Thursday, April 29, 2010

भूल से उत्पन्न हुई असावधानी और असावधानी से उत्पन्न एवं पोषित दोषों को मिटाने में अपने को असमर्थ स्वीकार करना और नित्य प्राप्त,स्वत: सिद्ध निर्दोषता से निराश होना मानव-जीवन का घोर अनादर है।यह नियम है कि जो अपना आदर नहीं करता,उसका कोई आदर नहीं करता।अपने आदर का अर्थ दूसरों का अनादर नहीं है,अपितु दूसरों के अनादर से तो अपना ही अनादर होने लगता है;क्योंकि जो किसी को भी दोषी मानता है,वह स्वयं निर्दोष नहीं हो सकता।

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