आनेपर कहाँ जाय?वह माँ-बाप,स्त्री-पुत्रको कैसे छोड़े?

No comments:

Post a Comment