Monday, April 19, 2010

संतोंके दर्शन,स्पर्श,उपदेश-श्रवण और चरणधूलिके सिर चढ़ानेकी बात तो दूर रही,जो कभी अपने मनसे संतोंका चिन्तन भी कर लेता है,वही शुद्धान्त:करण होकर भगव्तप्राप्ति का अधिकारी बन जाता है।

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